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समूह ग के पदों मे वेटिंग लिस्ट न होने से ऐसे हो रहा है नुकसान!

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उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के लिए परीक्षाएं आयोजित कराता रहता है। किंतु जब अभ्यर्थियों का चयन हो जाता है तो चयनित अभ्यर्थियों में से कई अभ्यर्थी चयन हो जाने के बाद नौकरियां ही नहीं ज्वाइन करते अथवा दूसरी नौकरी में चले जाते हैं। इससे वेटिंग लिस्ट न होने के कारण वह पद खाली रह जाते हैं। इससे दोहरा तिहरा नुकसान होता है।
एक तो विभागों द्वारा निकाले गए पद खाली रह जाते हैं। दूसरा वेटिंग लिस्ट न होने के कारण इन पदों पर चयनित हो सकने वाले अभ्यर्थी छूट जाते हैं तथा तीसरा इन दोनों के परिणाम स्वरुप आयोग का समय, धन तथा ऊर्जा का अधिकांश भाग निष्फल हो जाता है। यदि विभिन्न विभाग वेटिंग लिस्ट का भी प्राविधान करें तो चयनित होने के बाद ज्वाइन न करने वाले अभ्यर्थियों के बदले वेटिंग लिस्ट से उन पदों को भरा जा सकता है।

समय समय पर राज्य के बेरोजगार तथा अन्य लोग वेटिंग लिस्ट बनाए जाने के लिए शासन से मांग करते रहे हैं। लेकिन अभी तक इस पर कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं हो सकी है। यहां तक कि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के सचिव संतोष बडोनी ने भी 22 सितंबर 2017 को प्रमुख सचिव कार्मिक को एक पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने वेटिंग लिस्ट बनाए जाने के लिए दिशानिर्देश मांगे थे।किंतु अभी तक उस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

गौरतलब है कि आयोग के लिए जारी भर्ती प्रक्रिया नियमावली 2008 एवं विनियम 2015 में प्रतीक्षा सूची बनाए जाने के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

अधीनस्थ सेवा आयोग का भी यही मत है कि यदि प्रतीक्षा सूची की व्यवस्था लागू हो जाए तो इससे एक परीक्षा से अधिकतम अभ्यर्थियों को चयनित करने मे मदद मिलेगी। विशेष रुप से लिपिक वर्ग, कनिष्ठ सहायक, आशुलिपिक, वैयक्तिक सहायक आदि परीक्षाओं में अलग-अलग विभागों के लिए विकल्प लिया जाता है। उन्हें  बहुसंवर्गीय मानते हुए प्रतीक्षा सूची नहीं बनाई जा रही है। इससे 10 से 25% तक रिक्तियां काफी परीक्षाओं में शेष रह जाती हैं। इस प्रकार परीक्षा की एक लंबी प्रक्रिया का पूर्ण लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।

उत्तराखंड शासन सचिवालय से प्राप्त पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने भी कार्मिक विभाग को कहा है कि लिपिक वर्गीय यह सभी पद समूह ग के हैं। इन पदों में एकल संवर्गीय या बहू संवर्गीय का विभाजन करना उचित नहीं है।

लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में एक ही परीक्षा से उप जिलाधिकारी से लेकर जिला युवा कल्याण अधिकारी तक के अधिकारी चयनित होते हैं। और इन पदों के वेतन आदि मे वास्तव में फर्क होता है। इसलिए इन्हें बहुसंवर्ग माना जा सकता है। लेकिन अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षाएं लोक सेवा आयोग के पदों से बिल्कुल अलग है। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में कई विभागों के लिए एक ही परीक्षा मुख्य रूप से कनिष्ठ सहायक, आशुलिपिक, वैयक्तिक सहायक व सहायक लेखाकार के पदों पर होती है। इन सभी पदों पर सभी विभागों में कार्य की प्रकृति से लेकर सेवा का स्तर तथा पदोन्नति का अवसर भी समान ही है।
उदाहरण के लिए कनिष्ठ सहायक सभी विभागों में प्रशासनिक अधिकारी या वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी तक जाते हैं। ऐसी ही प्रक्रिया उपरोक्त अन्य पदों पर भी है। इस प्रकार अलग-अलग विभागों के लिए चयन होने पर भी कार्य की प्रकृति सेवा का अवसर एवं प्रोन्नति के अवसर आदि समान रहते हैं। ऐसे में इन पदों को बहु संवर्गीय नहीं माना जाना चाहिए। इस लिहाज से आयोग द्वारा परीक्षा कराए जाने वाले पदों के लिए प्रतीक्षा सूची की व्यवस्था होने से अधिक अभ्यर्थी चयन होंगे तथा विभागों को अधिक पद मिलेंगे साथ ही आयोग की मेहनत भी बर्बाद नहीं होगी।
अधिनस्थ आयोग में समूह ग के अन्य पद भी आते हैं। जैसे कि मानचित्रकार, सर्वेयर, वनरक्षक, अवर अभियंता, कैमरामैन आदि। यह सभी अलग-अलग विभाग के लिए अलग-अलग हैं। यह पद होता ही एकल संवर्ग हैं। इस प्रकार आयोग को भर्ती हेतु प्राप्त होने वाले सभी पद एकल संवर्ग के हैं। इसलिए इनके लिए चयन सूची में वेटिंग लिस्ट की व्यवस्था न रखा जाना उचित नहीं है।

गौरतलब है कि कार्मिक विभाग के शासनादेश संख्या 1051 दिनांक 3 जुलाई 2007 द्वारा लोक सेवा आयोग के क्षेत्र के बाहर के पदों पर 25% वेटिंग लिस्ट रखे जाने और 1 वर्ष के भीतर इसका उपयोग किए जाने की व्यवस्था है। लेकिन 2008 की समूह ग की भर्ती नियमावली तथा आयोग के विनियम 2015 में इस पर स्थिति स्पष्ट न होने के कारण प्रतीक्षा सूची रखने की स्पष्ट व्यवस्था नहीं बन पाई है। अधिकांश विभागीय नियमावलियों में भी प्रतीक्षा सूची की व्यवस्था या प्राविधान नहीं दिए गए हैं। ऐसे में सामान्य नियम या विभागीय नियमों मे भी प्रतीक्षासूची की स्पष्ट व्यवस्था नहीं दी गई है।
समूह ग के पदों पर सीधी भर्ती की प्रक्रिया नियमावली 2008 के नियम 55 के अंत में यह सूक्ष्म उल्लेख है कि सूची में नामों की संख्या रिक्तियों की संख्या से अधिक किंतु 25% तक की सूची का उपयोग प्रतीक्षा सूची के रूप में किया जा सकता है किंतु यह कदाचित चयन सूची में 25% अतिरिक्त अभ्यर्थियों को सम्मिलित करने संबंधी है। जबकि प्रतीक्षा सूची नियोक्ता को आयोग द्वारा अधियाचन के सापेक्ष पूर्ण संस्तुति भेजे जाने के बाद का विषय होना चाहिए। इस विषय पर भी स्थिति स्पष्ट किए जाने की आवश्यकता है।
आयोग के सचिव संतोष बडोनी का कहना है कि उन्होंने शासन से आयोग की परीक्षाओं में चयन सूची व प्रतीक्षा सूची रखे जाने के संबंध में दिशा निर्देश मांग रखे हैं। जो भी दिशा निर्देश प्राप्त होंगे उनके अनुसार कार्यवाही की जाएगी। फिलहाल उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा कराई जा रही परीक्षाओं में प्रतीक्षा सूची की व्यवस्था न होने के कारण एक ओर तो विभागों में पद खाली रह जा रहे हैं।साथ ही बेरोजगार अभ्यर्थियों के हाथों से स्वर्णिम भविष्य बनाने का मौका चूक रहा है। आयोग की मेहनत का भी पूरा परिणाम नहीं मिल पा रहा है।

देखना यह है कि बेरोजगारी तथा पलायन को लेकर लंबे-लंबे भाषण सुनाने वाले शासन तथा सरकार इस महत्वपूर्ण विषय पर कब तक आंखें मूंदे रहती है।

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