मामचन्द शाह
मानवता को शर्मसार कर रही जौनपुर क्षेत्र की घटना
टिहरी जनपद के जौनपुर इलाके में पिछले कुछ समय से लगातार हो रही घटनाएं मानवता को शर्मसार कर रही हैं। इससे मानव-मानव में जहां भेद करने की पोल खुल रही है, वहीं आज के आधुनिक युग में अनुसूचित जाति वर्ग को दबा-कुचला समझने का भी प्रमाण पुख्ता हो रहा है।
उदाहरण के लिए 30 मई 2019 की घटना को ही देख लीजिए, जहां तहसील नैनबाग, जौनपुर में अनुसूचित जाति की नौ साल की मासूम से निर्ममतापूर्वक बलात्कार किया गया। आरोपी गांव का ही २४ वर्षीय सवर्ण जाति का विपिन पंवार पुत्र महिपाल पंवार है, जिसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।
दुखद यह है कि इस घटना की खबर मिलने पर सोशल मीडिया में सवर्ण समाज के कुछ लोग इस घटना का बचाव करने के लिए सक्रिय हो गए। उनका तर्क था कि हर घटना को अनु.जाति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। उनका तर्क ठीक तो है, लेकिन सटीक नहीं। ऐसे लोगों को परिवार के अतीत की जानकारी नहीं है या फिर वे जान-बूझकर मुद्दा भटकाने की कोशिश कर रहे हैं।
जानकारी के लिए अपने पाठकों को अवगत कराना चाहेंगे कि चार साल पहले भी अनु.जाति के इसी परिवार की युवती के साथ इसी गांव के सवर्ण युवकों ने अपना मुंह सामूहिक रूप से काला किया था। बाद में दबंग लोगों ने धनबल और ऊंची पहुंच के चलते मामले को रफा-दफा करवा दिया था। अब घटना को डिफेंड करने वाले लोगों को कौन समझाए कि जब तीन-चार साल के बीच एक ही परिवार की दो-दो लड़कियां सवर्ण यौनाचार का शिकार हो गई हों तो फिर इसे अनु.जाति के दमन से जोड़कर न देखा जाए तो और क्या कहें?
तब गांव की बदनामी का हवाला देते हुए मामले को निपटाने के लिए पांच लाख में रजामंदी तय हुई थी। हालांकि यह अलग बात है कि मामला सुलटाए जाने के बाद पीडि़त परिवार को पैसे तो नहीं मिल पाए, लेकिन उनकी दूसरी मासूस बिटिया को गहरा जख्म जरूर दे दिया गया। बताया जा रहा है कि इस बार भी पीडि़त परिवार पर मामले को रफा-दफा करने का भारी दबाव बनाया जा रहा है।
यदि तब उन आरोपियों को कठोर दंड दिया जाता तो शायद इस अबोध बालिका को ऐसे दंरिंदों द्वारा दिया गया असहनीय दर्द नहीं सहना पड़ता, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर इन लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है। यही कारण है कि अबकी घटना में भी पीडि़त परिवार पर मामले को दबाने का भारी दबाव है। इस तरह की लगातार बढ़ रही घटनाओं में आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा देने वाले जुमले की जगह अब समय आ गया है कि एक-दो दंरिदों को फांसी का प्रावधान कर दिया जाए (चाहे वह किसी भी जाति-धर्म से ताल्लुक रखता हो) तो ऐसे घिनौने अपराध से बहुत हद तक कमी लाई जा सकती है।
यदि किसी ऊंची पहुंच वाले लोगों या फिर अल्पसंख्यकों के साथ ही ऐसी घटना घटी होती, तो शायद टिहरी से लेकर देहरादून तक जगह-जगह कैंडल मार्च व धरना-प्रदर्शन हो रहे होते, लेकिन अनुसूचित जाति के निर्बल लोगों के साथ घटी इस घटना के वक्त सामाजिक कार्यकर्ता जबर सिंह वर्मा व आरपी विशाल जैसे युवाओं की सक्रियता का परिणाम है कि आरोपी विपिन पंवार दूसरे दिन ही गिरफ्तार कर दिया गया। बावजूद इसके तमाम एनजीओ और छोटे-मोटे मुद्दों तक पर भी बड़ी-बड़ी फेंकने वालों को तो इस घटना पर कुछ कहने के लिए मानो सांप सूंघ गया है। हां अपवादस्वरूप कुछ सोशल वर्कर ने सोशल मीडिया पर इस घटना की निंदा जरूर की। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों पर उम्मीद रखना तो समय व्यर्थ करने जैसा है। अगर उन्होंने पीडि़त के पक्ष में कुछ बोल दिया तो उनके वोट बैंक की खेती नष्ट हो सकती है।
बताते चलें कि यह वही जौनपुर क्षेत्र है, जहां २६ अप्रैल को कुर्सी पर बैठकर खाना खाने पर जितेंद्र दास की जमकर पिटाई की गइ थी। बाद में जितेंद्र ने ५ मई को इलाज के दौरान देहरादून के अस्पताल में दम तोड़ दिया था। जितेंद्र दास के बसाणगांव व सेंदूल गांव आसपास हैं।
एक माह के भीतर ही अनु.जाति वर्ग पर दो-दो जुल्म होना लघु संकेत दे रहा है कि यदि आरोपितों पर कड़ी सजा का प्रावधान नहीं किया जाता तो भविष्य में इस वर्ग पर जुल्मों की लंबी फेहरिस्त हो सकती है। हालांकि इसे कदापि न समझा जाए कि सभी क्षेत्रवासियों की सोच एक जैसे होगी। ऐसे में उच्च विचार रखने वाले सवर्ण भाईयों से उम्मीद की जाती है कि उन्हें बेर के पेड़ से एक सीख जरूर लेनी चाहिए। जिस प्रकार इस पेड़ में कांटे ही कांटे होते हैं, लेकिन जब मीठे बेर खाने की इच्छा होती है तो पहले कांटों का सफाया किया जाता है। ठीक इसी प्रकार अपने प्रभाव व उच्च विचारों का इस्तेमाल करते हुए क्षेत्र के सभी लोगों को छुआछूत और ऐसे घिनौने अपराधों से छुटकारा दिलाने के लिए बड़ा दिल दिखाते हुए आगे आना चाहिए, तभी समाज में भाईचारा बना रहेगा।