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आयुक्त सही या आवेदक, राजभवन मौन

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सूचना आयुक्तों के फैसलों को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए उन पर अभद्र व्यवहार करने के आरोप लगाने वाली कई शिकायतें राज्यपाल से की जा चुकी हैं। यदि शिकायतें गलत हैं तो शिकायतकर्ताओं के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई और यदि सही हैं तो आयुक्तों के संबंध में भी राजभवन क्यों?

भूपेंद्र कुमार

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यतें की हंै। शिकायत कर्ताओं ने आयुक्तों पर काफी गंभीर किस्म के आरोप लगाए हैं। इन शिकायतों में कितना दम है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा, किंतु अहम सवाल यह है कि राजभवन ने इस पर कोई गंभीर जांच अभी तक क्यों नहीं की प्रश्न उठता है कि यदि यह शिकायतें सही है तो अब तक अब तक सूचना आयुक्तों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं हुई है और यदि यह शिकायतें झूठी हैं तो शिकायत करने वाले लोगों पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया।
जब इस संवाददाता ने राजभवन में आयुक्तों के खिलाफ हुई अब तक की शिकायतों का ब्यौरा आरटीआई में मांगा तो यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ।
कुछ मामलों में यह देखने में आया है कि सूचना आयुक्त सरकार को बचाने का प्रयास करते हैं। कई मामलों में यह पाया गया कि जब किसी आवेदक ने सूचना आयोग के कार्यालय से संबंधित सूचनाएं मांग ली तो सूचना आयुक्त सूचनाएं देने में काफी आनाकानी करते हैं।
विनोद नौटियाल से बिदके
राजभवन तक पहुंची दर्जनों शिकायतें तत्कालीन सूचना आयुक्त विनोद नौटियाल के खिलाफ हैं। सूचना आवेदकों ने विनोद नौटियाल के खिलाफ मनमाने ढंग से फैसला देने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से इसकी शिकायत की है। रुड़की के डा. सम्राट शर्मा ने राज्यपाल को 24 फरवरी 2014 को एक पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा कि अपीलार्थी द्वारा दिए गए पत्रों के बावजूद भी आयुक्त ने सूचना देना तो दूर, बल्कि प्रार्थी के विरुद्ध एफआईआर लिखाने तक की सलाह दे डाली थी। डॉक्टर सम्राट कुमार प्रोफेसर हैं। उनके कई शोध पत्र राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। उन्होंने विनोद नोटियाल के पक्षपातपूर्ण फैसले की जांच करने की मांग की है।
इसी तरह से 7 नवंबर 2013 को ही ऊधमसिंहनगर के डॉक्टर सतीश चंद्र वर्मा ने भी विनोद नौटियाल के भ्रष्टाचार के संबंध में राज्यपाल से शिकायत की। उनका कहना था विनोद नौटियाल भ्रष्ट अधिकारियों का पक्ष लेते हैं। डॉक्टर वर्मा ने झोलाछाप डॉक्टरों के बारे में जानकारी मांगी थी, किंतु विनोद नौटियाल ने उल्टा उन पर अधिकारियों को अनायास परेशान करने का आरोप लगा दिया।
जनकल्याण उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष जगदीश गुप्ता ने भी विनोद नौटियाल के खिलाफ मनमाने फैसले देने तथा तथ्यों की अनदेखी करने के आरोप लगाते हुए तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त एनएस नपलच्याल से शिकायत की थी कि उनकी सभी अपीलें विनोद नौटियाल से हटा दी जाएं।
प्रभात से परेशान
आयोग में तत्कालीन सूचना आयुक्त प्रभात डबराल की शिकायतें भी कम नहीं रही। प्रभात डबराल पर भी मनमाने तरीके से फैसले देने के काफी आरोप लगे हैं। टिहरी के रहने वाले राजेंद्र सिंह सजवाण ने प्रभात डबराल के खिलाफ शिकायत की। प्रभात डबराल ने जानबूझकर अपीलार्थी को प्रमाणित सूचनाओं से वंचित रखा। देहरादून के रवि कुमार ने मंडी समिति के सचिव विजय प्रसाद थपलियाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इस संबंध में रवि कुमार ने सूचना आयोग में प्रभात डबराल की कोर्ट में मंडी समिति की एक आरटीआई से सूचना मांगी थी।
रवि कुमार कहते हैं कि प्रभात डबराल ने उल्टे उन पर ही शिकायत वापस लेने का दबाव डाला और उन्हें धमकाया। रवि कुमार ने इसकी शिकायत राज्यपाल से की।
इसी तरह से सेवानिवृत्त कमांडर पदम सिंह खाती ने नरेगा के कार्यों से संबंधित सूचनाएं न मिलने पर आयोग का दरवाजा खटखटाया था, किंतु सूचना आयुक्त प्रभात डबराल ने नरेगा को सरकार की एक बेरोजगारी भत्ता सेवा बताते हुए इसके अंतर्गत कराए गए कार्य तथा खर्च की लागत के बारे में सूचना न मांगने की सलाह दे डाली।
अनिल शर्म से असंतुष्ट
हल्द्वानी के जनार्दन डूंगराकोटी ने विशिष्ट बीटीसी अध्यापकों के स्थानांतरण की सूचना मांगी थी, किंतु लोक सूचना अधिकारी ने अतिरिक्त शुल्क लेने के बाद भी सूचना प्रदान नहीं की। जब इसकी अपील सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा से की गई तो उन्होंने भी उसको नजरअंदाज कर दिया। जनार्दन डूंगराकोटी ने राज्यपाल से शिकायत की थी कि सूचना आयुक्त अनिल शर्मा अधिनियम की मूल भावना के विपरीत कार्य करके आवेदक के विरुद्ध टिप्पणियां करके अधिनियम की मूल भावना को ही खत्म कर रहे हंै।
कोटियाल से भी खफा
हरिद्वार के राजकुमार उर्फ टीटू ने भी राजभवन में शिकायत की थी कि सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निर्णय तो नहीं देते, लेकिन व्यक्तिगत टिप्पणियां कर सूचना कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करते हैं। राजकुमार ने 18 सितंबर 2014 को एक अपील की सुनवाई का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने वांछित सूचना उपलब्ध न कराकर उल्टे मेरे ही ऊपर ही दोषारोपण किया तथा मेरे खिलाफ एफआईआर करने की भी धमकी दे डाली। राजकुमार ने सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल पर अभद्र टिप्पणियां करने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से शिकायत की कि उनकी अपील कोठियाल की कोर्ट से हटा दी जाए।
कालसी के रहने वाले सुरेंद्रदत्त जोशी ने भी पिछले साल जुलाई २०15 में राज्यपाल से सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल की शिकायत की थी। जोशी ने आरोप लगाया है कि सूचना मांगने पर श्री कोटियाल ने उन पर बेबुनियादी आरोप लगाए तथा उपजिलाधिकारी चकराता को उनकी जांच करने का निर्देश भी दे दिया, जबकि यह अधिनियम के अनुसार उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं था।
अल्मोड़ा निवासी नारायण सिंह रावत ने भी सूचना आयुक्त सुरेंद्र सिंह रावत के खिलाफ राज्यपाल से शिकायत की। नारायण सिंह रावत जुलाई 2015 में एक अपील के सिलसिले में सूचना आयुक्त सुरेंद्र सिंह रावत के कोर्ट में उपस्थित हुए थे। नारायण सिंह रावत का आरोप है कि सूचना आयुक्त ने सूचना देने के बजाय गरिमा के विरुद्ध अभद्र व्यवहार किया। उन्होंने सूचना आयुक्त रावत को पद से हटाने की मांग भी कर डाली।
सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल कहते हैं कि कुछ खुरापाती लोग आयोग को बदनाम करने की नीयत से राज्यपाल से झूठी शिकायत करते हैं। इनमें कोई दम तो नहीं होता, किंतु मीडिया में कहने के लिए यह बात जरूर बन जाती है कि आयुक्तों के खिलाफ राज्यपाल से इतनी शिकायतें की गई हैं। कोटियाल कहते हैं कि केवल आयोग को बदनाम करने और सूचना के अधिकार का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ पूर्व में भी आयोग कार्यवाही करने के निर्देश दे चुका है।
यही नहीं अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के विषय में इस संवाददाता ने लोक सूचना के अधिकार के अंतर्गत 14 सितंबर 2010 को सूचना मांगी थी तथा सूचना न मिलने पर द्वितीय अपील आयोजित की गई। सुनवाई के दिन 7 जनवरी 2011 को सूचना आवेदक को ज्ञात हुआ कि उसकी अपील, जो दिनांक 7 जनवरी 2011 को सुनवाई हेतु निर्धारित थी, उसकी सुनवाई संवेदनहीनता दिखाते हुए निर्धारित तिथि से 3 दिन पहले यानी 4 जनवरी 2011 को ही आयोजित कर निस्तारित कर दी गई। जब इसका विरोध किया गया तो धमकाते हुए सलाह दी गई कि हाईकोर्ट में रिट डाल दो। इस प्रकरण की शिकायत राज्यपाल से की गई। इस पर मामले से अपना दामन छुड़ाने की गरज से श्री नपलच्याल ने अपने फैसले को पुन: सुनने के बाद अपील को अपने से कनिष्ठ विनोद नौटियाल की कोर्ट में अंतरित कर दिया। कमाल देखिए कि कनिष्ठ श्री नौटियाल ने वरिष्ठ नपलच्याल के फैसले को ही पलट दिया। आरटीआई अधिनियम में रिव्यू सुनने का कोई नियम नहीं है, लेकिन नपलच्याल ने अपने फैसले का रिव्यू भी सुना।
सूचना आयुक्तों की मनमानी को देखते हुए देहरादून निवासी सुरेंद्र जोशी ने राज्यपाल से मांग की है कि राज्य सूचना आयोग के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। सुरेंद्र जोशी आरोप लगाते हैं कि फैसला देते समय अक्सर कुछ और कहा जाता है, जबकि लिखित में आदेश कुछ और ही आ जाता है। सुरेंद्र जोशी ने सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग करने की भी मांग की है।
काशीपुर के एक अधिवक्ता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने राज्यपाल को सूचना आयुक्तों की गरिमा के संबंध में काफी लंबा-चौड़ा पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने इन पदों पर सिफारिशी नियुक्तियां कराने के बजाय योग्य लोगों की नियुक्ति किए जाने का सुझाव दिया है।
अहम सवाल यह है कि यदि इन अपीलार्थियों को सूचना मिल गई होती तो यह राज्यपाल के पास शिकायत लेकर नहीं जाते, किंतु यह भी एक विचारणीय बिंदु है कि राज्यपाल ने इन शिकायतों का गंभीरता से संज्ञान क्यों नहीं लिया। यह भी हो सकता है कि मनमाफिक न्याय न मिलने पर सूचना आयुक्तों को परेशान करने की नीयत से आवेदक राज्यपाल से शिकायतें कर देते हैं, किंतु सूचना आयुक्तों के खिलाफ बढ़ती शिकायतों के बावजूद न तो आयुक्त इस विषय पर कोई कार्यवाही कर रहे हैं और न ही राज्यपाल अपनी ओर से कोई विशेष संवेदनशीलता दिखा रहे हैं।
यदि यह शिकायतें झूठी हैं तो शिकायतकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही अब तक क्यों नहीं हुई और यदि सही है तो सूचना आयुक्तों को कुछ निर्देश क्यों नहीं दिए गए?

वर्तमान तथा पूर्व सूचना आयुक्तों के खिलाफ दर्जनों शिकायतें राजभवनमतें दर्ज हैं। सूचना आवेदकों ने आयुक्तों के खिलाफ मनमाने ढंग से फैसला देने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से इसकी शिकायत की है।

सूचना आयुक्तों की मनमानी को देखते हुए देहरादून निवासी सुरेंद्र जोशी ने राज्यपाल से मांग की है कि राज्य सूचना आयोग के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। सुरेंद्र जोशी आरोप लगाते हैं कि फैसला देते समय अक्सर कुछ और कहा जाता है, जबकि लिखित में आदेश कुछ और ही आ जाता है। सुरेंद्र जोशी ने सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग करने की भी मांग की है।

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