विधवा पर टूटा विपदा का पहाड़ अग्नि पीड़ित गांव सावणी की सुवणी की किसी ने नहीं ली सुध
नीरज उत्तराखंडी
पर्वतजन के सभी पाठकों को सुप्रभात आज मार्च की पहली तारीख है। 31 मार्च के बाद प्रदेश के बजट का कई हजार करोड़ रुपैया लैप्स हो जाएगा।
यह पैसा पहाड़ के दुख दर्द को कम करने में लग सकता था, लेकिन जब प्रदेश के मुखिया उत्तरकाशी की उपेक्षा करें और सहारनपुर की सुध ले तो पैसा दिल्ली तो वापस जाएगा ही। आज से 15 दिन पहले उत्तरकाशी का सावणी गांव आग में जलकर खाक हो गया था। गांव वालों के लत्ते-कपड़े और पालतू पशु सब कुछ स्वाहा हो गए थे।
इस गांव के लोगों को सरकार ने फौरी राहत तो पहुंचाई लेकिन उनके जले पर मरहम लगाने की न तो सरकार में कहीं संवेदना दिखी और न संकल्प।
एक माह पूर्व उत्तरकाशी के सावणी गाँव में सब कुछ सामान्य था। गाँव में हंसी खुशी का माहौल था। आंगन में नौनिहालों के खेलने की किलकारियां और गोशाला से गायों के रम्भाने से गाँव में खुशी का माहौल था।
16 फरवरी की रात अचानक न जाने किसकी नजर लग गयी। पीढियों से संजोयी गई धन- सम्पदा और बहुमंजिले आशियाने, सब कुछ आग की भेंट चढ़ गए।
आपदा में अपना आशियाना व मवेशी गंवाने वाली सुवणी देवी पर मानों दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा है। डेढ़ साल पूर्व उनके पति जयेन्द्र सिंह का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया था।पति की मृत्यु के बाद उस पर तीन बच्चों के लालन- पालन का भार भी आ गया।आग में सब कुछ गंवाने के बाद उसकी दुनिया ही बदल गयी।
विधवा सुवणी का कहना है कि कई बार फरियाद करने के बाद भी उनकी विधवा पेंशन नहीं लग पाई है। उनका एक 13 वर्षीय बेटा महेन्द्र विकलांग है। वह न बोल सकता है, न सुन सकता है। लेकिन उसका विकलांग सर्टिफ़िकेट नहीं बन पाया है।
डीएम के आदेश के बाद भी न तो पेंशन लग पाई है और न ही मानसिक रूप से विकलांग बच्चे का विकलांग प्रमाण पत्र ही बन पाया है। उसके सामने बच्चों के भरण-पोषण सहित शिक्षा व भविष्य के साथ-साथ उजड़े आशियाने को बसाने की चिंता सता रही है।
बहरहाल फौरी राहत जरूर मिली है लेकिन आखिर कब तक उसे छला जायेगा ! उसके अधिकार के लिए। विधवा बहिन पर दुःखों का पहाड़ टूटने से आहत उसका भाई इन्द्र सिंह मकान बनाने में अपनी बहन की मदद के लिए धारा गाँव से अपनी पीठ पर लकड़ी के नग ढो कर सावणी गाँव पहुँचा रहा है। रक्षाबंधन में बहिन की सहायता करने के अपने वादे को निभा रहा है।
सुवणी देवी का बड़ा बेटा 16 वर्षीय सुरेन्द्र जखोल इंटर कालेज में पढ़ता है। तथा 13 वर्ष का महेन्द्र व 7 वर्ष का नरेश गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय सावणी में अध्ययनरत हैं। महेन्द्र मानसिक रूप से विकलांग है । समाज कल्याण विभाग जिला अधिकारी के आदेश के बाद भी पीड़ित विधवा की पेंशन फार्म नहीं भरे गये।
15 दिन बाद ही दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी के बाथटब में घुसे मीडिया की जुबान से भी सावणी गांव का नाम विस्मृत हो गया और साथ ही सरकार के सरोकार से भी।
सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ ! अगर हम थोड़ा पीछे जाएं तो पाठकों को याद होगा कि एक पूरा गांव अग्निकांड की भेंट चढ़ गया लेकिन 72 घंटे बाद भी प्रदेश के मुख्यमंत्री एक हवाई जहाज और दो हेलीकॉप्टर होने के बाद घटनास्थल पर नहीं पहुंचे थे।
जिस रात को आग लगी, उस के तीसरे दिन मुख्यमंत्री घटनास्थल की तरफ रवाना हुए।
सरकार को इतनी भी सुध नहीं थी कि उत्तरकाशी के जिलाधिकारी को हेलीकॉप्टर ही भिजवा देते। ताकि वह तत्काल मौका मुआयना कर सकते।
तत्काल चलकर मौके पर पहुंचने और वहां से वापस लौटने में ही डीएम को 20 घंटे लग गए। गांव की एक हताश महिला को सीने से लगाए सांत्वना सांत्वना देते हुए फोटो जब सोशल मीडिया में वायरल हुई तो लोग डीएम की प्रशंसा करते हुए सरकार को कोसने लगे।
जिलाधिकारी की सर्वत्र प्रशंसा होते देखकर मुख्यमंत्री को सुधि आई और उन्हें भी घटनास्थल तक रवाना होना पड़ा। लेकिन संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि मुख्यमंत्री आपदा पीड़ितों के गांव तक फिर भी नहीं गए। उनका हेलीकॉप्टर भी गांव से 5 किलोमीटर पहले जखोल गांव में ही लैंड किया और सावणी के गांव वालों को वहीं बुलाया गया।
जब चुनाव आता है तो यही हेलीकॉप्टर गांव के किसी भी खेत में आराम से उतर जाता है और सरकार बनते ही यह हेलीकॉप्टर भी कितना आराम तलब हो जाता है, वह इस घटना से देखा जा सकता है।
इससे फर्क नहीं पड़ता है कि सीएम और हेलीकॉप्टर गांव क्यों नहीं गए ! फर्क इससे पड़ता है कि जब सीएम गांव नहीं जाते तो सरकारी सिस्टम सावणी गांवों की सुवणियों की सुध नहीं लेता।