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सचिवालय अफसर का फर्जीवाड़ा

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चिकित्सा विभाग के एक अफसर को चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिल गई तो उसी फंडे को इस्तेमाल कर एक टीचर को भी चिकित्सा प्रतिपूर्ति दिला दी गई, लेकिन इसके लिए जो तिकड़म अपनाई गई, वह हैरान करने वाली है

इस रिपोर्ट का मकसद उस जिम्मेदार अधिकारी पर सवाल खड़ा करना है, जिसने लैटरपैड का दुरुपयोग करके फर्जी हस्ताक्षरों के माध्यम से यह धन स्वीकृत कराया। संभावना यह भी है कि इसी तरह अन्य लैटरहैड का दुरुपयोग अन्यत्र भी किया जा सकता है।

पर्वतजन ब्यूरो

सचिवालय में अफसर किस तरह का फर्जीवाड़ा करते हैं, इसका एक नया उदाहरण सामने आया है। पिछले दिनों आरटीआई व मानवाधिकार कार्यकर्ता भूपेंद्र कुमार ने देहरादून के एक पूर्व सीएमओ की बीमारी में मदद के लिए शासन से पत्राचार किया था और मदद के लिए मानवाधिकार आयोग में भी अपील की थी। शासन ने तत्कालीन सीएमओ को १५ लाख रुपए की मदद भी कर दी। इसी तरह की मदद के लिए एक टीचर का आवेदन भी शासन में लंबित था। शासन के अफसरों ने भूपेंद्र कुमार की चिट्ठी का रुतबा देखकर टीचर के लिए भी धनराशि स्वीकृत कराने का ‘तरीकाÓ निकाल लिया। इन्होंने भूपेंद्र कुमार द्वारा शासन और मानवाधिकार आयोग को भेजे गए पत्रों के लैटरहैड स्केन कर लिए और हूबहू उसी तरह की एक चिट्ठी अध्यापक की मदद किए जाने को लेकर बना दी। अफसरों ने इतना ध्यान रखा कि कहीं कार्यवाही की एक प्रति भूपेंद्र कुमार को न चली जाए, इसलिए लैटरपैड में अंकित पते में पेन से छेड़छाड़ कर ऐसा मकान नंबर डाल दिया, जो उस इलाके में है ही नहीं। संभवत: अफसरों का प्लान यह था कि यदि कार्यवाही की कोई प्रति भूपेंद्र कुमार को गई भी तो पता गलत होने पर वापस लौट आए, लेकिन बुरा हो उस डाकिया का। डाकिया भूपेंद्र कुमार को भली-भांति जानता था और मकान का पता गलत होने पर भी उसने चि_ी भूपेंद्र कुमार के हाथों में सौंप दी। अपने ही लैटरपैड पर अपने फर्जी सिग्नेचर देख भूपेंद्र कुमार चकरा गए। टीचर की मदद के लिए उन्होंने ऐसी कोई चिट्ठी नहीं लिखी थी।
ऐसे पकड़ा फर्जीवाड़ा
इस चिट्ठी की हकीकत जानने के लिए भूपेंद्र कुमार ने सूचना के अधिकार में २२ सितंबर २०१४ को माध्यमिक शिक्षा विभाग से इस संबंध में पूरी जानकारी मांग ली।
उन्हें ध्यान आया कि इसी तरह की एक चिट्ठी उन्होंने पहले देहरादून के तत्कालीन सीएमओ डा. गुरपाल सिंह के लिए लिखी थी। भूपेंद्र कुमार की चिट्ठी पर डा. गुरपाल सिंह को शासन से २४ जून २०१४ को १५ लाख ५६ हजार २५० रुपए स्वीकृत किए गए थे। गुरपाल सिंह का लीवर फेल हो गया था और वह गुडग़ांव में भर्ती थे। गुरपाल सिंह ने शासन से मदद मांगी थी, लेकिन उन्हें इलाज हेतु धन स्वीकृत नहीं हो रहा था। इस पर भूपेंद्र कुमार ने वित्त विभाग से आरटीआई में धन स्वीकृत न होने का कारण बताने को कहा था। इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार से भी उनके इलाज हेतु धन दिलाए जाने हेतु वित्त विभाग को निर्देशित करने का अनुरोध किया था। भूपेंद्र कुमार की आरटीआई से हरकत में आए वित्त विभाग ने तत्काल धन स्वीकृत कर दिया था। भूपेंद्र कुमार के पत्र पर प्रभावी कार्यवाही होता देख शासन के किसी अफसर को संभवत: यह आइडिया आया कि इसी तरह के पत्रों से दबाव बनाकर अध्यापक के लिए भी धन स्वीकृत कराया जा सकता है। बस फिर क्या था। भूपेंद्र कुमार के ह्यूमन राइट फोरम के लैटरपैड की फोटो कॉपी करते हुए कलम से उनके घर के पते को एच २५५ से बदलकर बी-८५५ कर दिया गया। और पत्रांक संख्या को भी एचआरएफ ५६८/२०१४ से संख्या आगे-पीछे करके एचआरएफ ८५६/२०१४ बदल दिया गया।
…और मिली मदद
भूपेंद्र कुमार को ११ सितंबर २०१४ को माध्यमिक शिक्षा अनुभाग से जानकारी प्राप्त हुई कि राजकीय इंटर कालेज भड़कटिया पिथौरागढ़ के प्रधानाचार्य सुधीर कुमार जोशी को उनके लैटर पैड पर हुई कार्यवाही के बाद ८ लाख रुपए स्वीकृत हुए हैं। जिसमें से ६ लाख रुपए उन्हें अग्रिम दिए जा चुके हैं। सुधीर कुमार जोशी कैंसर से पीडि़त थे और राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट दिल्ली से उनका इलाज चल रहा था। इस रिपोर्ट के लिखे जाने के दौरान ही ४ जून २०१६ को उनकी मृत्यु हो गई।
सवाल यह नहीं है कि उक्त प्रधानाचार्य को धन स्वीकृत क्यों हुआ। इस रिपोर्ट का मकसद उस जिम्मेदार अधिकारी पर सवाल खड़ा करना है, जिसने लैटरपैड का दुरुपयोग करके फर्जी हस्ताक्षरों के माध्यम से यह धन स्वीकृत कराया। संभावना यह भी है कि इसी तरह अन्य लैटरहैड का दुरुपयोग अन्यत्र भी किया जा सकता है। जिस तरह से लैटरहैड का दुरुपयोग कर उक्त प्रधानाचार्य के लिए धनराशि स्वीकृत कराई गई, उससे यह संभावना भी बलवती होती है कि उक्त अधिकारी ने धन स्वीकृत कराने के एवज में मोटा कमीशन वसूला हो।

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