नीरज उत्तराखंडी, पुरोला
सुधा ने ली अपने गाँव की सुध। मशरूम से संवारा भविष्य
युवाओं के लिए लिखी प्रेरणा की नई इबारत
रंवाई की माटी की लाडली बेटी सुधा ने देहरादून में नौकरी छोड़कर अपने गाँव की सुध लेकर पुरोला आ कर लकड़ी के एक छोटे से खोखे में बिना किसी सरकारी सहायता के महज 13 हजार रूपये की लागत से मशरूम उत्पादन कर युवाओं और महिलाओं के प्रेरणा की नई इबारत लिखी।
जनपद उत्तरकाशी के विकास खण्ड पुरोला के पुरोला गाँव में माता सुशीला देवी तथा पिता बालकृष्ण नौटियाल के घर जन्मी सुधा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की थी।तीन बहिनों तथा एक भाई में सुधा दो बहनों से सबसे छोटी है।सुधा की बड़ी बहिन अध्यापक तथा उसके बाद की बहन पुरोला डाकघर में कार्यरत है। दोनों बहिनों की शादी हो चुकी है तथा छोटा भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। पिता का देहांत होने के बाद माता सुशीला ने ममता के साथ-साथ पिता का स्नेह भी दिया।
फार्मेसी तथा स्नातक करने के बाद एक संस्थान में 10 हजार की नौकरी मिली लेकिन इसमें उसको आनंद नहीं मिला।इसी ऊहापोह में एक दिन उसके छोटे भाई दिवाकर नौटियाल ने उत्तराखंड की मशरूम गर्ल दिव्या रावत के विषय में बताया जो कि सुधा के अन्दर एक प्रेरणा जगा गया। दिवाकर अपनी बहन के लिए प्रेरणा का दीप बन गया।
सुधा ने नौकरी छोड़कर अपने गाँव में मशरूम उत्पादन को आजीविका और आर्थिकी मजबूत करने तथा पलायन रोकने का एक जरिया बनाने का संकल्प लिया। उसने उद्यान विभाग देहरादून तथा मशरूम गर्ल दिव्या रावत से मशरूम पैदा करने की ट्रेनिंग ली।
अपनी जानकारी साझा करते हुए सुधा ने बताया कि आर्थिकी की वजह से शुरुआत में तो काफी परेशानी झेलनी पड़ती थी।
स्थान के अभाव में पुरानी रसोई घर के पास बने लकड़ी के एक छोटे से कमरे में जुलाई 2017 में मशरूम उत्पादन करना पड़ा लेकिन सितंबर तक तीन माह में मशरूम की अच्छी पैदावार होने से 30 हजार का लाभ हुआ।
मशरूम 2 माह में तीन बार पैदा होता है।पहली बार अधिक उत्पादन होता है जो दूसरी और तीसरी बार उत्पादन कम होता जाता है।उत्पादन के दौरान कमरे तथा पैकेटों में पैक तापमान को न्यूनतम बनाये रखने की चुनौती भी होती है।कमरे का तापमान 25-27डिग्री तथा पैकेटों में पैक मशरूम के लिए 28डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।बीज बोने के बाद फसल पैदा होने तक आर्द्रता नमी का भी विशेष ख्याल रखना होता है जो 70-90 के बीच रहना चाहिए।
सपने के सच होने का जो सुखद अहसास हुआ, उसने मेरे अन्दर और उत्साह का संचार किया। शुरुआत में पहली पैदावार में 150 किग्रा मशरूम पैदा हुआ और उसने 3 किलो के 50 पैकेट बनाकर बाजार में उतारा जिसकी काफी मांग होने लगी।
पहली बार सीजन के अन्त तक तीन माह तक उसने 30 हजार का मशरूम बेचा।अब वह पुनः नवम्बर-दिसम्बर में शुरू करने वाली है।सुधा को उम्मीद है कि शासन प्रशासन उनकी सुध लेकर उनकी मदद को हाथ बढ़ायेगा।
सुधा ने बताया कि चन्द रूपये की नौकरी के लिए बेरोजगार युवा शहरों की खाक छान रहे हैं लेकिन यदि युवा और महिलाएं चाहे तो गाँव में कम लागत पर मशरूम उगाकर आजीविका और आर्थिकी का जरिया बना सकते हैं। जिससे गाँव से पलायन तो रुकेगा ही आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।
वह पुरोला में वृहद पैमाने में मशरूम की खेती कर युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवा चाहती है और साथ ही महिलाओं तथा युवाओं को मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण देकर इस खेती से जोड़कर रोजगार के लिए गाँव से हो रहे पलायन को रोकने तथा आर्थिक स्थिति मजबूत करना चाहती है।
इससे पूर्व वह 30 युवाओं को प्रशिक्षण दे चुकी है । सुधा कहती है कि इस संबंध में वह क्षेत्र के विधायक राजकुमार, जिला पंचायत सदस्य दीपक बिजल्वाण तथा उप जिलाधिकारी पूरण सिंह राणा से मुलाकात कर चुकी है लेकिन आश्वासन के सिवा कोई सहयोग और सहायता नहीं मिली।
सुधा ने बताया कि पुरोला में मशरूम की खेती तथा मार्केटिंग की अपार संभावनाएं हैं। आवश्यकता है उचित सहयोग एवं प्रोत्साहन दिये जाने की।युवाओं को गलत राह में जाने से रोकने के लिए उन्हें रोजगार से जोड़ने की दिशा में धरातल पर काम करने की आवश्यकता है।मशरूम आर्थिक स्थिति मजबूत करने साथ साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।मशरूम में 22 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है।