कुलदीप एस. राणा
आज एमबीबीएस ट्यूशन फीस को लेकर हिमालयन मेडिकल यूनिवर्सिटी में अभिभावकों ने जमकर आक्रोश व्यक्त किया।
अभिभावक जब एडमिशन लेने के लिए हिमालयन मेडिकल यूनिवर्सिटी में गए तो वहां के प्राचार्य डॉ मुश्ताक अहमद ने उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित फीस पर एडमिशन देने से साफ मना कर दिया। प्रधानाचार्य ने कहा कि उन्हें राज्य कोटा के लिए ट्यूशन फीस 11लाख रुपए और ऑल इंडिया कोटा के लिए 15 लाख रुपए देनी होगी।
प्रधानाचार्य ने साफ कह दिया कि उन्हें इस फीस पर एडमिशन लेना है तो लीजिए नहीं तो मत लीजिए। गौरतलब है कि सरकार ने एमबीबीएस की ट्यूशन फीस राज्य कोटा के लिए चार लाख और ऑल इंडिया कोटा के लिए 5लाख तक की हुई है।
यह फीस इन्होंने ऑनलाइन ही जमा करा दी थी। लेकिन जब वह यूनिवर्सिटी गए तो उनसे बड़ी भी फीस मांगी गई। प्रधानाचार्य ने अभिभावकों को बताया कि उन्हें शनिवार को हाईकोर्ट के निर्देश प्राप्त हो चुके हैं, लेकिन जब प्रधानाचार्य से हाईकोर्ट के निर्देश की प्रतिलिपि मांगी गई तो उन्होंने इसकी जानकारी देने से साफ मना कर दिया।
अभिभावकों ने फीस का विवरण हस्ताक्षर सहित एचएनबी मेडिकल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार को सौंप कर इस विषय में कार्यवाही करने के लिए अनुरोध किया है। लेकिन जब शासन-प्रशासन और सरकार ने ही निजी विश्वविद्यालयों के सामने हथियार डाल दिए हैं तो बेचारे अभिभावक जाएं तो जाएं कहां !
तो अब निजि विवि करेंगे एमबीबीएस सीटों के शुल्क का निर्धारण ?
उत्तराखंड के सभी राजकीय व निजि मेडिकल संस्थानों में संचालित एमबीबीएस पाठ्यक्रम में सत्र 2018 -19 के लिए दाखिले की प्रक्रिया शुरु चुकी है । विडंबना यह है कि इन निजि मेडिकल कालेजों में दाखिले लेने वाले एमबीबीएस के स्टूडेंट्स को अभी यह नही पता कि उनकी मेडीकल की फीस कितनी है !
चौराहे पर छात्र
शासन-सरकार के लचर रवैये ने एमबीबीएस स्टूडेंट्स को चौराहे ला छोड़ा है ।
सरकार के रवैये से लगता है कि उन्हें एमबीबीएस स्टूडेंट्स की नही बल्कि सूबे के निजि मेडिकल कालेजों की ज्यादा चिंता है। फीस निर्धारण को लेकर प्रदीप बत्रा द्वारा उत्तराखंड उच्च न्यायालय में दाखिल पीआईएल पर 12 जून 2018 को जस्टिस राजीव शर्मा व जुस्टिस लोकपाल सिंह की खंडपीठ द्वारा दिये गए निर्णय में शुल्क निर्धारण समिति के चेयरमैन पद पर जस्टिस गुरमीत राम व अपीलीय कमेटी के अध्यक्ष पद पर जस्टिस बृजेश कुमार श्रीवास्तव की नियुक्ति को खारिज किया जा चुका है।
पहले से ही शुल्क निर्धारण संबंधी मामलों के न्यायलय में विचाराधीन होने के कारण विगत वर्षों में भी एमबीबीएस की सीटों पर दाखिले हेतु माननीय न्यायालय के द्वारा यह व्यव्यस्था दी गयी थी कि निजि संस्थान शासन द्वारा निर्धारित शुल्क पर छात्रों को इस आशय के शपथ पत्र कि शुल्क के संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय को स्वीकार किया जाएगा, के साथ प्रवेश दिया गया ।
ऐसे में शुल्क के संदर्भ में जॉलीग्रांट विवि का अखबारों में प्रकशित विज्ञापन एवम चिकित्सा शिक्षा निदेशालय द्वारा उक्त विज्ञापन के खंडन का विज्ञापन भ्रम एवं असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर रहा है।
अभिभावकों का कहना है कि जब शुल्क निर्धारण संबंधी प्रकरण एवं संबंधित समितियों के अध्यक्ष की नियुक्ति सम्बन्धी विषय न्यायलय में योजित विभिन्न याचिकाओं के माध्यम से विचाराधीन हैं तो ऐसे में न्यायालय द्वारा पूर्व में दी गयी व्यव्यस्था को न अपनाते हुए अपीलीय समिति द्वारा आनन-फानन में 5 जुलाई 2018 को शुल्क निर्धारण का अधिकार जॉलीग्रांट विवि को दिया जाना एवम संबंधित विभागों को उक्त निर्णय से अवगत न कराना छात्र हित में शासन व सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहा है। क्योंकि उक्त आदेश के संदर्भ में चिकित्साशिक्षा निदेशालय एवं एचएनबी चिकित्साशिक्षा विवि दोनों ने अपनी अनभिज्ञता व्यक्त की है और इसी क्रम में निदेशालय द्वारा उपरोक्त विज्ञापन का खंडन भी प्रकाशित किया गया है।
परदा है क्यों: साज़िश या लापरवाही
इससे लगता है कि या तो शासन-सरकार और विभाग के बीच आपसी समन्वय का अभाव है या फिर यह किसी बड़ी साजिश का हिस्सा हो सकती है ।
क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने एमबीबीएस की सीटों पर प्रवेश के संबंध में दायर याचिका संख्या 267/2017 के क्रम में निर्णय दिया था कि मेडिकल कालेजों के शुल्क के संबंध में राज्य सरकारें सम्पूर्ण विवरण को नोटिफाइड करते हुए छात्र हित में प्रकाशित करेंगी , जबकि सूबे में एमबीबीएस की काउंसिलिंग का रिजल्ट 5 जुलाई 2018 को ही जारी हुआ है तथा इन छात्रों को 6 से 12 जुलाई के मध्य राज्य के विभिन्न कालेजों में अपना दाखिला सुनिश्चित करना है । ऐसे में अपीलीय प्राधिकरण के उक्त निर्णय से छात्रों को अवगत न कराने के पीछे की मंशा संदेह के घेरे में आती है। साथ ही माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय की भी अवमानना है।
मनमानी पर विश्वविद्यालय
राज्य के तीन निजि मेडिकल संस्थान इंद्रेश मेडिकल कालेज ,जॉलीग्रांट मेडिकल कालेज व सुभारती मेडिकल कालेज जो अब विवि का दर्जा पा चुके हैं।ये हमेशा से कहते हैं कि उनके विवि एक्ट जिसे राज्य सरकार द्वारा ही मान्यता दी गयी है, के अनुसार ही सत्र 2017-18 के लिए एमबीबीएस की सीटों के शुल्क निर्धारण के लिए स्वतंत्र हैं। इनके द्वारा मनमाने तरीके शुल्क निर्धारित किये जाने के कारण एक बार फिर स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों में निराशा का माहौल है। अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह जो कि राज्य के उच्च शिक्षा सचिव होने के नाते शुल्क निर्धारण समिति के सदस्य सचिव भी हैं का निजि संस्थानो के प्रति सहयोगात्मक रुख से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि शुल्क निर्धारण को लेकर अंदर खाने क्या खिचड़ी पक रही है !
कुछ समय पूर्व ही राज्य सरकार द्वारा निजि संस्थानों हेतु बनाये गए एक्ट में फिर से संसोधन किया गया, किन्तु उक्त संशोधन में समस्या की मूल जड़, कि निजि संस्थान उत्तराँचल अनानुदानित निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं (प्रवेश तथा शुल्क निर्धारण विनियम अधिनियम, 2006) के अध्याय एक की धारा दो को छेड़ा तक नही गया। इससे पता चलता है कि सरकार सूबे की चिकित्साशिक्षा व छात्रों के भविष्य को लेकर कितनी गंभीर है !