विकासनगर नगरपालिका के टेंडर घोटाले मामले में शासन ने जांच के आदेश दे दिए हैं। यह जांच निदेशक, शहरी विकास व जिलाधिकारी देहरादून संयुक्त रूप से करेंगे।
बताते चलें कि नगरपालिका परिषद, विकासनगर देहरादून ने वर्ष 2017-18 में अपने चहेते ठेकेदारों से सांठ-गांठ कर 2.38 करोड़ के 50 टेंडर मात्र 0.10 फीसदी न्यूनतम दर पर स्वीकृत कर सरकारी खजाने पर लगभग 60-70 लाख का चूना लगा दिया था।
नगरपालिका द्वारा इन 50 टेंडर्स को, जो कि 2, 37, 62, 927/- रुपए दर पर प्रस्तावित थे, उनको 2, 37, 38, 612/- रुपए में स्वीकृत कर लिया गया। उक्त टेंडर की दर व स्वीकृत निविदाओं में मात्र 24,315 रुपए का अंतर रहा। यानि सरकार को इन टेंडर आमंत्रित करने की कार्यवाही में कुल 24,315 रुपए का फायदा हुआ। पालिका द्वारा अगर ईमानदारी से टेंडर प्रक्रिया अपनायी जाती तो पालिका/सरकार को लगभग 60-70 लाख का फायदा होता। जैसा कि अन्य विभागों यथा पीडब्ल्यूडी, आरईएस, सिंचाई इत्यादि विभागों के 25 से लेकर 50 प्रतिशत न्यूनतम दर पर टेंडर स्वीकृत होते हैं।
मजे की बात यह है कि सभी टेंडर मात्र 3-3 ठेकेदारों के मध्य ही संपादित हुए थे। इन स्वीकृत निविदाओं में से अधिकांश निविदाओं के कार्यादेश भी पालिका द्वारा जारी किये जा चुके थे तथा लगभग 40 प्रतिशत टेंडर एक ही ठेकेदार के नाम स्वीकृत हुए थे। पालिका द्वारा अमूमन हर निविदा एक फीसदी से भी कम दर पर स्वीकृत की गई, जिसमें लाखों का हेर-फेर व सांठ-गांठ की गई, जिसके चलते सरकार को लाखों की चपत लगी।
इस संबंध में जनसंघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने प्रेस कांफ्रेंस की। जिसमें उन्होंने कहा कि उक्त मामले को लेकर मोर्चा प्रतिनिधिमंडल ने सचिव, शहरी विकास आरके सुधांशु से जांच कराये जाने का आग्रह किया था। मोर्चा की मांग पर शासन ने निदेशक, शहरी विकास व जिलाधिकारी देहरादून को संयुक्त रूप से जांच के निर्देश दिए हैं। नेगी कहते हैं कि उक्त सभी टेंडरों का औसत प्रतिशत (न्यूनतम दर प्रतिशत) 0.10 यानि एक प्रतिशत का दसवां हिस्सा रहना प्रदेश को खोखला करने जैसा था।