कुलदीप एस राणा
सूबे की फिजाओं में एक बार फिर सत्ता की नीतियों के विरोध में नये गीत गूंजने लगे है जो वर्तमान भाजपा सरकार की नीतियों पर तीखा कटाक्ष कर रहा है।
पहले एनडी तिवारी फिर रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ औऱ इस कड़ी में एक नया नाम जुड़ने जा रहा है, वह नाम है वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत।
जी हाँ त्रिवेंद्र रावत … विगत कुछ समय से राज्य के पहाड़ी जिलों से जिस प्रकार छोटी छोटी बच्चियों के बलात्कार फिर हत्या की दिल दहला देने वाली खबरे आ रही हैं और उस पर जीरो टॉलरेंस की प्रशासनिक शिथिलता ने एक बार पुनः राज्य के एक गीतकार को मजबूर कर दिया कि वह सत्ताधीश के विरुद्ध संगीत से सुर छेड़े ।
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किन्तु इस बार यह स्वर संगीत सम्राट नरेंद्र सिंह नेगी के कंठ से नही बल्कि टिहरी जिले के सुदूरव्रती गांव के एक उभरते गायक पवन सेमवाल ने छेड़े हैं । गीतों को कलमबद्ध किया है उभरते गीतकार डबोला ने।
दोनों कलाकारों ने अपने नए वीडियो एलबम “उत्तराखण्डियों जागी जावा “(झाँपु)के माध्यम से बहुत ही व्यंग्यात्मक तरीके से आमजन के मन की बात को प्रस्तुत करने का साहस किया हैं । एलबम में कुल 6 लोकगीत हैं जिसमे से एक गीत वह कह रहे हैं,” जिस प्रकार केंद्र में मोदी आये उत्तरप्रदेश में योगी आये लेकिन ये उत्तराखंड के चमचे कहाँ से इस “झाँपु” को लेकर आ गए। जिसने अभी तक विकास के नाम पर कुछ नही किया है।”
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दूसरे गीत में गीतकार व गायक राज्यवासियों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि “उठो जागो औऱ वहशी दरिंदों से पहाड़ की बहू बेटियों बचाने के लिए आगे बढ़ो। क्योंकि बहु बेटियों की इज्जत खतरे में है और झाँपु (मुख्यमंत्री) और उसकी सरकार सुनिन्द सोई हुई है।”
एक अन्य गीत राज्य का नाम उत्तराँचल से उत्तराखंड बदले जाने पर रचा गया है जिसके बोल के अनुसार,- ” पहले तो सिर का आँचल हटा कर मस्तक को खंड खंड किया और घर घर मे शराब के ठेके खुल जाने से लोगो के सिर पर नशा की लत “लगाये जाने को लेकर सरकार की आबकारी नीति पर भी तीखा व्यंग्य किया है।”
पर्वतजन के इस सवांददाता से बातचीत में गायक पवन सेमवाल ने बताया कि इस गीत को न गाने औऱ इसके प्रस्तुतिकरण को रोकने के लिए उन पर बहुत दबाव बनाया गया था।
“पूर्ववर्ती कलाकारों के हश्र का हवाला दिया गया गया लेकिन पहाड़ों में दिन प्रति दिन घट रही घटनाओं ने उन्हें झकझोर कर रख दिया औऱ हम इसे जनता के समुख प्रस्तुत कर रहे हैं।”
लोकगीत हमेशा से समाज मे जागृति पैदा करते रहे हैं। टिहरी डैम विरोधी आंदोलन हो या उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन , पर्यावरण चेतना आंदोलन हो या फिर मदमस्त सत्ताधीशों की विरुद्ध स्वर जागृत करना, लोक गीतों ने जनमानस के भीतर एक चेतना जगाने का कार्य किया है ऐसे अब जब लोकसभा चुनाव के लिए कम ही समय बचा है तो यह गीत क्या गुल खिलाएंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।किन्तु यह वर्तमान राज्य सरकार माथे पर बल जरूर डाल जाएगा।