केन्द्रीय बजट और उत्तराखण्ड
हरीश रावत(पूर्व सीएम उत्तराखंड )
इस वर्ष के केन्द्रीय बजट की उत्तराखण्ड को बड़ी प्रतीक्षा थी। पांच सांसद देने के बाद उत्तराखण्ड के लोगों ने #विधानसभा चुनाव में एक तरफा सत्तर सदस्यीय विधानसभा में 57 सदस्य Narendra Modi जी की झोली में डाले थे। दिल्ली के ताकतवर इंजन के साथ राज्य में ताकतवर इंजन वाली Bharatiya Janata Party (BJP) सरकार बनाकर उत्तराखण्ड ने मोदी जी के जुमले को साकर कर दिया। लोग राज्य के लिये बड़े-बड़े उपहारों की आस लगाये बैठे थे। केन्द्रीय बजट के विस्तृत वाचन के बाद उत्तराखण्डी लोग बहुत निराश हुये हैं। बजट में ढूढ़ने पर भी उत्तराखण्ड व हिमाचल के लिये कुछ भी नहीं है। चौहदवें वित्त आयोग की संस्तुतियों ने उत्तराखण्ड के वित्त की कमर तोड़ दी है। श्री Arun Jaitley जी ने अन्तर राज्जीय कौंसिल की बैठक में मेरे सवाल का जवाब देते हुये स्वीकार किया था कि, उत्तराखण्ड को वित्त आयोग की संस्तुतियों से प्रतिवर्ष पच्चीस सौ करोड़ रूपये का घाटा हुआ है। उन्होंने उत्तराखण्ड के लिये वाह्य सहायता व केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में अनुदान व ऋण का प्रतिशत पूर्व की भाँति 90/10 रहेगा, अर्थात 90 प्रतिशत अनुदान होगा, इसकी घोषणा की और इसे लागू किया। मगर यह क्षतिपूर्ति आंशिक है। राज्य को जो स्पेशल प्लान अस्सिटेन्ट्स में विशेष सहायता मिलती थी, वह समाप्त हो गई है। उसकी क्षतिपूर्ति की उत्तराखण्ड, इस बजट में प्रतीक्षा कर रहा था। वर्ष 2016 में भा0ज0पा0 के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद चीख-चीख कर कहते थे कि, उत्तराखण्ड को चौदहवें वित्त आयोग से सैंतालीस हजार करोड़ रूपये का अतिरिक्त लाभ हुआ है। अब श्री Trivendra Singh Rawat जी को बताना चाहिये कि, वह सैंतालीस हजार करोड़ रूपया इस वर्ष कहां गया और इतना धन मिलने के बाद भी राज्य की आर्थिक स्थिति खस्ता क्यों है?
उत्तराखण्ड के कांग्रेसजनों की निरन्तर मांग पर यू.पी.ए. की सरकार ने हिमालयन राज्यों के वनों की पर्यावरणीय सेवा का आंकलन करने के लिये पूर्व कैबिनेट सचिव वी.के. चतुर्वेदी कमेटी को कहा। श्री चतुर्वेदी ने उत्तराखण्ड के वनों से देश के पर्यावरण को प्रतिवर्ष चालीस हजार करोड़ रूपये से ऊपर की सेवा प्राप्त होने का आंकलन किया था, और इस हेतु हमें कम्पन्सेशन देने की अनुशंसा की। यू.पी.ए. सरकार ने अपने आखिरी बजट में वोट एण्ड एकाउण्ट था, इस अनुशंसा को मानते हुये, हिमालयी राज्यों को ग्यारह सौ करोड़ रूपये की राशि दी। एन.डी.ए. सरकार के आने के बाद प्रथम बजट से लेकर अब तक यह मद कभी भी बजट में स्थान नहीं पा सकी। हमने बार-बार प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री जी से इस मुद्दे को उठाया। इस वर्ष के चुनावी बजट में भी उपरोक्त ग्रीन बोनस का कहीं उल्लेख नहीं है। धन से अधिक उत्तराखण्ड के वनों के महत्व के प्रति मोदी सरकार की उदासीनता कष्ट दायक है। सड़क आदि के निर्माण में कटे वनों की क्षतिपूर्ति राशि भी केन्द्र के पास जमा है। उस पर भी मोदी सरकार आसन जमाकर बैठ गई है। हमें हमारा ही पैसा वनीकरण, सूअररोधी दिवारों व वन जलाशयों के निर्माण के लिये नहीं दिया जा रहा है। ग्रीन बोनस एक बड़ा मुद्दा है, जिसे उत्तराखण्ड सहित हिमालयी राज्यों को लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाना चाहिये। उत्तराखण्ड को इस प्रश्न पर अपनी खामोशी तोड़नी चाहिये। भा.ज.पा. की बड़ी जीत से संघर्ष की ताकतें सहम गई हैं। मैं कहता हूं ‘‘हालत से सहमे हुये लोगों को बता दो, हालत गुजर जाते हैं, ठहरा नहीं करते’’। उत्तराखण्ड को हिमालयी राज्यों के इस संघर्ष की अगुवायी करनी चाहिये, इसी में हमारा कल्याण है।
जी.एस.टी. लागू होने के बाद राज्य को उद्योगों से उतना भी रैवेन्यू नहीं मिल रहा है, जितना वैट से मिल रहा था। लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट राज्य के राजस्व में आई है। हमारे राज्य में टैक्स होली डे स्कीम के अन्तर्गत उद्योगों को 2020 तक सैन्ट्रल एक्साईज ड्यूटी से छूट है। जी.एस.टी. के वर्तमान प्राविधानों के अनुसार इस छूट में केवल 58 प्रतिशत हिस्से की पूर्ति केन्द्र सरकार करेगी, 42 प्रतिशत हिस्सा राज्य को देना होगा। ये दोनों बिन्दु राज्य के वित्त के लिये बड़ी चिन्ता का विषय है। इन दोनों मामलों में कोई नीतिगत राहत उत्तराखण्ड को नहीं दी गई है।
राज्य का औद्योगिकीकरण ठहर गया है, हमने केन्द्र से मांग की थी कि, उत्तराखण्ड के औद्योगिक उत्पादों पर एक्साईज ड्यूटी छूट की अवधि जो वर्ष 2020 में समाप्त हो रही है, उसे बढ़ाकर वर्ष 2025 तक किया जाय। उत्तराखण्ड की इस मांग को अनसुना कर जेटली जी ने हमें तीसरा बड़ा झटका दिया है। शायद श्री जेटली जी उत्तराखण्ड के भा.ज.पा. प्रेम की परीक्षा ले रहे हैं। परीक्षा लेते-2 श्री जेटली उत्तराखण्ड की रेल लाईनों को सिरे से भूल गये। #टनकपुर-#बागेश्वर-जौलजीवी, #रामनगर-चखुटिया-#गैरसैंण, #काशीपुर-जसपुर-धामपुर, #सहारनपुर-#विकासनगर-#देहरादून, #देवबन्द-#रूड़की सभी रेल लाईनें भाजपाई प्रेमाग्नी की भेंट चढ़ गई है। पूर्व स्वीकृत कुछ विद्युतिकरणों के सिवा हमारे हिस्से में कुछ भी नहीं आया है। #चारधाम तक रेल लाईन पहुँचाने वाले अभी भी ऋषिकेश में शिर्षासन कर रहे हैं। चुनाव तक चारधाम की ट्रेन वहीं सीटी बजाती रहेगी। यू.पी.ए. सरकार ने #ऋषिकेश-#कर्णप्रयाग व टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन निर्माण को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट मानते हुये इन्हें केन्द्रीय बजट से पूरा करने की व्यवस्था की थी। इस बजट में वर्तमान सरकार ने हमें पूर्णतः रेलवे के संसाधनों के रहमो करम पर छोड़ दिया है।
सीमान्त क्षेत्र विकास योजना, हमारे जैसे सीमान्त राज्यों के लिये विशेष धन देने की एक केन्द्रीय मद है। अरूण जेटली जी ने इस वर्ष के बजट में इस मद में वर्ष 2017-18 के मुकाबले चार सौ करोड़ रूपये की घटोत्तरी कर दी है। वर्ष 2017-18 के बजट में ग्यारह सौ करोड़ रूपये का प्राविधान था। इस वर्ष इस मद में केवल सात सौ करोड़ रूपया रखा गया है। सीमान्त क्षेत्रों के विकास को श्री मोदी सरकार कितना महत्व दे रही है, वह इस बजट राशि से स्पष्ट हो जाता है। प्रधानमंत्री जी श्री केदारनाथ में कहते हैं, केदार बाबा ने बुलाया है और बजट में केदार बाबा के घर और ससुराल के पैसे का आंवटन घटा देते हैं। उत्तराखण्ड #सूनामी के बाद तत्कालीक केन्द्रीय मंत्रिमण्डल द्वारा सन् 2013 में सात हजार नौ सौ आठ करोड़ रूपये का पुर्ननिर्माण एवं पुर्नवास पैकेज स्वीकृत किया गया था। इसका कुछ ही अंश उत्तराखण्ड को मिला है। बताया जा रहा है कि, उसकी बकाया राशि को चारधाम सड़क सुधार योजना में खर्च किया जा रहा है। यह सरासर अन्याय है। अब भी श्री केदारनाथ जी सहित विभिन्न प्रभावित क्षेत्रों में बहुत पुर्ननिर्माण कार्य अवशेष हैं। तीन सौ तिरेपन गाँवों का पुर्नवास का प्रश्न लम्बित है। वर्ष 2013 में स्वीकृत धनराशि का अवशेष उत्तराखण्ड को मिलना चाहिये। सरकार चाहे किसी पार्टी की हो, कुछ सवाल राज्य के सार्वभौम हित के हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता है। मुख्यमंत्री को चाहिये कि, वे एक सर्वदलीय शिष्टमण्डल को लेकर प्रधानमंत्री जी के पास चलें और इन बिन्दुओं पर उनसे चर्चा करें। पिछले कुम्भ के मौके पर हम सब सांसद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री के नेतृत्व में डॉ. मनमोहन सिंह जी से मिले थे और राज्य को कुम्भ की व्यवस्था के लिये सात सौ करोड़ रूपया प्राप्त हुआ। जिसका बड़ा लाभ उत्तराखण्ड को हुआ।
राष्ट्रीय गंगा योजना में वर्ष 2017-18 में त्याईस सौ करोड़ रूपया रखा गया था। इस वर्ष भी यह राशि त्याईस सौ करोड़ रूपया ही है। स्पष्ट है कि इस वर्ष के केन्द्रीय बजट में गंगा सफाई व जल संग्रहण के प्रश्न की बड़ी उपेक्षा हुई है। गंगा, गाय व राम का राजनैतिक शोषण करने वालों ने हमेशा इन तीनों प्रसंगों के लिये जो (जुबानी सेवा) लिप सर्विस दी है। इस वर्ष का बजट कोई अपवाद नहीं है। #नमामि_गंगे पर बीस हजार करोड़ रूपया खर्च करने वालों ने पिछले वर्ष तक दो हजार करोड़ रूपया गंगा सफाई पर खर्च नहीं किया है। इस वर्ष भी गंगा सफाई सहित नदियों की सफाई की मद में बजटीय प्राविधान पिछले वर्ष की तुलना में कम है। यू.पी.ए. ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया, गंगा रिवर वेशन अथोरिटी का गठन किया। उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखण्ड इसके सदस्य राज्य थे। प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता में सभी बड़े फैसले होते थे और बजट का निर्धारण होता था। उत्तराखण्ड में जितने सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बने हैं या स्वीकृत हैं, सब उसी समय के हैं। स्पर्श गंगा से लेकर नमामी गंगा कार्यक्रम तक अभी भी उत्तराखण्ड के हिस्से में कुछ नहीं आया है। चण्डी घाट योजना हमारे कार्यकाल में स्वीकृत हुई, उसका विस्तारीकरण भी लटका हुआ है। सच है, जब जुमले गढ़ने से वोटों की बरसात हो रही है, तो फिर पानी के लिये नहर क्यों खोदी जाय। वर्तमान केन्द्र सरकार इसी दर्शन शास्त्र का अनुसरण कर रही है। धन्य है उत्तराखण्ड के धैर्य व राजनैतिक चुप्पी की। राज्य के सार्वभौमिक हित के प्रश्नों पर कब सन्नाटा टूटेगा, यह लाख टके का सवाल है।