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हल्द्वानी में छात्र संघ चुनाव : धन सिंह की जीत और इंदिरा की हार !  

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 जगमोहन रौतेला  
      कुमाऊँ के सबसे बड़े महाविद्यालय में भाजपा और कांग्रेस के बीच प्रतिष्ठा का सवाल बने छात्र संघ चुनाव में भाजपा के अनुशांगिक छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने तीन साल बाद वापसी की .
हल्द्वानी के एमबी राजकीय महाविद्यालय का चुनाव मतदान से दो दिन पहले उच्च शिक्षा राज्य मन्त्री डॉ. धनसिंह रावत बनाम प्रतिपक्ष की नेता डॉ. इंदिरा ह्रदयेश हो गया था . दोनों के बीच अपने -अपने प्रत्याशियों को लेकर बयान युद्ध तक हुआ . जिसमें अनन्त: धनसिंह रावत जीत गए .
    कल 10 अक्टूबर 2017 को हुए छात्र संघ चुनाव में अभाविप के प्रत्याशी कुलदीप कुल्याल की जीत हुई और उन्होंने एनएसयूआई की मीमांशा आर्य को 597 वोटों के भारी अन्तर से हराया . उन्हें 2400 वोट मिले तो मीमांशा को 1803 वोट . नोटा का बटन दबाने वाले भी 20 छात्र थे . जीत भले ही विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी की हुई हो , लेकिन जिस तरह से मतदान के पहले दिन तक पूरा चुनाव धन सिंह रावत बनाम इंदिरा ह्रदयेश हो गया था उससे सब की निगाहें इस चुनाव परिणाम पर लगी हुई थी . डॉ. धनसिंह रावत ने तो विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के लिए सत्ता के प्रभाव का इस्तेमाल अपनी हदों से बाहर जाकर तक किया . उन्होंने मीमांशा का नामांकन रद्द करवाने के लिए  मतदान से एक दिन पहले तक ऐड़ी – चोटी का पूरा जोर लगाया . मीमांशा के ऊपर विद्यार्थी परिषद ने आरोप लगाया कि उसने एक बार फेल होने के बाद फिर से दूसरी कक्षा में प्रवेश लिया था . जिसमें उन्होंने अपने फेल होने की बात छुपाई थी . उन्होंने विश्विद्यालय में दो – दो बार अपना नामांकन करवाया . जो कि विश्वविद्यालय के नियमों के विरुद्ध है . 
     परिषद ने इस बारे में एक शिकायती प्रत्यावेदन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. जगदीश प्रसाद को दिया , लेकिन उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर का मामला बताकर कर कोई कार्यवाही नहीं की . जिसके बाद विद्यार्थी परिषद् ने इसकी शिकायत उच्च शिक्षा राज्य मन्त्री डॉ. धन सिंह रावत से की . मामले की जानकारी मिलते ही धनसिंह ने गत 7 अक्टूबर को देहरादून से हल्द्वानी की दौड़ लगाई और हल्द्वानी में उच्च शिक्षा निदेशालय में शौर्य दीवार का उद्घाटन करने के बहाने उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. बीसी मेलकानी के सामने ही प्राचार्य डॉ. प्रसाद को एक तरह से डपटते हुए कहा कि जब उन्हें मीमांशा द्वारा ” फ्रॉड ” किए जाने की जानकारी दे दी गई थी तो उन्होंने उसका नामांकन रद्द करने के साथ ही उसे जेल क्यों नहीं भेजा ? जब प्राचार्य ने यह सफाई दी कि यह मामला उनके स्तर का नहीं , विश्वविद्यालय स्तर का है . मीमांशा के तीन साल पुराने मामले में विश्वविद्यालय उसे बीएससी की डिग्री तक दे चुका है . लिंहदोह समिति के नियमों के अनुसार वह सारी अहर्ताएँ पूर्ण करती है तो उच्च शिक्षा मन्त्री रावत अपना आपा खो बैठे और उन्होंने प्राचार्य को इस बारे में तुरन्त ही कुमाऊँ विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. डीके नौडियाल को पत्र लिखने और उसकी एक प्रति उन्हें देने को कहा . प्राचार्य को राज्य मन्त्री के आदेश का पालन करने के लिए तुरन्त ही बैठक से जाना पड़ा था .
    इस पूरे मामले ने तब राजनैतिक रंग लिया , जब इसका पूरा वीडियो सोशल मीडिया में जारी हो गया . इसके बाद तो भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ( एनएसयूआई ) की प्रत्याशी मीमांश आर्य की ओर से चुनाव का पूरा मोर्चा नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश ने अपने हाथों में ले लिया . उससे पहले चुनाव की पूरी रणनिति उनके बेटे और मंडी परिषद के अध्यक्ष सुमित ह्रदयेश बना रहे थे . राज्य मन्त्री के सामने आने से इंदिरा भी छात्र संघ चुनाव में प्रत्यक्ष रुप से कूद गई . उन्होंने धनसिंह रावत द्वारा प्राचार्य पर डाले गए अनुचित दबाव की तीव्र निंदा करते हुए मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र रावत से धनसिंह को बर्खास्त करने की मांग की और कहा कि वे इस मामले में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी पत्र लिखेंगी . इंदिरा ने इस बहाने भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि एक ओर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ” बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ ” का नारा लगा रहे हैं , दूसरी ओर उनकी ही पार्टी की प्रदेश सरकार के राज्य मन्त्री एक दलित बेटी को राजनीति में आने से रोकने के लिए महाविद्यालय प्रशासन पर न केवल अनुचित दबाव डाल रहे हैं , बल्कि उसे जेल भेजने तक को कह रहे हैं . उन्होंने कहा कि राज्य के उच्च शिक्षा राज्य मन्त्री एक दलित बेटी का मानसिक व सामाजिक उत्पीड़न कर रहे हैं .
      इंदिरा ह्रदयेश के हमले के जवाब में धनसिंह ने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार करते हुए कहा कि वह उनकी दीदी हैं और उन्होंने क्या कहा ? इस पर वे  कुछ नहीं कहेंगे , लेकिन किसी भी स्तर पर कुछ गलत नहीं होने दिया जाएगा . जो भी गलत करेगा उसे सजा मिलनी चाहिए . इसके बाद एमबी महाविद्यालय हल्द्वानी के छात्र संघ का चुनाव पूरी तरह से धनसिंह रावत बनाम इंदिरा ह्रदयेश में बदल गया . इंदिरा ने चुनावी रणनीति बनाने के लिए कांग्रेस के उन सभी बड़े नेताओं की बैठक 9 अक्टूबर को अपने घर में बुलाई जो पूर्व में कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके थे . दूसरी ओेर डॉ. धन सिंह रावत पूरी तरह से मीमांशा का नामांकन रद्द करवाने को पूरा जोर लगाए रहे . उन्होंने इसके लिए सचिवालय तक की मदद ली . उच्च शिक्षा के संयुक्त सचिव एमएम सेमवाल ने राज्य मन्त्री के दबाव में महाविद्यालय के प्राचार्य से मीमांशा से सम्बंधित सभी दस्तावेज तलब किए . उन्होंने कुछ उच्चाधिकारियों व विधि विभाग तक के साथ इस पर विचार – विमर्श किया . जब विधि विभाग ने यह बताया कि अब इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है और चुनाव परिणाम आने के बाद ही इस बारे में न्यायालय की शरण ली जा सकती है तो तब जाकर धन सिंह रावत ने मीमांशा का नामांकन रद्द करने की अपनी जिद बंद की . इस सारी कवायद के बीच 9 अक्टूबर को ही एक बार मीमांशा का नामांकन रद्द होने की अफवाहें उड़ी तो पुलिस व प्रशासन के अधिकारी मीमांशा को खोजने में जुट गए , क्योंकि उसने धमकी दी थी कि यदि उसका नामांकन रद्द किया गया तो वह आत्मदाह कर लेगी . पर मामले के अफवाह साबित होने पर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने राहत की सांस ली . इसके बाद धनसिंह रावत देहरादून में बैठकर छात्र संघ चुनाव की पल – पल की खबर लेते रहे तो इंदिरा ह्रदयेश हल्द्वानी में अपने निवास से ही पूरी चुनावी रणनीति को निर्देशित करती रहीं .
    इस कारण से यह चुनाव बेहद चर्चा में होने के साथ ही दोनों नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था . जिसमें एवीबीपी प्रत्याशी के विजयी होने से बाजी उच्च शिक्षा मन्त्री डॉ. धनसिंह रावत के हाथ लगी . एनएसयूआई प्रत्याशी की हार से डॉ. इंदिरा के लिए राजनैतिक झटका तो लगा ही है . जो अगले वर्ष होने वाले नगर निगम चुनाव के लिहाज से भी शुभ संकेत नहीं है .
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