आजीविका परियोजना के सहयोग से ग्रामीणों ने मसालों की खेती ओर उनकी ब्रांडेड बिक्री शुरू की तो नीरस जिंदगी मसालेदार हो गई
विनोद कोठियाल
पिथौरागढ़ के किसानों ने मसाले की खेती से प्रदेश में अलग पहचान बनाई है। अपने परंपरागत कार्यों के साथ ही लोगों ने परियोजना मे शामिल होकर मसालों की खेती करनी भी शुरू की। इसके काफी अच्छे परिणाम आए। इसमें काफी परिवार जुड़े और मसालों से अपनी आय बढ़ाई। मसालों में उन्हीं मसालों की खेती को बढ़ावा दिया गया, जो पहाड़ों पर आसानी से उग सकें।
भौगोलिक दशा के हिसाब से पहाड़ों पर मिर्च, हल्दी, अदरक, लहसुन, तेजपात और धनिया आदि की फसलों को ही उगाया जाता है। मसालों की खेती को नकदी फसल माना जाता है। अच्छी पैदावार होने पर इन फसलों में लाभ भी अधिक होता है। कम पानी में भी इन मसालों की खेती संभव हो पाती है जो पहाड़ के भौगोलिक स्थिति से एकदम फिट बैठता है, क्योंकि पहाड़ों पर किसान आसमानी पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इस कारण लोग तेजी से मसाला व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हंै। बाजार में भी हमेशा मांग बने रहने के कारण इस प्रकार की खेती का कोई नुकसान नहीं है। इसमें भी कुछ फसलें तो बहुत अधिक लाभ देने वाली होती हंै, जैसे अदरक, लहसुन, हल्दी और धनिया जैसे मसाले तो काफी फायदे का सौदा साबित होते है।
परियोजना के आंकड़ों पर यदि नजर डालें तो मिर्च के व्यापार में कुल 554 ग्रुप काम कर रहे हैं, जिनका अब तक का कुल व्यापार 370.41 लाख का है। अदरक में 506 ग्रुप और 381.55 लाख का व्यापार किया। हल्दी पर 355 ग्रुप काम कर रहे हैं, जिनका व्यवसाय 118.1 का व्यापार किया। इसी प्रकार लहसुन में 160 ग्रुप है और जिनका व्यवसाय है 69.95 लाख का है।
इस प्रकार से अन्य सभी मसालों का विवरण है। उत्तराखंड में जलवायु ठंडी होने के कारण गरम मसाले जैसे अदरक और लहसुन की मांग बाजार में बनी रहती है।
उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लाक में किसानों ने महाकाली स्वायत्त समूह के नाम से एक समिति बनाई, जिसने मूनाकोट में मसालों की एक यूनिट स्थापित की। यह यूनिट जुलाई 2015 में स्थापित हुई और अप्रैल 2017 तक इस यूनिट का कुल टर्नओवर 84036 था। स्थानीय किसान इससे काफी खुश हैं। किसी भी पुराने कार्य को बन्द किए यह उन किसानों की अतिरिक्त आय है। किसान अपने खेत में मसाले उगाता है और विपणन केंद्र में ले जाता है। जहां उन्होंने मसाला यूनिट भी लगा रखी हंै। केंद्र पर एक व्यक्ति इस सारे कार्य को संभालता है। किसानों को इससे पहले से अधिक आय मिलती है।
अकेले मूनाकोट ब्लॉक में ५ फेडरेशन केवल मसालों पर ही काम कर रहे हैं। प्रत्येक फेडरेशन में पांच-पांच व्यक्तियों का समूह बना है और हर फेडरेशन का अपना एक-एक सेंटर बना है। जहां से बीच, खाद, दवाएं तथा अन्य सामान खरीदते हैं और अपनी मसालों की फसलों को उस विपणन केंद्र तक पहुंचाते हैं। किसानों को भुगतान सीधे चैक द्वारा किया जाता है।
झूलाघाट में एक प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की गई है, जिसमें मसाले इन्हीं फेडरेशनों से खरीदे जाते हैं। कुआंपानी निवासी कृष्णमणि भट्ट, जो कि समूह के अध्यक्ष भी हैं, मसालों के कारोबार में अपना पूरा समय देते हैं और इससे उन्हें अच्छा फायदा भी मिलता है।
परियोजना के स्थानीय प्रबंधक कुलदीप बिष्ट का कहना है कि परियोजना कृष्णमणी भट्ट को पूरा सहयोग करेंगे और पूरे ब्लॉक में मसालों को बड़ा कारोबार तैयार किया जाएगा। हमारे द्वारा विपणन में पूरा सहयोग किया जाएगा और राष्ट्रीय स्तर पर इन मसालों को पहचान दी जाएगी। मसालों के व्यवसाय के प्रति लोगों का बढ़ता उत्साह यही दर्शाता है कि आने वाले समय में मसाले बड़े उद्योग का रूप लेंगे।
वर्तमान में उक्त मसाला यूनिट में विभिन्न मसालों को तैयार कर आसपास के बाजार जैसे गौरीहाट, माजिरकांडा, झूलाघाट व पिथौरागढ़ में संचालित इंदिरा अम्मा भोजनालय में भी समूह द्वारा मसालों की आपूर्ति की गई। समूह द्वारा परियोजना के सहयोग से विभिन्न मेलों एवं सहकारिता महोत्सवों में भी लगातार प्रतिभाग कर समूह के उत्पादों का विपणन एवं प्रदर्शन किया जा रहा है।