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उत्तराखंडः चुनाव से पहले सत्र में होगी पक्ष-विपक्ष की अग्निपरीक्षा

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उत्तराखंड राज्य आंदोलन की अवधारणा के प्रतीक गैरसैंण(भराड़ीसैंण) में होने जा रहे विधानसभा के विशेष सत्र को लेकर सियासी हलकों में खासी गहमागहमी है। इससे पहले भी सरकार यहां सत्र बुला चुकी हैं।
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पहला सत्र खनन और शराब के मुद्दे की भेंट चढ़ गया था तो दूसरा राजधानी के सवाल पर नहीं चल पाया। सत्र की शुरुआत में ही विपक्ष इस सवाल पर अड़ गया था कि पहले सरकार राजधानी तय करे कि वह स्थायी होगी या ग्रीष्मकालीन। तब मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह कहकर बचाव किया था कि पोता नहीं हुआ तो नाम कैसे रखूं?
जिस सवाल पर राजधानी की कहानी छूटी थी, भराड़ीसैंण में होने जा रहे विधानसभा सत्र में एक बार फिर उसे ही दोहराने के आसार हैं। सियासी संकट के बाद से विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल से रूठा विपक्ष बेशक अभी संशय की स्थिति में है। लेकिन सत्र में उसके होने न होने के बावजूद यह सवाल अपनी जगह मौजूं है कि गैरसैंण पर आखिर क्या बात बनेगी? बहरहाल, सरकार एक्शन में है और विपक्ष असमंजस में। मुख्यमंत्री के बाद अब रविवार को विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल गैरसैंण के दौरे पर जा रहे हैं।

आसन्न विधानसभा चुनाव से पूर्व आयोजित हो रहे इस सत्र के खास सियासी मायने हैं। सत्र का आयोजन अप्रत्याशित भी नहीं है। गैरसैंण में दूसरे विधानसभा सत्र के बाद ही राज्य सरकार ने तय कर लिया था कि वह विस चुनाव से पहले नवनिर्मित विधानमंडल भवन में सत्र का आयोजन करेगी। सरकार के इस कदम को विपक्ष सियासी नफे-नुकसान के तौर पर देख रहा है। जाहिर है, यह सवाल उसके भीतर भी घुमड़ रहा है कि सत्र के बहाने सरकार गैरसैंण में क्या करने जा रही है? वहां बड़ी घोषणा क्या हो सकती है? क्या राजधानी की पहेली सुलझेगी?

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राज्य गठन के वक्त से ही स्थायी राजधानी अबूझ पहेली है। पहाड़ का जनमानस गैरसैंण को राजधानी बनाये जाने का आज भी सपना देख रहा है। सरकार भी जानती है कि गैरसैंण में बड़ी घोषणा कर वह पहाड़ में बड़ा लाभ ले सकती है, मगर उसे मैदान के घाटे का भी भय है, क्योंकि पहाड़ की तुलना में मैदान के सियासी समीकरण ज्यादा उलझे हुए हैं।

यहां भाजपा-कांग्रेस के अलावा बसपा, सपा फेक्टर भी हैं। जहां तक ग्रीष्मकालीन राजधानी के मुद्दे का सवाल है, इस पर वह राज्य आंदोलनकारियों के निशाने पर आ सकती है। विपक्ष भी चाहता है कि सरकार राजधानी के मुद्दे पर उलझे। इन हालातों में सरकार राजधानी की उलझन को नये जिलों के मुद्दों में उलझा दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। गैरसैंण को जिले की घोषणा का झुनझुना भी मिल सकता है।

‘स्थायी राजधानी का यक्ष प्रश्न भाजपा ने पैदा किया है। यह तो राज्य गठन के समय ही हल हो जाना चाहिए था। गैरसैंण उत्तराखंड राज्य अवधारणा का प्रतीक है। लेकिन थूक में पकौड़े नहीं बनते। गैरसैंण को अभी पुष्पित पल्लवित होना है। पीएम 10 हजार करोड़ रुपये दे दें। मैं और सीएम नेता प्रतिपक्ष के पास गए थे। सुझाव रखा था कि सर्वदलीय दल लेकर पीएम से मिलें, लेकिन उन्होंने सिर्फ सियासत की।
– किशोर उपाध्याय, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस

‘गैरसैंण के नाम पर बहुत नाटक हो गया। कैबिनेट बैठक व सत्र के बहाने सरकार छह बार गैरसैंण जा चुकी है। अब सातवीं बार सत्र कर रही है। सरकार बेनकाब हो चुकी है। उसे अपना रुख साफ करना चाहिए कि गैरसैंण स्थायी, अस्थायी, ग्रीष्मकालीन या शीतकालीन में से कौन सी राजधानी होगा। लेकिन सरकार ने गैरसैंण को अतिथि गृह बनाकर रख दिया है। सत्र में जाना है कि नहीं, यह हम विधायक मंडल दल की बैठक में तय करेंगे’
– अजय भट्ट, नेता प्रतिपक्ष

‘प्रदेश के लिये गैरसैंण का बहुत बड़ा महत्व है। यह स्थान राज्य आंदोलन से जुड़ा है। इसका महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि यह अंतिम सत्र है। मुझे पूरी उम्मीद है कि माननीय सदस्य सत्र का प्रदेश हित में उपयोग करेंगे। चुनावी वर्ष होने के  नाते हो सकता है कि सरकार भी राज्य हित के लिए कोई ठोस योजना या ठोस नीति की स्वीकृति कराए।’
– गोविंद सिंह कुंजवाल, स्पीकर

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