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बेहतर पुनर्वास से ही बनेगा ऊर्जा प्रदेश

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शिव प्रसाद सेमवाल//

9 नवंबर 2000 से लेकर 9 नवंबर 2017 तक उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने का भी नारा लगातार बुलंदी पर है। पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती, पर कई रिपोर्ट्स, किताबें व खबरें लिखी जा चुकी हैं। १७ वर्षों में बारी-बारी से प्रदेश में भाजपा-कांग्रेस की सरकारें बनती रही हैं, किंतु प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाने की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सके। एक ओर सरकार की लचर प्रशासनिक व राजनैतिक अक्षमता है तो दूसरी ओर न्यायालयों के हस्तक्षेप।
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार सरोवर बांध परियोजना का उद्घाटन किया और देश को बताया कि ये बांध परियोजना भारतवर्ष के लिए किस प्रकार लाभकारी है। इससे न सिर्फ देश को बिजली मिलने जा रही है, बल्कि पानी की आपूर्ति के साथ-साथ कई स्थानों पर बाढ़ की आशंका भी इसी बांध ने अब समाप्त कर दी है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के इस भाषण पर लोगों ने खूब तालियां बजाई, किंतु लोग यह भूल गए कि गुजरात में मुख्यमंत्री रहते तब नरेंद्र मोदी ने इसी परियोजना के विरोध में ५१ घंटे का उपवास भी किया था। इस घटना से यह बात और पुख्ता हो जाती है कि देश में विकास योजनाएं इसी प्रकार राजनीति की भेंट चढ़ती रहती हैं।
उत्तराखंड में विद्युत परियोजनाओं का इतिहास इसलिए बेहतर नहीं दिखा, क्योंकि काम शुरू होने से पहले यहां विवाद खड़े करने का भी चलन रहा। सरकारों की कमजोर विस्थापन की नीतियों और भेदभावपूर्ण विस्थापन के कारण भी लोगों का विश्वास नहीं जग पाया है।
२००७ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने एक साथ ५६ नई जल विद्युत परियोजनाएं शुरू करने का काम किया, किंतु वे ५६ जल विद्युत परियोजनाएं कुछ दिनों बाद ५६ घोटालों के नाम से जानी जाने लगी और बाद में सरकार ने विवाद रोकने के लिए सभी परियोजनाओं का आवंटन रद्द कर दिया। इसके बाद उरेडा के माध्यम से छोटी-छोटी विद्युत परियोजनाएं बनाने की बात हुई, किंतु वे भी परवान नहीं चढ़ सकी। आश्चर्यजनक रूप से उत्तराखंड के एक बड़े खाली भूभाग में भी सौर ऊर्जा का काम सरकारें नहीं कर सकीं।
२०१७ के विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी गंगोत्री विधानसभा के भाजपा प्रत्याशी गोपाल रावत के समर्थन में जनसभा करने उत्तरकाशी आए। अपने संबोधन के दौरान गडकरी ने उत्तरकाशी जनपद के लोगों को भरोसा दिलाया कि एनजीटी और न्यायालय के कारण उत्तरकाशी जनपद की जो दो जल विद्युत परियोजनाएं बंद की जा चुकी हैं, उन्हें पुन: शुरू किया जाएगा, ताकि पहाड़ का पानी पहाड़ के काम आ सके।
नितिन गडकरी ने तब भरोसा दिलाया कि वो दिल्ली जाकर ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल से बात कर ६०० करोड़ रुपए खर्च होने के बाद बंद पड़ी एनटीपीसी की ६०० मेगावाट की लोहारी-नागपाला परियोजना को शीघ्र शुरू करवाएंगे। भागीरथी ईको सेंसिटिव जोन और एनजीटी द्वारा लगाए गए अड़ंगे के बाद १४६१ मेगावाट की तीन बड़ी विद्युत परियोजनाएं बंद पड़ी हैं। जनसभा में दिए गए इस भाषण का प्रभाव भी हुआ और उत्तरकाशी जनपद की तीन में से दो सीटें भारतीय जनता पार्टी जीतीं।
उत्तरकाशी जनपद के लोहारी-नागपाला और पाला-मनेरी जैसी महत्वाकांक्षी जल विद्युत परियोजनाएं तब बंद कर दी गई, जबकि इन पर तकरीबन ६०० करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे। केंद्र सरकार निर्माणाधीन कंपनियों को नुकसान के एवज में उक्त रकम भी दे चुकी है।
केंद्र सरकार गत वर्ष एनटीपीसी को उनके द्वारा निर्माणाधीन परियोजना बंद होने के बाद ५३६.३० करोड़ रुपए दे चुकी है। २०१० में २७७५ करोड़ रुपए लागत से बनाई जा रही लोहारी-नागपाला परियोजना को तब पर्यावरणीय कारणों का हवाला देकर बंद कर दिया गया। तमाम सुरंगों के काम पूरा होने के बाद जब ये काम रोके गए, तब से जनपद में न सिर्फ बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है, बल्कि काम करने वाले लोगों का उत्तराखंड से रुझान भी घटा है।
जिस प्रदेश में राज्य गठन के बाद मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लोगों ने पलायन करना ही बेहतर समझा, वहां आज रहने वाले लोग भी सुकून में नहीं हैं। पहाड़ में रहने वाले लोग जहां पानी की प्रचुर मात्रा है, जंगल है, हवा है और प्रकृति द्वारा दिए गए तमाम उपहार हैं, वहां आज किसान अपनी खेती से होने वाली उपज को बचाने के लिए कभी बंदरों से तो कभी सुअरों से संघर्ष कर रहा है।
१७ वर्षों में सरकारों की कमजोर नीतियों के कारण पहाड़ में लोगों के लिए रहने लायक इंतजामात नहीं हो सके। जहां एक ओर देशभर में जल विद्युत परियोजनाएं बेहतर ढंग से काम कर मुनाफे का सौदा साबित हो रही हैं, वहीं उत्तराखंड में इस पानी को फायदा का सौदा बनाने के लिए राजनीति का अखाड़ा बनाया जाता रहा है।

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