उत्तराखंड में कुर्सी बचाने के लिए खेला गया खेल हो या शराब माफियाओं के लिए नीति बदलने का विषय रहा हो या अपनी ही घोषणाओं पर सरकार खुद घिरती रही हो, ये सब विषय अब गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी के लिए गौण हो गए हैं।
गजेंद्र रावत
उत्तराखंड के राज्यगीत को आवाज देने वाले नरेंद्र सिंह नेगी से उनके कई प्रशंसक खुश नहीं हैं। इन श्रोताओं ने ये अपेक्षा नेगी से नहीं की कि वो राज्यगीत जैसा कोई गीत गाएं। उनसे तो उत्तराखंड की पीड़ा की अपेक्षा उनके श्रोता करते आए हैं।
इसे समय की मार कहें या ढलती उम्र में पुरस्कारों की चाह, दोनों में ही नरेंद्र सिंह नेगी फंसते हुए नजर आ रहे हैं। नरेंद्र सिंह नेगी स्वयं कई बार विभिन्न मंचों से कह चुके हैं कि सरकारी सेवा में रहते हुए भी उन्होंने बहुत सारे ऐसे गीत गाए, जो एक सरकारी कर्मचारी की नौकरी जाने के लिए पर्याप्त थे।
नौछमी नारेणा से चोट
सरकारी सेवा से सेवानिवृत्ति के बाद २००६ में नरेंद्र सिंह नेगी तब चर्चा में आए, जब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के शासन पर ‘नौछमी नारेणाÓ गीत गाकर एक प्रकार से तत्कालीन सत्ता पर जोरदार चोट की। नरेंद्र सिंह नेगी इस गीत को लेकर इतने उत्साहित थे कि उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल के प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार की रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए भी कई बार ये गीत गाया। इस गीत की कई लोगों ने इस कारण आलोचना की कि नरेंद्र सिंह नेगी ने नारायण दत्त तिवारी पर इसलिए खुंदक में ये गीत बनाया, क्योंकि तिवारी ने उन्हें सेवा में रहते सरकारी खर्चे से गाना गाने के लिए विदेश भेजने से न सिर्फ मना कर दिया था, बल्कि उन्हें कायदे से नौकरी करने की घुड़की भी लगाई थी।
कथगा खैल्यो चर्चित
कुछ भी हो, इस गीत ने उस दौर में कांग्रेस की सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया। २०११ के आखिरी में जब उत्तराखंड में भुवनचंद्र खंडूड़ी दूसरी पारी समेटने की ओर थे तो नरेंद्र सिंह नेगी ने एक और गीत की रचना की। यह गीत मुख्यमंत्री पद से हटाए रमेश पोखरियाल निशंक के ऊपर था। जिसके बोल ‘अब कथगा खैल्योÓ थे। निशंक पर इस गीत को लेकर एक वीडियो भी शूट किया गया, किंतु निशंक ने न्यायालय जाकर इस गीत के वीडियो पर रोक लगवा दी। इसके बावजूद ये गीत खूब बजाया गया। नौछमी नारेणा और अब कथगा खैल्यो में इतना अंतर था कि नौछमी नारेणा नारायण दत्त तिवारी २००७ का चुनाव ही नहीं लड़े, जबकि अब कथगा खैल्यो को धत्ता बताते हुए निशंक डोईवाला से विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे।
अब राज्य गीत
जिस दिन उत्तराखंड राज्य गीत की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया जा रहा था और नरेंद्र सिंह नेगी मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ मीडिया से रूबरू हुए तो नरेंद्र सिंह नेगी को मीडिया ने पूछा कि उत्तराखंड की वर्तमान सरकार पर वे कब नया गीत लिख रहे हैं तो नेगी ने जो जवाब दिया, वो हैरतअंगेज था। उन्होंने बताया कि अब सीडी का जमाना नहीं रहा। सीडी खरीदी और बेची नहीं जा रही। इसलिए उन्होंने गीत गाने कम कर दिए हैं। एक ओर नरेंद्र सिंह नेगी दावा करते हैं कि उनके गीतों को सर्वाधिक सुना जाता है, वहीं दूसरी ओर अब वे सीडी के न खरीदे जाने जैसी बातें भी करने लगे हैं।
उठ रहे सवाल
नरेंद्र सिंह नेगी से सोशल मीडिया पर भी लोगों ने सैकड़ों सवाल पूछे कि आखिरकार पिछले साढ़े चार साल से उत्तराखंड में जो कुछ भी सरकारों ने किया, वो रामराज तो नहीं? इसके बावजूद नेगी वर्तमान सरकार पर एक भी लाइन लिखने को तैयार नहीं हैं। स्वयं नरेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि यह जरूरी नहीं कि वो हर सरकार या हर मुख्यमंत्री पर गीत लिखें या गाएं। नेगी के इस प्रकार के वक्तव्य से उनके श्रोताओं में घोर निराशा भी है कि आखिरकार उन्होंने व्यक्ति को देखकर गीत की रचना की, न कि उत्तराखंड के हित को देखा।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जिस प्रकार नरेंद्र सिंह नेगी आज वर्तमान सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं और उन्हें प्रदेश की बिगड़ती हालत दिखाई नहीं दे रही या कहें कि वो वर्तमान परिस्थितियों के इतने गुलाम हो गए हैं कि वे चाहकर भी कुछ नहीं लिख पा रहे। नौछमी नारेणा और अब कथगा खैल्यो जैसे गीत कभी स्वयं नरेंद्र सिंह नेगी के गले पड़ जाएंगे, इसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की होगी। इन गीतों की धुन पर वे तब स्वयं को उत्तराखंड का सिपाही बताते थे, किंतु जिस प्रकार उनके प्रशंसकों द्वारा उनके द्वारा एक प्रकार से सत्ता के सामने सरेंडर करने जैसी स्थिति सामने आई है, उससे नेगी पर एक और गीत लिखने का दबाव तो बढ़ ही गया है।
उत्तराखंड आंदोलन के दौरान ‘भैजी कख जाणा छा तुम लोग उत्तराखंड आंदोलन माÓ जैसे गीत गाने वाले गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी अब बिगड़ती व्यवस्था पर लिखने और गाने से बच रहे हैं, जिससे उनके श्रोताओं में भारी आक्रोश है।