इंदू जी इंदू जी क्या हुआ आपको…

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शिव प्रसाद सेमवाल

इंदिरा हृदयेश उत्तराखंड की राजनीति में एक कद्दावर नाम है। मुख्यमंत्री तिवारी की सरकार से लेकर विजय बहुगुणा और हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेसी सरकारों में इंदिरा हृदयेश नंबर २ का ओहदा रखने वाली कैबिनेट मंत्री रही है।
उत्तर प्रदेश के समय में शिक्षकों के कोटे से एमएलसी रही इंदिरा हृदयेश वर्ष २००२ में सर्वाधिक पावरफुल मंत्री थी। उनके पास पीडब्ल्यूडी तथा सूचना जैसे मंत्रालय भी रहे। ये मंत्रालय एनडी तिवारी के बाद किसी भी मुख्यमंत्री ने फिर कभी अपने किसी मंत्री को नहीं दिए।
जब भी प्रदेश में कांग्रेस की सियासत का भाग्य तय होता है तो प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी हो या फिर मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी, इंदिरा हृदयेश दौड़ में उन्नीस नहीं रहती।
ब्यूरोक्रेसी के बेलगाम घोड़ों की लगाम पकड़कर उन्हें साधना और सवारी गांठना इस वीरांगना को बखूबी आता है। उत्तर प्रदेश में शिक्षकों के नेतृत्व से लेकर उत्तराखंड में डेढ़ दशक के सफर में वह अर्स से लेकर फर्श तक और फर्श से लेकर अर्स तक काफी खट्टे-मीठे अनुभवों को अपने स्वभाव और व्यवहार में बखूबी आत्मसात कर चुकी हैं।
सदन से लेकर सड़क तक और मंच से लेकर कैमरों के सामने सरकार को असहज स्थिति से निकालने में भी वह माहिर हैं। वह सदन में कई बार संकटमोचक बनकर सहयोगी मंत्रियों को भी असहज स्थिति से निकाल लाने की सिद्धहस्त है तो विरोधियों के सवालों को अपने तरकश में रखे तर्कों के तीर से काटना भी वह बेहद अच्छे से जानती है।
प्रदेश का मुख्यमंत्री यदि आंख दिखाए, नियम बताए तो उसे कैसे झुकाना है, यह भी डा. हृदयेश अच्छे से जानती है। इसके लिए असहज करने वाले मुद्दों को नफासत से उठाने का हुनर भी उन्हें आता है।
डा. इंदिरा हृदयेश की तमाम खूबियों और योग्यताओं का लाभ उत्तराखंड को मिलना चाहिए था, किंतु उनके ज्ञान और अनुभवों का लाभ जब उत्तराखंड को लूटने-खसोटने वाले लोग उठाने लगते हैं तो उन्हें अपना नेतृत्व थमाने वाले हाथ रीते ही रह जाते हैं। यही खाली हाथ पांच साल बाद खिसियाहटभरे सत्ता विरोधी रुझान में बदल जाते हैं। यही कारण था कि वर्ष २००२ से पांच साल तक सबसे पराक्रमी कैबिनेट मंत्री होने के बाद भी इंदिरा हृदयेश को उन्हीं की हल्द्वानी ने वर्ष २००७ में कुर्सी से उतार दिया।
एक बार लोक कवि बाबा नागार्जुन ने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के विषय में आपातकाल थोपने पर एक कविता लिखी थी-
”इंदू जी इंदू जी क्या हुआ आपको, सत्ता की मस्ती में भूल गई बाप को”
देश की वह बहादुर प्रधानमंत्री भी सत्ता के नशे में मदमस्त होकर माईबापरूपी जनता को भूल गई। उन्होंने देश के संविधान के साथ-साथ न्यायालय और राज्यपाल जैसी संस्थाओं के साथ भी जमकर तोड़-मरोड़ की।
हल्द्वानी से विधायक इंदिरा हृदयेश भी राज्य के लिए तय अधिनियमों और नियमावलियों के अधीन सत्ता को संचालित करना अपनी तौहीन मानती हैं। इसीलिए उनकी कार्यशैली बरबस इंदिरा गांधी की याद दिला देती हैं।
इंदिरा हृदयेश के बड़े कद का फायदा उत्तराखंड को नहीं मिल पाया है और संभवत: उन्होंने खुद भी कभी व्यक्ति से व्यक्तित्व बनने की दिशा में मनन नहीं किया। इसलिए वह अपनी विधानसभा सीट हल्द्वानी की जनता की शिक्षा, पानी, कानून व्यवस्था जैसी मूलभूत समस्याओं का समाधान करने के बजाय उन्हें खांटी सियासी चोचलों में बहलाने की कोशिश करती है।
प्रदेश स्तर पर भी राज्य को कोई दीर्घकालीन नीति प्रदान करने की दिशा में भी उन्होंने कभी नहीं सोचा। कभी वह गैरसैंण के बजाय देहरादून को ही स्थायी राजधानी बनाने का बयान देती है तो कभी केवल विधायकों को खुश करने के लिए नए कॉलेज न खोलने की बात करती है तो कभी राजकीय शिक्षक संघों के सम्मेलनों में शिक्षकों को सरकार के खिलाफ बगावत करने को उकसाती हैं तो कभी खली के खेल में तवज्जो न दिए जाने की बात उन्हें बहुत गहरे से खल जाती है। सिर्फ अल्पकालीन स्वार्थों के लिए भविष्य का एक बड़े नेता बनने की संभावना खोती जा रही इंदिरा हृदयेश को एकांत में बैठकर इस पर अवश्य मनन करना चाहिए कि हल्द्वानी ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य की जनता उनसे उनके प्रदर्शन से कहीं गुरुत्तर भूमिका की उम्मीद करती है।

 

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