गिरीश गैरोला
जिले के डीएम आईएएस आशीष चौहान ने अपनी कार्यशैली से साबित कर दिया है कि अगर कोई भी इंसान बेहतर करने की ठान के तो कोई रुकावट उसका मार्ग नही रोक सकती है। नगर ऊत्तरकाशी में खाली पड़ी झील में जल क्रीड़ा शुरू करने के बाद गांव के किसानों की इनकम बढ़ाने के लिए किसान मिल्क पार्लर और उनके उत्पाद को बाजार देने के लिए किसान आउटलेट बनाये हैं। इसके बाद पर्यटन की नई परिभाषा गढ़ते हुए फार्म टूरिज्म और नगर को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से एन्टी स्पिट कम्पैन चलाने में जुटे गए हैं।
उत्तरकाशी के रैथल गांव से शुरू फार्म टूरिज्म का कांसेप्ट
डीएम ऊत्तरकाशी डॉ आशीष चौहान ने बताया कि नेपाल के टूरिज्म मॉडल को वह उत्तरकाशी जनपद के सीमांत गांव रैथल में शुरु करने जा रहे हैं । रैथल एक पर्यटक गांंव है और इसके लिए वेबसाइट बनकर तैयार हो गयी है। जल्द ही इसकी नेट से बुकिंग शुुुरू हो जाएगी।
पर्यटन के इस मॉडल में देश- विदेश से आये पर्यटकों को 15 से 20 दिन अपने गाँव मे ठहराया जाता है। इन दिनों इन्ही से खेती भी करवाई जाती है।इसके बाद अपने सामने पैदा किये उत्तराखंड के ऑर्गेनिक उत्पाद को प्रदेश से बाहर भी बढ़ावा मिलेगा और पर्यटक को रोमांच के साथ शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक खाना भी खाने को मिलेगा।
होम स्टे की इस योजना से पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति और रीति रिवाज से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा और आने वाले समय मे यही संस्कृति और अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने का काम भी करेगी।
सार्वजनिक स्थलों पर थूकने की मनाही
स्वच्छ भारत अभियान में एक और कदम आगे बढ़ाते हुए डीएम ऊत्तरकाशी डॉ आशीष चौहान ने सार्वजनिक स्थलों पर थूकने की प्रवृत्ति पर नकेल कसने के लिए एक पहल शुरू की है, जिसकी पहली कड़ी में लोगों को ऐसा न करने के लिए जागरूक किया जाएगा , और बार-बार नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कार्यवाही भी अमल में लायी जाएगी। आईएएस चौहान की माने तो ब्रोकन विंडो थ्योरी पर आधारित उनका ये कॉन्सेप्ट है , जिसमे खिड़की के पहला शीसा टूटते ही कार्यवाही करते हैं तो अन्य कांच टूटने से बच जाते हैं, किन्तु यदि आप इसे इग्नोर करते है तो तो आम लोगो मे नियम का पालन न करने की प्रवृत्ति बढने लगती है। दरअसल नगर में भ्रमण के दौरान सरकारी और निजी भवनों की दीवारें पीक से गंदी होते देख आईएएस चौहान ने इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए अभियान चलाने की ठानी।
इसी कॉन्सेप्ट पर ये इवेंट शुरू किया गया ताकि शहर साफ भी हो सके और लोगों को नियम का पालन करने की आदत भी पड़ सके। जिले में आईएएस अधिकारी की तैनाती दो अथवा तीन वर्ष के लिए अधिकतम होती है किंतु सूबे में जिस तरीके से नौजवान आईएएस अधिकारी जनहित के कार्यों में रुचि लेने लगे हैं, उससे एक सुखद और स्वावलंबी उत्तराखंड की उम्मीद की जा सकती है।