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मरीजों का पंजीकरण शुल्क ‘डकार गई कंपनी’

in पर्वतजन
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मामचन्द शाह//

गरीबों के इलाज के लिए ठेके पर दिए गए स्वास्थ्य केंद्रों के संचालकों ने मरीजों के पर्चे का 64 लाख सरकारी खाते में जमा ही नहीं करवाया

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की आड़ में एनजीओ सरकारी धन को जमकर ठिकाने लगा रहे हैं, जबकि आम जनमानस व गरीब-गुरबे इलाज के अभाव में दर-दर भटक रहे हैं।
उदाहरण के लिए हरिद्वार के दो एनजीओ धर्म ग्रामीण उत्थान संस्थान और फ्रेंड्स संस्था के आंकड़ों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी धन गोलमाल किया जा रहा है।
देहरादून के प्रसिद्ध आरटीआई एक्टिविस्ट अमर सिंह धुंता ने इन दोनों संस्थानों से जब वर्ष २०१० से लेकर मई २०१७ तक मरीजों और उनसे प्राप्त यूजर चार्ज की जानकारी मांगी तो उसमें ६४ लाख से अधिक का गोलमाल सामने आया है।
आंकड़ों के मुताबिक फ्रैंड्स संस्था ने वर्ष २०१० से जुलाई २०१५ तक एपीएल मरीजों के जो आंकड़े दिए, उसमें काफी अंतर पाया गया। संस्था द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक ३ लाख ६२ हजार ४४४ एपीएल मरीजों ने केंद्र में रजिस्ट्रेशन कराया।
प्रति मरीज १० रुपए के हिसाब से कुल ३६ लाख २४ हजार ४४० रुपए सरकारी खाते में जमा होने चाहिए थे, लेकिन संस्था ने २ लाख १४ हजार ३४० रुपए ही जमा कराए। इस तरह ३४ लाख १० हजार, एक सौ रुपए का अंतर पाया गया।
इसी तरह धर्म ग्रामीण उत्थान संस्थान द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार अगस्त २०१० से जुलाई २०१५ तक केंद्र में कुल ३ लाख ४८ हजार ६७४ एपीएल मरीजों का रजिस्ट्रेशन किया गया। इसमें प्रति मरीज १० रुपए के हिसाब से कुल ३४ लाख ८६ हजार ७४० रुपए जमा होते हैं। संस्थान ने ४ लाख ३९ हजार २०५ रुपए ही खाते में जमा करवाए। इस तरह संस्थान में शेष ३० लाख ४७ हजार ५३५ रुपए का अंतर पाया गया।
फ्रैंड्स संस्था एवं धर्म ग्रामीण उत्थान संस्थान द्वारा कुल ६४ लाख ५७ हजार ६३५ रुपये सरकारी धन का हिसाब नहीं दिया गया है।
सवाल यह है कि इतनी भारी-भरकम धनराशि के अंतर के बावजूद इन संस्थाओं पर सीएमओ हरिद्वार ने क्या एक्शन लिया? इसके अलावा परियोजना निदेशक भी सवालों के घेरे में आ जाते हैं कि यदि सीएमओ स्तर से भी कोई अनियमितता पकड़ में नहीं आती है तो फिर वे इतने बड़े मामले में आंखें मूंदे कैसे रह गए?
धर्म ग्रामीण उत्थान संस्थान के धर्मेंद्र चौधरी से जब इस संबंध में पूछा गया तो उनका कहना था कि बीपीएल व हैल्थ कैंप के अलावा रुबेला जैसे अभियान के लिए भी रजिस्ट्रेशन किया गया, लेकिन उनसे यूजर चार्ज नहीं किया गया। ऐसे में घपला जैसी कोई बात ही नहीं है।
फ्रेंड्स के डायरेक्टर एके शर्मा बताते हैं कि उन्हें चार तरह की अनिवार्य श्रेणियों वाले मरीजों का इलाज नि:शुल्क करना होता है। ऐसे मरीज रजिस्टर्ड तो किए जाते हैं, लेकिन उनसे यूजर चार्ज नहीं लिया जा सकता।
इस प्रकार एपीएल वाले मरीजों से ही यूजर चार्ज लेते हैं। उन्हें जितना पैसा यूजर चार्ज के रूप में मिला, उसे जमा कर दिया गया है। ऐसे में किसी भी घोटाले का सवाल ही पैदा नहीं होता।
आरटीआई कार्यकर्ता अमर सिंह धुंता सवाल उठाते हैं कि जब आरटीआई में एपीएल, बीपीएल, नंबर ऑफ ओपीडी (विद आउट यूजर चार्जस) ओल्ड(रिपीट) पैशेंट एंड एएनसी, पीएनसी, चाइल्ड एंड आउटरीच हैल्थ कैंप की सूची भी अलग-अलग स्पष्ट रूप से दर्शाई गई है तो ऐसे में एपीएल के मरीजों के साथ नि:शुल्क वाले मरीजों के जुडऩे का तो सवाल ही नहीं होता।
ज्ञात हो कि वर्ष २०१० से लेकर २०१५ तक ये संस्थान अर्बन हैल्थ सेंटर के नाम से संचालित होते थे, लेकिन इसका नाम अपडेट करते हुए अगस्त २०१५ से मई २०१७ तक अर्बन प्राइमरी हैल्थ सेंटर कर दिया गया।
चूंकि यह पैसा सरकार का है। ऐसे में यह सारा धन सरकारी खाते में जमा होता है। इस धन को खर्च करने के लिए संस्था के पास कोई अधिकार नहीं हैं। अगर कभी विशेष आवश्यकता पड़ती है तो भी इसके लिए विभागीय अनुमति ली जानी जरूरी है।
उल्लेखनीय

है कि इससे पहले भी पर्वतजन ने देहरादून के दो एनजीओ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चलाने के नाम पर सरकारी धन को ठिकाने लगाने का खुलासा किया था। इसका संज्ञान लेकर सरकार ने जांच की और उन्हें गोलमाल किया हुआ सारा धन सरकारी खजाने में जमा करवाना पड़ा। फिर उनका एग्रीमेंट रद्द कर दिया गया।
कुल मिलाकर यदि सक्षम अधिकारियों द्वारा मामले की तहकीकात की जाए तो हकीकत सामने आ सकती है और आरोप-प्रत्यारोपों के बादल भी स्वत: ही छंट जाएंगे।

”हम चाहते हैं कि सरकारी धन को ठिकाने लगाने वाली संस्थाओं से गोलमाल किए हुए साढ़े ६४ लाख रुपए ब्याज सहित राजकोष में जमा करवाया जाए। इससे जहां सरकारी खजाने की हालत सुधरेगी, वहीं अन्य संस्थाएं भी आगे से ऐसा नहीं कर सकेंगी। ”

 

– अमर सिंह धुंता, आरटीआई एक्टिविस्ट

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”एपीएल मरीजों के अलावा एएनसी, पीएनसी, चिल्ड्रन एवं फील्ड में लगने वाले हैल्थ कैंप भी संचालित होते हैं। जिनका रजिस्ट्रेशन तो होता है, लेकिन हम सरकार की गाइडलाइन में बंधे हुए हैं, जिसके कारण उनसे यूजर चार्ज नहीं लिया जाता। यही कारण है कि एपीएल में जितना पैसा एकत्र हुआ, उतना जमा कर दिया है। इसमें घोटाले जैसी कोई बात नहीं है।”
– ए.के. शर्मा,
प्रोजेक्ट डायरेक्टर फेंड्स संस्था

”मदर एंड चाइल्ड के अलावा बीपीएल व हैल्थ कैंपों के रजिस्ट्रेशन तो होते हैं, लेकिन उनसे पैसे नहीं लिए जाते। रुबेला के अंतर्गत एक दिन में ही २२०० बच्चों के रजिस्ट्रेशन हुए, लेकिन यूजर्स चार्ज नहीं लिया गया। जितना यूजर चार्ज लिया गया, वो जमा कराया गया है।”
– धर्मेंद्र चौधरी, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, धर्म ग्रामीण उत्थान संस्थान

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