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सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का न अफसरों को भय, न मंत्री को कुछ पता !! जानिए क्या है मामला।

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सुप्रीम कोर्ट  के आदेश  लेकर  भटक रहे कर्मचारियों  की सुध लेने  की होश न अधिकारियों को है  और न सरकार को। उत्तराखंड सिंचाई विभाग में 10 साल की स्थाई तथा अस्थाई सेवा पूर्ण कर चुके ऐसे कई कर्मचारी हैं जो पेंशन इत्यादि के पात्र हैं लेकिन सरकार उन्हें पेंशन देने की इच्छुक नहीं है।

इन कर्मचारियों के हित में हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक फैसला दे चुका है। उत्तराखंड शासन का न्याय  विभाग स्पष्ट कह चुका है कि यदि इन कर्मचारियों को पेंशन नहीं दी गई तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना होगी।किंतु इसके बाद भी उत्तराखंड शासन के अधिकारी इस मसले को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

सेवानिवृत्त हो चुके इन कर्मचारियों के हकों के लिए लड़ाई लड़ रहे जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी कहते हैं कि अपने विधायकों को पेंशन दिलाने के लिए सरकार मनमाना नियम बना देती है लेकिन इन कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पेंशन देने को राजी नहीं है।

गौरतलब है कि सिंचाई विभाग में वर्क चार्ज पर काम करने वाले ऐसे कई कर्मचारी थे जो 30 35 वर्ष की वर्क चार्ज सेवा करके रिटायर हो गए। इन कर्मचारियों में से जो 10 वर्ष से कम अस्थाई सेवा करने से पूर्व रिटायर हो जाते हैं, उन्हें सरकार द्वारा कोई पेंशन नहीं दी जाती ।यह कर्मचारी वर्ष 2007 में पेंशन की मांग को लेकर हाईकोर्ट चले गए थे ।
हाई कोर्ट ने वर्ष 2010 में आदेश दिया था कि 10 वर्ष की अस्थाई अथवा अस्थाई सेवा पूर्ण क्रम कर चुके कर्मचारी पेंशन के हकदार हैं। लेकिन सरकार उच्च न्यायालय के समक्ष अपील में चली गई। उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2013 को यह अपील भी खारिज कर दी।

इसके पश्चात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल अपील दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2014 में यह अर्जी भी खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट से वापस लौटाए जाने के बाद राज्य सरकार दोबारा से हाईकोर्ट गई ।लेकिन हाईकोर्ट ने 17 अक्टूबर 2016 को फिर से सरकार की अपील खारिज कर दी। किंतु इसके बावजूद अभी तक कर्मचारियों को पेंशन इत्यादि का लाभ नहीं मिल पाया है जब उच्च न्यायालय ने सरकार की विशेष अपील खारिज कर दी तो सरकार फिर से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करने चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल 2017 को यह एसएलपी भी खारिज कर दी ।

तब से लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अनुपालन करने के बजाए इस मामले को लगातार घुमा रही है ।

जबकि न्याय विभाग व प्रशासकीय विभाग इन कर्मचारियों को पेंशन देने हेतु लिख चुका है। कर्मचारियों के साथ यह कितना बड़ा मजाक है कि न्याय विभाग पेंशन देने हेतु सहमत है प्रशासकीय विभाग कर्मचारियों को पेंशन देने हेतु सहमत है सुप्रीम कोर्ट का पेंशन देने के लिए स्पष्ट आदेश है, इसके बावजूद सरकार इन कर्मचारियों को पेंशन नहीं देना चाहती।

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यह विडंबना ही है कि एक ओर विधायकों को शपथ ग्रहण करने के दिन से ही अथवा पद त्याग करने के दिन से ही पेंशन का हकदार माना गया है

सरकार30 35 साल की सेवा तथा 10 वर्ष की अस्थाई अथवा अस्थाई सेवा के बावजूद  सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन देने की इच्छुक नहीं है ।

पूर्व वर्ती हरीश सरकार में इन कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए उक्त मामले को कैबिनेट में लाने के लिए कई बार लिखा लेकिन तत्कालीन सिंचाई मंत्री के आगे आदेश बौने साबित हुई वर्तमान सरकार में सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज को लगता है कि इस मामले की कोई खबर ही नहीं है। शासन के रवैया से ऐसा लगता है कि अधिकारियों ने सतपाल महाराज से इस मामले में परामर्श लेना तो दूर उन्हें सूचना तक नहीं दी।

जाहिर है कि जल्दी ही जब कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का वाद शासन के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ दायर करेंगे तब जाकर सरकार की किरकिरी करा कर सिस्टम की नींद खुल पाएगी।

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