भूपेंद्र कुमार तथा प्रमोद डोभाल
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्टाफ में 5 दर्जन से अधिक अधिकारियों तथा कर्मचारियों की फौज है और कईयों का वेतन एक लाख तथा, पचास हजार से ऊपर है।
सूचना के अधिकार में दो संवाददाताओं ने सूचनाएं मांगी लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से पूरी सूचनाएं फिर भी नहीं मिली।
बहरहाल जितनी सूचना मिली है, उसके अनुसार मुख्यमंत्री के अधिकांश स्टाफ में मौजूद फौज फाटे पर प्रतिमाह 50 लाख रूपये का खर्च केवल वेतन पर हो रहा है।
आवास, वाहन,व अन्य सहायकों का खर्च अलग से है। मुख्यमंत्री के कार्यालय में वर्तमान में चौदह ओएसडी, आठ निजी सहायक, चार पीआरओ, तीन सोशल मीडिया समन्वयक, एक मीडिया कोऑर्डिनेटर, चार सलाहकार, तीन अनुसेवक सहित कुल 60 लोगों का स्टाफ है।एक अपर मुख्य सचिव, दो सचिव,तीन अपर सचिव,तीन निजी सचिव,तीन अपर निजी सचिव,चार समीक्षा अधिकारी (कुल बीस) के अलावा बाकी सारा स्टाफ कोटर्मिनस के आधार पर तैनात है। कोटर्मिनस का अर्थ है कि ये अधिकारी-कर्मचारी त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहने तक ही तैनात रहेंगे।
इस स्टाफ में लगभग छह ऐसे अधिकारी तैनात हैं कि जिनके कार्य का कोई लेखा-जोखा सरकार के पास नहीं है।
सूचना के अधिकार में मुख्यमंत्री कार्यालय से जवाब मिला कि इनके पास अभी कोई पद नहीं है। जब यह पूछा गया कि यह क्या काम करते हैं तो उनके कार्यों का ब्यौरा भी मुख्यमंत्री कार्यालय में धारित नहीं है।
सूचना के अधिकार में प्राप्त जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री के स्टाफ में चार अधिकारियों को पुनर्नियुक्ति के आधार पर ओएसडी के रूप में तैनात किया गया है। इसमें सेवानिवृत्त रमेश चंद्र लोहनी, मोहन सिंह बिष्ट और रमेश चंद्र शर्मा को पुनर्नियुक्ति प्रदान करके ओएसडी बनाया गया है तो जगदीश प्रसाद गौड़ भी पुनर्नियुक्ति के बाद अनुसेवक के पद पर तैनात हैं।
काम के न काज के…..
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इनके कार्यों का ब्यौरा सूचना के अधिकार में भी मुख्यमंत्री कार्यालय के पास उपलब्ध नहीं है, जबकि इनमें से कईयों को लाखों रुपए वेतन के साथ ही मंत्री स्तरीय आवास आवंटित करवाए गए हैं।
सूचना के अधिकार में मुख्यमंत्री कार्यालय ने जानकारी दी है कि इन कर्मियों के कामकाज का अलग से कोई विवरण अथवा ब्यौरा मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा नहीं रखा जाता है।
एक तथ्य यह भी है कि तीन सोशल मीडिया समन्वयकर्ता, चार जनसंपर्क अधिकारी और दो मीडिया सलाहकारों के बावजूद उत्तरा प्रकरण में परीक्षा की घड़ी आने पर कोई भी अधिकारी कारगर भूमिका नहीं निभा सका। इसके अलावा मुख्यमंत्री के कुछ ओएसडी सरकार द्वारा कोई काम-काज ना होने के कारण थराली उपचुनाव के चुनाव प्रचार से लेकर भाजपा संगठन के धरने प्रदर्शनों में सक्रिय भागीदारी करते देखे गए हैं, इससे जनता में एक आक्रोश भी है कि सरकारी खजाने से वेतन लेने के बाद यह अधिकारी आखिर क्यों क्षेत्र में जाकर राजनीति करते हैं !
जाहिर है कि मुख्यमंत्री के पास यह समय प्रदेश की माली हालत को देखते हुए अपनी फौज फाटे की कटौती करने, उसकी समीक्षा करने और उसे और अधिक चुस्त दुरुस्त करने के लिए बड़ा माकूल समय है