टिहरी के जामणीखाल में एक सब स्टेशन का निर्माण करने के दौरान ठेकेदार ने विभागीय पत्थरों का उपयोग कर घटिया सामग्री से सब स्टेशन बनाया, किंतु ठेकेदार से वसूली के आदेश दरकिनार कर अन्य अफसरों ने कंपनी को कर दिया पूरा भुगतान
अमर सिंह धुंता
अधिकारी किस तरह से सरकारी खजाने से अपनी जेबें भरते हैं, इसका एक कारनामा उत्तराखंड पावर कारपोरेशन के श्रीनगर डिविजन द्वारा बनाया गया ३३ केवी का विद्युत सब स्टेशन भी है। टिहरी गढ़वाल के जामनीखाल में सब स्टेशन बनाने के लिए यूपीसीएल ने जून २०१२ में सग्गी इलेक्ट्रिक कंपनी से अनुबंध किया था। इस निर्माण कार्य में अधिकारियों ने जमकर कमीशनबाजी की और सरकारी राजस्व को चूना लगाया।
अनुबंध की शर्तों के मुताबिक इस काम को जून २०१२ में शुरू होकर नौ माह में पूर्ण कर फरवरी २०१३ में समाप्त करना था। अनुबंध की शर्तों के मुताबिक सर्वे, ड्राइंग, डिजाइन, बीओक्यू आदि सग्गी कंस्ट्रक्शन कंपनी को विभाग से स्वीकृत करानी थी, किंतु काम समाप्त होने की तिथि तक कंटूर शीट के अलावा कंपनी ने कुछ भी नहीं किया।
ऐसे हुआ घटिया काम
दरअसल कंपनी ने यह ठेका महमूद अली नाम के ठेकेदार को दिया था और उसने भी यह काम एक स्थानीय ठेकेदार प्रताप सिंह कैंतुरा को सबलेट कर दिया। कैंतुरा ने साइड पर खुदाई से प्राप्त पत्थर बेचने शुरू कर दिए और घटिया गुणवत्ता के विभागीय पत्थरों से दीवार बना दी। न तो इसकी ड्राइंग स्वीकृत कराई, न ही विभागीय मानक अपनाए और न ही सिविल खंड को इसकी सूचना देना जरूरी समझा।
सिंह ने पाई गुणवत्ता खराब
परिणाम यह हुआ कि मानकों के विपरीत निम्नतम गुणवत्ता की बनाई गई ६२ मीटर लंबाई की दीवारें बनने के एक महीने बाद ही जगह-जगह से टूट गई। अधिशासी अभियंता एसपी सिंह ने २० फरवरी २०१३ को इस कार्य का निरीक्षण किया और पाया कि इस दीवार की गुणवत्ता, नींव की चौड़ाई, सेक्शन व ढाल मानकों के अनुरूप नहीं थे। एसपी सिंह ने पाया कि दीवार की गुणवत्ता तो खराब थी ही, साथ ही ठेकेदार ने यहां से प्राप्त पत्थरों को साइड से बाहर भी भेजा था।
इस जांच में विभागीय हित में ठेकेदार से इसकी वसूली की संस्तुति भी की थी। इसके निर्माण कार्य की जांच तत्कालीन अवर अभियंता विकास कपिल ने भी की थी और पाया था कि मानकों के विपरीत रिटेनिंग वाल बनाई गई है और निम्न गुणवत्ता के कारण दीवार कभी भी गिर सकती है।
विभागीय अधिकारियों ने ठेकेदार द्वारा विभागीय पत्थरों और घटिया सामग्री का पैसा काटकर ही ठेकेदार को भुगतान करने की अनुमति दी थी।
दूसरे ने दी क्लीन चिट
इस निर्माण कार्य को लेकर जब स्थानीय लोगों ने सवाल खड़े करने शुरू किए तो इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी मांगी। जानकारी में पता चला कि अधिकारियों ने मिलीभगत करके ठेकेदार को पूरा भुगतान कर दिया। एक तरफ तो एक अधिशासी अभियंता ने १५ जनवरी २०१३ को सारे आरोप सही पाए थे और विभागीय नुकसान की भरपाई करने के बाद ही ठेकेदार को भुगतान करने के आदेश दिए थे, जबकि दूसरे अधिशासी अभियंता डीएस खाती ने अपनी जांच आख्या में कहा कि साइड पर विभाग द्वारा पत्थर स्टोर नहीं किया गया है और न ही प्रताप सिंह कैंतुरा ने बाहरी व्यक्तियों को पत्थर निर्गत कराया था।
सुलगता सवाल
जब डीएस खाती की रिपोर्ट पर जानकारी मांगी गई कि यदि निर्माण कार्य विभागीय सामग्री से कराए गए तो उक्त सामग्री का भुगतान ठेकेदार को क्यों किया गया? और यदि पत्थर बाहर से मंगवाकर निर्माण कार्य किया गया तो जिन ट्रकों में पत्थर लाया गया और जो रायल्टी आदि जमा की गई, उसकी सूचना मांगे जाने पर विभाग यह क्यों कह रहा है कि सूचना शून्य है।
जाहिर है कि इस पूरे मामले में विभाग के अफसरों ने डीएस खाती की रिपोर्ट को आधार बनाकर मिलीभगत कर ठेकेदार को २५ लाख रुपए का भुगतान कर दिया और सरकारी खजाने को चूना लगाया।
इस निर्माण कार्य में अधिकारियों ने जमकर कमीशनबाजी की और सरकारी राजस्व को चूना लगाया।