उत्तराखंड में दलबदल के अचूक हथियार का प्रयोग करके सत्ता में आई भाजपा ने अपनी यही शैली राज्य सहकारी बैंक की कुर्सी कब्जाने के लिए भी अपनाई
जगमोहन रौतेला
विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता की ताकत के बल पर भाजपा अब हर उस जगह कब्जा करना चाहती है, जहां अभी भी कांग्रेस का कब्जा है। इसके लिए एक बार सत्ता के प्रलोभन व दबाव में दलबदल करवाने से भी भाजपा को परहेज नहीं है। इसका पहला झटका भाजपा ने राज्य सहकारी बैंक के चुनाव में कांग्रेस को गत 18 अप्रैल 2017 दिया। जब उसने दलबदल के सहारे सहकारी बैंक के चुनाव में कांग्रेस को हराकर उस पर कब्जा कर लिया। सहकारी बैंक के हल्द्वानी में हुए चुनाव से एक दिन पहले ही भाजपा ने सत्ता की ताकत का भरपूर उपयोग करते हुए बैंक के चार कांग्रेसी निदेशकों को अपने पाले में खींच लिया। जिसके बाद भाजपा की एकतरफा जीत सुनिश्चित हो गई, क्योंकि 12 सदस्यीय निदेशक मंडल में इसके बाद भाजपा के 8 तो कांग्रेस के केवल 4 सदस्य ही बचे। दलबदल से पहले स्थिति एकदम उलट थी। कांग्रेस के पास 8 तो भाजपा के पास मात्र 4 ही सदस्य थे।
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वालों में अल्मोड़ा से रमेश राम, हल्द्वानी से किरन नेगी, उत्तरकाशी से बर्फी भक्ति और हरिद्वार से देवेन्द्र अग्रवाल थे। इससे कुछ समय पहले ही पिथौरागढ़ के हयात सिंह मेहरा, टिहरी के घनश्याम नौटियाल और हल्द्वानी के नवीन पंत कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो चुके थे। कांग्रेस से सहकारी बैंक के अध्यक्ष का पद छीनने को भाजपा व प्रदेश सरकार ने राजनैतिक प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। इसी कारण से कांग्रेस के सदस्यों को भाजपा में लाने के लिए परिवहन मंत्री यशपाल आर्य, उच्च शिक्षा व सहकारिता राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, डीडीहाट के विधायक व पूर्व सहकारिता मंत्री बिशन सिंह चुफाल और नैनीताल के विधायक व सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष संजीव आर्य को जिम्मेदारी दी गई थी। चुफाल व आर्य ने अपने पुराने संबंधों व अनुभवों का लाभ उठाते हुए कांग्रेस की जबरदस्त नाकेबंदी के बाद भी तोडफ़ोड़ करने में सफलता पा ही ली।
जब 18 अप्रैल 2017 को सहकारी बैंक के अध्यक्ष के चुनाव का वक्त आया तो कांग्रेस की ओर से अध्यक्ष पद के दावेदार व कार्यवाहक अध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह ने नामांकन ही नहीं किया। केवल भाजपा की ओर से अध्यक्ष पद के दावेदार दान सिंह रावत ने ही नामांकन किया। विपक्ष में किसी का नामांकन न होने से दान सिंह निर्विरोध राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए। वे इससे पहले भी भाजपा सरकार के समय 2008 से 2012 तक सहकारी बैंक के अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी ने एक बार फिर से उनके ऊपर भरोसा जताया। दानसिंह भाजपा में चुनाव प्रबंधन समिति के भी अध्यक्ष हैं। सहकारी बैंक के निदेशक मंडल में चुनाव से पहले कुल 15 निदेशक थे। जिनमें दस निदेशक दस जिलों पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल, ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार, देहरादून, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, पौड़ी गढ़वाल व चमोली से थे। बागेश्वर, चम्पावत और रुद्रप्रयाग में सहकारी बैंक न होने से वहां से कोई निदेशक नहीं था। इसके अलावा एक निदेशक राज्य सहकारी संघ से और दो निदेशक दूसरी सहकारी संस्थाओं से चुनकर आते हैं। इसके अलावा एक सदस्य को सरकार मनोनीत करती है, जबकि सदस्य प्रबंध निदेशक भी होते हैं, जो कि सरकारी अधिकारी होते हैं, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होता है।
भाजपा ने सहकारी बैंक में कब्जा करने की बिसात उसी दिन से बिछानी शुरू कर दी थी, जब विधायक बनने के बाद बैंक के अध्यक्ष पद से 18 मार्च 2017 को संजीव आर्य ने त्यागपत्र दिया था। नियमानुसार पंचायत, स्थानीय निकाय, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा का सदस्य बनते ही अध्यक्ष को स्वयं पद मुक्त मान लिया जाता है। अध्यक्ष के हटते ही बोर्ड की बैठक बुलाकर उपाध्यक्ष को कार्यभार सौंप दिया जाता है, पर सहकारिता सचिव व प्रबंध निदेशक के तौर पर कार्य देख रहे विजय ढौंडियाल ने ऐसा न करके सहकारिता निर्वाचन प्राधिकरण को चुनाव करवाने के लिए पत्र भेज दिया। इसके बाद 3 अप्रैल को बैंक के उपाध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह ने बोर्ड सदस्यों की उपस्थिति में अध्यक्ष का पद ग्रहण कर लिया और एमडी ढौंडियाल को हटाने के निर्देश भी जारी कर दिए और स्थाई नियुक्ति होने तक एनपीएस ढाका को एमडी नियुक्त कर दिया। अगले दिन 4 अप्रैल को प्रदेश सरकार ने ढाका को हटाकर दीपक कुमार को एमडी बना दिया। उसके बाद 6 अप्रैल को मानवेन्द्र सिंह ने एक बार फिर से ढाका की नियुक्ति एमडी पद पर कर दी।
इसके बाद चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगवाने के लिए मानवेंद्र सिंह उच्च न्यायालय चले गए। जहां 9 अप्रैल को एकल पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। जिससे प्रदेश सरकार ने राहत की सांस ली। इसके बाद प्रदेश सरकार ने चमोली जिला सहकारी बैंक के बोर्ड सदस्य राजेन्द्र सिंह नेगी के पिछली सरकार द्वारा किए गए मनोनयन को रद्द कर दिया। जिससे कांग्रेस को एक राजनैतिक झटका लगा। प्रदेश सरकार की मंशा यहीं से साफ हो गई थी कि वह किसी भी तरह से सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा चाहती है और यही उसने किया। अपने गलत प्रबंधन के कारण कांग्रेस को एक बार फिर से चुनावी मात खानी पड़ी है।