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पाई-पाई का हिसाब!

June 3, 2017
in पर्वतजन
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भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड में भी पब्लिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम का कार्यालय स्थापित हो गया है। यह कार्यालय इस बात पर पल-पल की नजर रखेगा कि केंद्र से कब कितना धन रिलीज हुआ और राज्य सरकार के कार्यालयों ने कब-कब कितना-कितना पैसा किस प्रकार से खर्च किया।

पर्वतजन ब्यूरो

अब राज्य और केंद्र में अलग-अलग दलों की सरकार होने पर केंद्रीय मदद को लेकर एक दूसरे पर यूं ही आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगाए जा सकेंगे। केंद्र सरकार ने केंद्र पोषित योजनाओं के तहत मिलने वाले बजट का सदुपयोग और अनुश्रवण करने के लिए पब्लिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) तैयार किया है। इसके तहत राज्यों में एक प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग यूनिट का गठन किया गया है। भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाली इस परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड में भी इस कार्यालय ने पिछले वर्ष नवंबर-दिसंबर से काम करना शुरू किया है। यह राज्यों में बजट के खर्च को लेकर सुधार की एक प्रभावी स्कीम है। नेशनल इंफोरमेशन सेंटर (एनआईसी) की मदद से टे्रजरी से विभिन्न विभागों को अवमुक्त किए जाने वाले धन की मॉनिटरिंग की जाती है।
अब तक होता यह था कि टे्रजरी से विभागों को भारी-भरकम धनराशि अवमुक्त तो हो जाती थी, किंतु धीमा उपयोग होने के कारण विभागों के खातों में व्यर्थ ही पड़ी रहती थी। अब पीएफएमएस यह सुनिश्चित करेगा कि विभागों को खर्च के अनुपात में ही धन अवमुक्त किया जाए। यही नहीं बल्कि पीएफएमएस धन के खर्च के आखिरी बिंदु तक इसका निरीक्षण भी करता रहेगा।
दूर होगा भ्रम
केंद्र पोषित योजनाओं में केंद्र सरकार कई योजनाओं में सीधे विभागों को पैसा जारी कर देती है। इससे शासन को भी केंद्र सरकार से कुल जारी किए गए बजट के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती थी। इससे पहले इस तरह की मॉनिटरिंग के लिए कोई अलग यूनिट न होने के कारण केंद्रीय पोषित योजनाओं के बजट को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार में भ्रम की स्थिति राजनीतिक रंग ले लेती थी।
पीएफएमएस की शुरुआत वर्ष २००८ में प्रयोग के तौर पर कुल चार योजनाओं की मॉनिटरिंग के लिए की गई थी। शुरू में यह योजना कुल चार राज्यों में लागू की गई। इसकी सफलता को देखते हुए वर्ष २०१३ में भारत सरकार ने यह व्यवस्था सभी केंद्र पोषित योजनाओं के लिए लागू कर दी। इस सिस्टम की सहायता से प्रतिदिन होने वाले खर्च की मॉनिटरिंग आसानी से की जा सकेगी।
विभागीय मुखिया और विभागीय सचिव सहित पीएमयू कार्यालय केंद्रपोषित योजनाओं में होने वाले खर्चों को ऑनलाइन मॉनिटर कर सकते हैं।
ग्राम स्तर पर नजर
उत्तराखंड में पीएफएमएस को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राज्य स्तर पर स्टेट प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग यूनिट का गठन किया गया है तथा जिला स्तर पर डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग यूनिट का गठन किया जाना है। राज्य स्तर पर इसके लिए परामर्श और मार्गदर्शन के लिए मुख्य सचिव अध्यक्षता में विभिन्न केंद्रीय पोषित योजनाओं से जुड़े विभागों और वित्त विभाग के अधिकारियों की सदस्यता में राज्य सलाहकार समूह का गठन किया गया है। जिला स्तर पर जिलाधिकारी की अध्यक्षता और जिला स्तरीय अधिकारियों की सदस्यता में डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट का गठन किया गया है।
यह सिस्टम उन सभी विभागों में लागू होगा, जिन्हें भारत सरकार से विभिन्न स्कीमों में अनुदान प्राप्त होता है। पीएफएमएस का पोर्टल कोषागार के पोर्टल से जोड़ा गया है। जिससे दोनों पोर्टलों के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान स्वत: ही होता रहेगा। इसके लिए पीएमयू में स्थापित डाटा सेंटर में हैल्प डेस्क नंबर भी शुरू किया गया है। ८८९९८९०००० से पीएफएमएस के बारे में सूचनाएं ली जा सकती हैं। केंद्र से अनुदान लेने वाले सभी विभागों को पीएफएमएस के पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा, जिसके बाद उन्हें एक लॉगिन पासवर्ड दिया जाएगा और राज्य से लेकर ग्राम पंचायत तक के जिस भी स्तर तक धनराशि आवंटित की जानी हो, उन सबका भी पंजीकरण पीएफएमएस के पोर्टल पर कराया जाएगा।
पीएफएमएस की नवनियुक्त नोडल अधिकारी जसपाल कौर प्रद्योत बनाई गई हैं। जसपाल कौर इंडियन सिविल रेवेन्यू सर्विस की अधिकारी हैं। मुख्य सचिव ने सभी विभागों को तत्काल पीएफएमएस से जुडऩे के निर्देश जारी किए हैं और चेतावनी दी है कि जो भी विभाग पीएफएमएस के माध्यम से लेन-देन नहीं करेंगे, उन्हें भविष्य में भारत सरकार के स्तर से प्राप्त होने वाले अनुदान बंद किए जा सकते हैं। तत्कालीन मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने ६ सितंबर २०१६ को यह आदेश निकाले थे कि इस संबंध में हो रही प्रगति की समीक्षा प्रत्येक १५ दिन में की जाएगी, किंतु उनके रिटायर होने के बाद से यह समीक्षा बैठकें भी ठंडे बस्ते में चली गई हैं।

”इस यूनिट के मुख्यत: दो कार्य हैं। पहला यह मॉनिटर करना है कि किस समय तक कितना धन खर्च किया गया है और दूसरा यह सुनिश्चित करना है कि धन का उपयोग किस प्रकार से हो रहा है।”

– अमित नेगी, सचिव वित्त


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