सौतेलेपन के शिकार पीपीएस अफसर

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अन्य प्रांतीय सेवाओं के मुकाबले वेतनमान तथा पदोन्नति की विसंगतियों के शिकार पीपीएस अधिकारियों के गिरते मनोबल का नहीं है सरकार को संज्ञान

भूपेंद्र कुमार

उत्तराखंड में प्रांतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। रात-दिन चुनौतीपूर्ण मोर्चों पर तैनात इन पुलिस अधिकारियों के विषय में न तो इनके उच्चाधिकारी कुछ सोचने को तैयार हंै और न ही सरकार उनकी विभिन्न मांगों के संबंध में कोई संज्ञान ले रही है।
प्रांतीय पुलिस सेवा संवर्ग के अधिकारी विगत कई वर्षों से प्रोन्नति के लिए तरस रहे हैं, जबकि उनके समान ही प्रांतीय सिविल सेवाओं के अधिकारी और वित्त सेवा के अधिकारियों की सेवा नियमावलियां वर्ष 2005 तथा 2002 में ही तैयार हो चुकी हैं। इन अधिकारियों के वेतनमान और पदोन्नति में बेहतर अवसरों का प्रावधान भी किया गया है, जबकि पीपीएस अधिकारी इनकी तुलना में वेतनमान और पदोन्नति की दृष्टि से काफी उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। अपने समान ही अन्य सेवाओं के अधिकारियों की तुलना में पीपीएस अधिकारियों को साप्ताहिक अवकाश की सुविधा से भी वंचित किया गया है। इन अधिकारियों की कार्य अवधि निर्धारित नहीं है।
अन्य प्रांतीय सेवा के अधिकारियों के पास इनकी तुलना में परिवार के साथ समय बिताने की अधिक सहूलियत है, जबकि पीपीएस अधिकारियों को किसी भी समय बुलाया जा सकता है। प्रांतीय पुलिस सेवा एसोसिएशन मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक से मुलाकात कर चुकी है, लेकिन अभी तक किसी ने उनकी मांगों पर कोई संज्ञान नहीं लिया है।
पीसीएस सेवाओं के लिए उच्चतम वेतनमान 22406-24500 है तथा वित्तीय सेवाओं में 18406-22400 निर्धारित है, जबकि प्रांतीय पुलिस सेवा में उच्चतम वेतनमान 14300 से 18300 पर ही समाप्त हो जाता है।
पदों की दृष्टि से देखें तो पीपीएस सेवा में अन्य प्रांतीय सेवाओं के अधिकारियों की तुलना में और भी अधिक निराशाजनक स्थिति है। पीसीएस संवर्ग में उच्च वेतनमान के ४९ प्रतिशत पद हैं तथा वित्तीय सेवा में उच्च वेतनमान के कुल पदों की संख्या 36 प्रतिशत है, किंतु पुलिस सेवा में इन पदों की संख्या मात्र 8.7 प्रतिशत ही है।
प्रांतीय पुलिस सेवा एसोसिएशन ने एक प्रस्तावित ढांचा शासन को सौंपा है। इस प्रस्तावित ढांचे के अनुसार पीपीएस संवर्ग में 21 नए पदों का सृजन करना होगा, ताकि निश्चित समय के पश्चात विभिन्न पदों पर पदोन्नतियां हो सके।
वर्तमान में अपर पुलिस अधीक्षक श्रेणी-1 में 10 नए पदों के सृजन तथा अपर पुलिस अधीक्षक विशेष श्रेणी में 6 नए पदों के सृजन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इसके अलावा पीपीएस एसोसिएशन ने 2 सहायक पुलिस महानिरीक्षक और एक अपर सचिव गृह के पद सृजन की मांग की है।
अन्य राज्यों में पीपीएस अफसरों को काफी हद तक अन्य प्रांतीय सेवाओं की भांति सुविधाएं दी जा रही हैं। जैसे कि अन्य राज्यों में पीपीएस अधिकारी वाणिज्यकर, विद्युत विभाग, सूचना आयोग, मानवाधिकार आयोग और उत्तराखंड प्रशासनिक अकादमी जैसे संस्थानों में प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। ऐसे संस्थानों में लॉ एनफोर्समेंट से जुड़े कार्य होते हैं। इनमें पुलिस सेवा के अधिकारी बेहतर काम कर पाते हैं, किंतु उत्तराखंड में अभी तक यह प्राविधान नहीं हो पाया है।
इसके अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे कई राज्यों में पीपीएस सेवा के 18407-20000 वेतनमान वाले अफसरों को एआईजी का पदनाम दिया जाता है, किंतु उत्तराखंड में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
23 नवंबर 2016 को इस संवाददाता ने पीपीएस अधिकारियों के वेतनमान तथा पदोन्नति से संबंधित विसंगतियों को लेकर मानवाधिकार आयोग में एक अपील दायर की थी।
आयोग ने इन विसंvinod-sharmaगतियों को मानवाधिकार का उल्लंघन मानते हुए पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर आख्या मांग ली है।
अब एसोसिएशन की निगाहें पुलिस महानिदेशक द्वारा मानवाधिकार आयोग को भेजे जाने वाले जवाब पर टिकी है। दिसंबर का महीना पीपीएस एसोसिएशन के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इस माह के अंत में राज्य में आचार संहिता लागू हो जाएगी। ऐसे में इन अधिकारियों को उम्मीद है कि सरकार उनके पक्ष में कोई न कोई अनुकूल फैसला जरूर लेगी।

”पीपीएस अफसरों की वैसे तो कोई बड़ी समस्याएं नहीं हैं और छोटी-मोटी मांगों को हम पूरा करते ही रहते हैं। राज्य में पीपीएस की स्थिति पूर्ववर्ती उत्तर प्रदेश से कहीं बेहतर है। जो भी मांगें होंगी, उन पर सम्यक विचार किया जाएगा।
– विनोद शर्मा, सचिव गृह, उत्तराखंड शासन

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