चंद्रवीर गायत्री
उत्तरकाशी जनपद के पुरोला निवासी युवा कवि व पत्रकार नीरज उत्तराखण्डी ने अपनी काव्यकृति ‘रावण फिर से जाग उठा हैÓ में तटस्थ भाव से समाज में पनप रही कुप्रवत्तियों, भ्रष्टाचार, राजनैतिक प्रपंचों, शोषण, दुराचार, चारित्रिक पतन, घूसखोरी व अराजकता पर खुलकर तीखा प्रहार किया है। इस काव्यकृति में पाठकों को अपना समय का विद्रूप चेहरा देखने को मिलेगा और चेहरे की यही परख कविता के प्रति नीरज की प्रतिबद्धता को नई दिशा देने में सहायक होंगी। काव्यकृति के माध्यम से नीरज ने वर्तमान परिवेश में घटित हो रही विभिन्न घटनाओं व समाज के हर पहलू को छूने का प्रयास किया। इसके लिए कवि निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। प्राय: देखा जाता है कि वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों में तरह-तरह के रावण मौजूद हैं, जिससे लडऩे के लिए नीरज जैसे युवाओं की काव्यकृति बल प्रदान करती है।
उल्लेखनीय है कि क्षेत्र में ऐसी प्रतिभाओं की कमी नहीं है। आवश्यकता है उन्हें तलाशने व तराशने के साथ ही उचित प्रोत्साहन व मार्गदर्शन की, जिससे उनकी प्रतिभा देश व उत्तराखंड का नाम रोशन कर सके।
‘शांति की तलाश में जिंदगी’ पुस्तक का लोकार्पण
राजभवन में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखिका विचारक डा. राधिका नागरथ की पुस्तक ‘शांति की तलाश में जिन्दगीÓ के विमोचन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल कृष्णकांत पॉल ने भारतीय संस्कृति और मूल्यों को अपनाने का आह्वान करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में मन की स्थिरता के लिए ‘ध्यानÓ को सबसे सशक्त उपाय बताया गया है। उन्होंने पुस्तक को सरल भाषा में रोचक उदाहरणों तथा दैनिक जीवन के उपाख्यानों का दार्शनिक दस्तावेज बताया।
लेखिका डा. राधिका नागरथ अपनी पुस्तक की विषय-वस्तु पर प्रकाश डालती हुई बताती हैं कि कुछ व्यावहारिक-परीक्षित समाधानों पर आधारित यह पुस्तक पाठकों को मन की शांति प्रदान करने में मदद कर सकती है। सन् 2009 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स में यूनाइटेड नेशन्स द्वारा ‘सतत शांतिÓ के लिए आयोजित सम्मेलन में कतिपय प्रतिभागियों के शांति संबंधी प्रेरक विचारों को भी पुस्तक में शामिल किया गया है। राधिका अपनी पुस्तक में लिखती हैं कि शांति हम मनुष्यों का सहज स्वरूप है, पर हर समय इस माया प्रबंध में कुछ हासिल करने की दौड़ में अपनी सहज प्रकृति से हम दूर हो जाते हैं। यही अशांति हमें अपूर्णता का अहसास दिलाती है और एक पूर्ण जीवन के बजाय टुकड़ों में बंटा हुआ जीवन जीते हैं।
‘क्षितिज’ तक फैली ‘अंतहीन चुप्पी’
उत्तराखंड सचिवालय में समीक्षा अधिकारी के पद पर तैनात डा. अशोक कुमार मिश्र ने हाल ही में अपना नया कविता संग्रह प्रकाशित कराया है। अंतहीन चुप्पी के नाम से प्रकाशित इस कविता संग्रह में डा. अशोक कुमार मिश्र ने समाज, प्रकृति तथा राष्ट्रवाद की जीवंत भावनाओं को बखूबी कविताओं में ढाला है।
क्षितिज उपनाम से लिखने वाले डा. अशोक कुमार मिश्र के इससे पहले दो और कविता संग्रह प्रकाशित होकर बाजार में आ चुके हैं। उनके कविता संग्रह मैं चुप हूं और उनसे कहना काफी चर्चित रहे। अभ्युदय वात्सल्यम संस्था के माध्यम से डा. मिश्र उत्तराखंड के सामान्य ज्ञान पर प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए कई प्रकाशन भी निकाल रहे हैं। इनमें सिविल सेवा परीक्षा सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए काफी अध्ययन सामग्री है। इससे पहले प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उनकी सामान्य हिंदी और भारतीय राजव्यवस्था सहित विज्ञान प्रौद्योगिकी और सीसैट आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
डा. मिश्र की समाजसेवा में भी काफी रुचि है और वह सचिवालय से बचे हुए समय का उपयोग स्कूली छात्रों को गणित, विज्ञान पढ़ाने से लेकर विभिन्न प्रकार के योग शिविर लगाने में भी करते हैं। अभ्युदय के नाम से वह करेंट अफेयर्स पर एक पत्रिका का प्रकाशन भी कर रहे हैं। इससे पहले वह गंगा बचाओ अभियान के तहत एक वीडियो एल्बम में भी काम कर चुके हैं।