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गंगा में तैरते सवाल

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मोदी सरकार की ‘गंगा मिशन’ कार्य योजना कब परवान चढेगी यह तो समय ही बता पायेगा परन्तु वर्तमान का ”विकास मॉडल” गंगा की स्वच्छता और अविरलता को लेकर नये सिरे से सवाल खड़ा कर रहा है।

प्रेम पंचोली

मिशन फॉर क्लीन गंगा योजना से स्थानीय लोग असमंजस में हैं। गंगा पर ही बड़े और छोटे दर्जनों बांध बनने हैं। गंगा के किनारे-किनारे ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन भी जानी है। इन दोनों महत्वपूर्ण योजनाओं में सुरंगों का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह क्या ‘गंगा मिशनÓ परवान चढ़ पाएगा? वर्षभर गंगा के पानी के आचमन के लिए देश-दुनिया के लोग हरिद्वार से गंगोत्री, गौमुख और हरिद्वारा से बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा पर आते हंै और इन कस्बानुमा बाजारों को रात्रि विश्राम के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिसके एवज में स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी का जुगाड़ भी चलता है। मगर ‘गंगा मिशनÓ योजना में इन कस्बों को साफ-सुथरा भी बनाना है। इन्ही कस्बों को बांध और रेल लाइन की भेंट भी चढऩा है। हरिद्वार, ऋषिकेश, उत्तरकाशी, श्रीनगर सहित इन कस्बों को एनजीटी का भी फरमान है कि वे अपने सीवर को गंगा में न डाले वगैरह। वरना जुर्माना या सजा के लिए तैयार रहे। ऐसा लगता है कि यदि गंगा स्वच्छ चाहिए तो गंगा के किनारे या तो मानवविहीन करने पड़ेंगे या गंगा के किनारे बसी बसासत के लिए इस योजना के अंर्तगत सभी ढांचागत सुविधा मुहैया करवानी पड़ेगी। अतएव गंगा किनारे बसे लोग आपदा से तो डरे, सहमे हैं, परंतु अब उनके मन में इस तरह के सवाल कौतुहल का विषय बने हैं कि क्या ‘गंगा मिशनÓ योजना से लोगों को गंगा का किनारा छोडऩा पड़ेगा अथवा इस योजना से लोग लाभन्वित होंगे या उन्हें सुविधा मुहैया कराई जाएगी?
मिशन में होगा 2950 करोड़ का वृक्षारोपण
‘गंगा मिशनÓ कार्य योजना के लिए राज्य सरकार ने कमर कस दी है। राज्य के वन महकमा ने बाकायदा अगले एक वर्ष के लिए ‘नमामि गंगेÓ योजना के लिए 2950 करोड़ की कार्य योजना केन्द्र सरकार को भेज दी है, जिसमें उत्तरकाशी से हरिद्वार तक का प्लान है। इस कार्य योजना के तहत उत्तराखंड बेसिन क्षेत्र में जल संरक्षित करने वाले पौधे लगाए जाएंगे।
गंगा किनारे 2565 बीघा भूमि पर अतिक्रमण
हरिद्वार और आस-पास की गंगा किनारे खाली पड़ी अधिकांश जमीन पर अतिक्रमण हो चुका है। यह वह जमीन है, जो गंगा का ही आबाद क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र की 2565 बीघा जमीन अब रसूखदारों के कब्जे में है। यह आंकड़ा सिंचाई विभाग ने जुटाया है। ऐसे में ‘गंगा मिशनÓ कार्य योजना कैस सफल होगी जो समय की गर्त में है। गंगा को प्रदूषण मुक्त और गंगा तटों को विकसित करने का अभियान ‘मिशन फॉर क्लीन गंगाÓ योजना से आरंभ हो गया है।
गंगा में गिरती है इतनी गंदगी
महानगर हरिद्वार का पूरा सामाजिक व आर्थिक आधार भी पूरी तरह गंगा पर टिका हुआ है। एक अध्ययन के मुताबिक केवल हरिद्वार में ही 3766 मिलियन लीटर सीवेज बिना उपचारित किए सीधे गंगा में गिर रहा है। 1985 में शुरू हुई गंगा नदी योजना के तहत एक लाख से अधिक आबादी वाले 25 शहरों में 865 एमएलडी क्षमता के मल-जल शोधन संयंत्र स्थापित होने थे। वर्ष 2000 में योजना का पहला चरण पूरा हुआ, मगर गंगा की हालात पहले से अधिक बदस्तूर हो गयी है। ,
गंगा किनारे बने रिजॉर्ट और होटल, धर्मशालाओं को एनजीटी ने कई बार अपने संस्थानों व व्यवसायिक केन्द्रों के सीवेज को शोधन के लिए नोटिस थमा दिया, परंतु अब तक ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। ज्ञात हो कि हरिद्वार शहर में प्रतिदिन 85 एमएलडी सीवेज कचरे का उत्पादन होता है। त्यौहारों और कुंभ जैसे अवसरों पर यह बहुत अधिक बढ़ जाता है। मगर आज तक इस शहर में कुल 40 एमएलडी का सीवेज शोधन संयंत्र है। नगर परिषद के एक अधिकारी के मुताबिक इसकी शोधन क्षमता 40 प्रतिशत है।
गंगा किनारे बसे लाखों लोगों की आबादी गंगा पर निर्भर भी है और गंगा के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार भी। ऐसे में लोगों को बेहतर जीवन-यापन की व्यवस्था करते हुए गंगा को निर्मल बनाना वाकई कल्पना से कहीं अधिक जागरूकता, इच्छाशक्ति और बजट की मांग करता है।

यदि गंगा स्वच्छ चाहिए तो गंगा के किनारे या तो मानवविहीन करने पड़ेंगे या गंगा के किनारे बसी बसासत के लिए इस योजना के अंर्तगत सभी ढांचागत सुविधा मुहैया करवानी पड़ेगी।

(लेखक एन. एफ. आई. के फैलो हैं)

 

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