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सीएम की वीआईपी विधानसभा : इलाज को नही धागा, नाम चंद्रभागा !!

in हेल्थ
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भूपेंद्र कुमार 

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विधानसभा डोईवाला मे वहां के स्थानीय निवासी राजकुमार अग्रवाल के बेटे को पिछले दिनों मामूली सी चोट लगी। जब वह बच्चे को लेकर डोईवाला प्राथमिक चिकित्सालय में पहुंचे तो चिकित्सक ने टिटनेस का मामूली सा इंजेक्शन न होने और टांके लगाने के लिए धागा न होने की बात कर कर उन्हें हिमालयन इंस्टिट्यूट जाने के लिए कह दिया।

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मजबूर बाप जाॅलीग्रांट गया और टांके का धागा खरीद कर लाया।तब जाकर उनके बेटे के घाव पर टांके लग सके। सीएम की विधानसभा इतना छोटा सा इलाज न हो पाना एक संकेत है कि अन्य जगह क्या हाल होंगे। पूरे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को कितनी दीमक लग चुकी है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्थानीय जनता के भारी विरोध के बावजूद इस अस्पताल को हिमालयन हास्पीटल के प्रंबधन को सौंप दिया था।संभवतः इसके पीछे उनकी मंशा यह थी कि इस अस्पताल की हालत में कुछ सुधार आएगा। लेकिन उपरोक्त घटना से ऐसा लगता है कि यह अस्पताल जॉली ग्रांट हॉस्पिटल का एक कलेक्शन सेंटर बनकर रह गया है। ताकि मरीज यहां आए तो उन्हें निकटतम प्राइवेट अस्पताल में भेजा जा सके। कुछ समय पहले डोईवाला अस्पताल के उच्चीकरण की मांग की गई थी। तब यह मांग नकार दी गई थी। तब भी विपक्षी दलों ने यह इल्जाम लगाया था कि नजदीकी हिमालयन अस्पताल को लाभ पहुंचाने की मंशा से इस अस्पताल को उच्चीकृत नहीं किया जा रहा है।
 वर्तमान हालात में ऐसा लगता है कि उनकी यह आशंका सच साबित हो रही है। जब अस्पताल हिमालयन हॉस्पिटल को सौंप दिया गया तो कुछ ही समय में स्थानीय लोगों ने सही इलाज न मिलने और डाक्टरों के दुर्व्यवहार को लेकर इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की थी। तब 10 अक्टूबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी HD धीरेंद्र सिंह पवार को इस अस्पताल का जायजा लेने के लिए भेजा था। तब भी यह बात सामने आई थी कि अस्पताल के डॉक्टर मरीजों को बाहर की दवाइयां लिखते हैं। सीएम के ओएसडी श्री पंवार और सीएमएस ने कार्यवाही की बात कही थी, किंतु 2 दिन बाद ही यह आई-गई बात हो गई।
 हालांकि अस्पताल के सीएमएस कहते हैं कि मुख्यमंत्री जल्दी ही इस अस्पताल की दशा सुधारने वाले हैं। यह अस्पताल 30 मिनट से 50 मिनट का हो जाएगा। इसके लिए 2 करोड रुपए की डीपीआर बनाने के निर्देश दिए जा चुके हैं।
इस अस्पताल में रोजाना औसतन 400 से 500 मरीज आते थे। किंतु इलाज न मिलने के कारण अब वह निजी अस्पतालों मे अपना शोषण कराने को मजबूर हैं।
 बहरहाल वर्तमान में हालात बहुत बदतर हैं। कहीं ऐसा न हो कि जिस बेहतर मनसा के लिए अस्पताल जौलीग्रांट हिमालयन हॉस्पिटल प्रबंधन को सौंपा गया था, उसके उलट इस अस्पताल की हालत और खराब हो जाए। इससे अच्छा संदेश नहीं जाएगा।
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