भूपेंद्र कुमार
आम जनता जब भी कहीं आक्रोश व्यक्त करती है तो अकसर व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस के उच्चाधिकारी अपने ही अधिकारी कर्मचारी को बर्खास्त लाइन हाजिर अथवा सस्पेंड करने का फरमान सुना देते हैं और पब्लिक का गुस्सा शांत हो जाता है।
पुलिस महकमे के अधिकारियों को बखूबी पता होता है कि एक बार लाइन हाजिर अथवा सस्पेंड करने का आदेश दे दिया तो दूसरे दिन अखबारों में छपते ही गुस्सा शांत हो जाता है फिर कोई यह जानने का प्रयास नहीं करता कि जो पुलिस अधिकारी या कर्मचारी लाइन हाजिर हुआ है, उसका आखिर हुआ क्या है !
अधिकांश को यही पता नहीं होता कि लाइन हाजिर होना किसको कहते हैं !
इस संवाददाता ने जब पुलिस महकमे में बर्खास्तगी, लाइन हाजिर और निलंबन की पड़ताल करनी चाही तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई।
पता चला कि कई बार अधिकारी अपने कर्मचारी को पुलिस के उच्चाधिकारी सिर्फ जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए लाइन हाजिर करने का फरमान सुना देते हैं।
एकाधिक मामलों में तो ऐसा भी नजर आया कि इधर पुलिस ने किसी अधिकारी को लाइन हाजिर किया, उधर वह दूसरे दिन भी अपने थाने चौकी में ही कुर्सी पर विराजमान था। जब उनसे यह पूछा गया तो उसने भी इस बात का खुलासा किया कि यह सब तो कई बार पब्लिक को शांत कराने के लिए होता है। पब्लिक लाइन हाजिर का फरमान अखबारों में पढ़ने के बाद अपना आंदोलन वापस ले लेती है। यह एक तरीके से पब्लिक और प्रशासन के बीच कुछ मुद्दों पर अहम की टकराहट होने के कारण मामले को शांत करने के लिए पुलिस महकमे को मनोवैज्ञानिक रूप से ऐसा करना पड़ता है।
इसकी पड़ताल करने के लिए इस संवाददाता ने पुलिस महकमे के लोक सूचना अधिकारी देहरादून को सूचना के अधिकार में यह जानकारी मांगी कि निलंबन, लाइन हाजिर और बर्खास्तगी के संबंध में की जाने वाली विभागीय कार्यवाही प्रमाण सहित उपलब्ध कराई जाए ! साथ ही उन्होंने एक जनवरी 2017 से लेकर 1 जून 2018 तक जितने भी पुलिस अधिकारी-कर्मचारी को बर्खास्त, निलंबन तथा लाइन हाजिर किया, उनके नाम, पदनाम, तैनाती स्थल तथा जिस अनुशासनहीनता के लिए ऐसा किया गया और लाइन हाजिर अथवा निलंबन के पश्चात उनकी नियुक्ति, अटैचमेंट और जब उन्हें बहाल किया गया उसकी जानकारी मांगी तो पुलिस महकमे के पैरों तले जमीन खिसक गई।
क्योंकि कई मामलों में तो जो आदेश होता है, उसका अनुपालन ही नहीं होता। सूचना के अधिकार का आवेदन पुलिस महकमे में पहुंचते ही महकमे में हड़कंप मच गया।
लोक सूचना अधिकारी तथा पुलिस अधीक्षक ग्रामीण सरिता डोभाल ने आरटीआई के इस आवेदन को ही यह कहते हुए सिरे से खारिज कर दिया कि यह सूचना विभागीय कार्यवाही से संबंधित है और इसका वृहत्तर लोकहित से कोई संबंध नहीं है, इसलिए यह सूचना नहीं दी जा सकती। जबकि कोई अनपढ़ भी यह बात समझ सकता है कि जब कोई भी पुलिस का कर्मचारी अथवा अधिकारी लाइन हाजिर, सस्पेंड अथवा बर्खास्त होता है तो सीधे-सीधे यह जनहित से जुड़ा हुआ मामला ही होता है। पुलिस महकमा जनहित के लिए ही सेवारत है और इस में कोताही बरतने पर ही यह कार्यवाही अमल में लाई जाती है।
सूचना दिए जाने से इंकार करने पर पुलिस महकमे पर यह गंभीर सवाल खड़ा हो रहा है कि कहीं सूचना न दिए जाने के पीछे यह कारण तो नहीं है कि लाइन हाजिर निलंबन और बर्खास्तगी केवल कुछ खास लोगों के लिए नाम मात्र के लिए ही तो नही होती है।
यदि सूचना के अधिकार में इसका जवाब देना पड़ गया तो एक बड़े गोलमाल का खुलासा हो सकता है। बहरहाल सूचना ना मिलने पर इस संवाददाता ने प्रथम अपीलीय अधिकारी तथा पुलिस उपमहानिरीक्षक गढ़वाल परिक्षेत्र कार्यालय में अपील तो कर ही दी है साथ ही उच्च स्तर पर भी इसकी शिकायत कर दी है। देखना यह है कि उच्च अधिकारी इस प्रकरण पर क्या संज्ञान लेते हैं!