कमल जगाती
नैनीताल। उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलों में वन्य जीवों द्वारा किये जा रहे नुकसान के खिलाफ पीआईएल में खण्डपीठ ने सरकार और विभाग से नियमानुसार कार्यवाही करने को कहा है।
बीते कुछ वर्षो से उत्तराखंड के पहाड़ों में बन्दरों और जंगली सुवरों के आतंक का मामला उच्च न्यायालय पहुँच गया है। बागेश्वर जिले के गरुड़ निवासी जनार्दन लोहुमी, सतीश चंद्र जोशी, चंद्रशेखर बड़सीला और बागेश्वर के अशोक लोहनी, भूपेंद्र जोशी ने गरुड़ और बागेश्वर में बन्दरो के आतंक से हो रहे नुकसान से बचाने की प्रार्थना करते हुए न्यायालय में याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ताओ की ओर से बंदरों और जंगली सुवरों के साथ आवारा जानवरों से गरीब कास्तकारों की फसलों और अन्य खेती को हो रहे नुकसान, बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों पर हो रहे हमलों को विस्तार से याचिका में कहा गया है।
जिला प्रसाशन और वन विभाग के उच्चाधिकारियों, स्थानीय विधायक सहित समस्त जिम्मेदार अधिकारियों से पीड़ित जनता द्वारा कई बार मांग किये जाने के वावजूद कोई उपाय नहीं हो सके हैं।
याचिका में केंद्र सरकार के सचिव पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय सहित मुख्य सचिव उत्तराखंड शासन, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (सामान्य), प्रमुख मुख्य बन संरक्षक(वन्यजीव), मुख्य वन संरक्षक कुमाऊ संभाग नैनीताल, वन संरक्षक उत्तरी कुमाऊ अल्मोड़ा, जिलाधिकारी बागेश्वर, उप जिलाधिकारी गरुड़, सचिव उत्तराखंड पशु कल्याण बोर्ड देहरादून को पक्षकार बनाया गया है।
याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यू फ़्रेंड कॉलोनी रेसिडेंट्स बनाम भारत संघ एवं अन्य में 3.8.2007 को दिए गए निर्यण का हवाला देते हुए कहा गया है कि, उत्तराखंड में बन्दरों, आवारा जानवरों और जंगली सुवरों के आतंक के निवारण के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया जाए, जो इस समस्या के समाधान के लिए विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे।
आज बंदरों की समस्याओं से जुड़ी जनहित याचिकाओं को निस्तारित करते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति एन.एस.धानिक की खंडपीठ ने सरकार और वन विभाग को नियमानुसार कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं।