• Home
  • उत्तराखंड
  • सरकारी नौकरी
  • वेल्थ
  • हेल्थ
  • मौसम
  • ऑटो
  • टेक
  • मेक मनी
  • संपर्क करें
No Result
View All Result
No Result
View All Result
Home पर्वतजन

हिमालय पर वैज्ञानिक दोराय

in पर्वतजन
0
1
ShareShareShare

Related posts

कृषि एवम् उद्यान मंत्री गणेश जोशी ने श्री दरबार साहिब में टेका मत्था

February 5, 2023
15

विश्व कैंसर दिवस पर CIMS & UIHMT कॉलेज में आयोजित किए कई कार्यक्रम

February 4, 2023
17

प्रदूषण और पेड़ों के कटान का प्रभाव हिमालय पर ही पड़ रहा है। आने वाले समय में पडऩे वाले प्रभावों के प्रति वैज्ञानिकों की अलग-अलग राय सामने आ रही हैं

प्रेम पंचोली

वैज्ञानिकों की माने तो अब फिर से ‘हिम युगÓ की शुरुआत हो सकती है। यह तो समय ही बतायेगा, किंतु वर्तमान में मौसम परिवर्तन के कारण जन-धन की जो हानियां सामने आ रही है, वह अहम सवाल है। इस पर भी वैज्ञानिकों का मत अलग-अलग है। एक वैज्ञानिक समूह कहता है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और दूसरा समूह कहता है कि फिर से ‘हिम युगÓ आने वाला है। सही और गलत तो वैज्ञानिक ही समझा सकते हैं पर मौजूदा वक्त यह तो स्पष्ट है कि ग्लेशियरों का पिघलना तेज हुआ है।
कभी गंगोत्री से गौमुख ग्लेशियर पास था तो अब 18 किमी. दूर हो गया है। इतनाभर ही नहीं, गौमुख ग्लेशियर का वह गाय के मुख जैसा आकार जो 18 हजार साल पहले बना था, वह वर्तमान में पिघलकर टूट गया है। इसे ग्लोबल वार्मिंग कहेंगे कि ग्लेशियरों का पिघलना। कुछ भी कहें, परंतु तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर स्थानीय स्तर पर जलवायु को प्रभावित कर रहे हंै। अब बेमौसमी बारिश, बेमौसमी फूलों के खिलने जैसी समस्या आये दिन प्रकृति व लोगों के साथ हो रही है। लोग जिस फसल की बुआई करते हैं, वह समय पर तैयार इसलिए नहीं हो पा रही है कि अमुक फसल को समय पर वर्षा-पानी नहीं मिल रहा है। यहां तक कि गौमुख ग्लेशियर का रंग दिन-प्रतिदिन मटमैला होता जा रहा है। इस दौरान जब गौमुख ग्लेशियर तेजी से पिघला तो उसके भं्रश चीड़वासा और भोजवास के नालों में पट गये। जब नालों के पानी ने उफान भरा तो गंगोत्री में भागीरथी शीला तक भागीरथी नदी पहुंच गई। यह नजारा कई सौ सालों बाद गंगोत्री में देखने को मिला। इस बात की पुष्टि गंगोत्री मंदिर के पुजारी कर रहे थे। वे बता रहे थे कि जब-जब भागीरथी शीला तक भागीरथी का पानी पहुंचा, तब-तब इस क्षेत्र में खतरनाक प्राकृतिक घटनाएं घटी। इस तरह के मौसम परिवर्तन के बारे में वैज्ञानिक ही अच्छी तरह जबाब दे सकते हैं।
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ ग्लेशियर विज्ञानी डा. सुधीर तिवारी कहते हैं कि साल 2013 में केदारनाथ आपदा के कारण गौमुख ग्लेशियर पर दरारें पड़ी थी और अत्यधिक बारिश होने से ग्लेशियर का गौमुखनुमा आकार बह गया। वह कहते हैं कि सियाचीन के बाद हिमालय में गंगोत्री-ग्लेशियर सबसे बड़ा है, जो 32 किमी. लंबा है।
शोधकर्ता व वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. समीर तिवारी कहते हैं कि विश्व के वैज्ञानिको में अब तक हिमालय के कार्बन उत्र्सजन की स्थिति स्पष्ट नहीं है। अब पता चला कि हिमालय विश्व का 13 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जित करता है।
जिम्मेदारी से बेरुखी
उत्तराखंड में रक्षासूत्र आंदोलन के सूत्रधार व पर्यावरणविद् सुरेश भाई कहते हैं कि हिमालय में खतरे सामने से दिखाई दे रहे हैं और हम लोग उपभोगवादी प्रवृत्ति पर उतर आये हंै। संरक्षण और संबद्र्धन की बातें मात्र कागजों और गोष्ठियों तक सिमटकर रह गये हैं। जिम्मेदार लोग इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। हां इतना जरूर है कि बयानवीरों की लंबी सूची बन रही है।
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण-संबद्र्धन नहीं, सिर्फ दोहन और उपभोग की योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। यही वजह है कि आए दिन इस हिमालय में प्राकृतिक आपदाएं घट रही है और हिमालय में रहने वाले लोग भी हर वक्त प्राकृतिक आपदाओं के कारण डरे-सहमें ही नहीं रहते, बल्कि कई बार लोग प्राकृतिक आपदाओं के शिकार भी हुए हैं।
जिस ग्लेशियर के आस-पास जोर से आवाज लगाना भी प्रतिबंधित है, उसी ग्लेशियर के पास में ऐसे भारी-भरकम नव निर्माण हो रहे हंै। इस निर्माण में रासायनिक विस्फोटक से लेकर विशालकाय मशीनी उपकरण, गाड़ी-मोटर और पेड़ों की बहुतायत में कटान तमाम तरह के अप्राकृतिक व अनियोजित कार्य हो रहे हैं तो निष्क्रित तौर पर गौमुख ग्लेशियर पर असर पड़ेगा। जिसका असर साल 2010 से दिखाई देने लग गया है। इस तरह कह सकते हैं कि एक तरफ इस नवनिर्माण से कार्बन उत्र्सन हो रहा है तो दूसरी तरफ कार्बन को नष्ट करने वाले प्राकृतिक संसाधनों का अनियोजित दोहन किया जा रहा है।

देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के इतिहास से संबधित आंकड़े खंगाले तो उन्हें चौंकाने वाले तथ्य मिले। वैज्ञानिकों के अध्ययन बताते हैं कि हिमालय क्षेत्र में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा घट रही है। 50 करोड़ साल पहले हिमालय में इसकी मात्रा 7500 पार्ट पर मिलियन थी। 40 करोड़ साल 3000 पार्ट पर मिलियन हुई और अब घटकर 420 पार्ट पर मिलियन पर आ गयी।

Previous Post

सपा की आभा बढ़ाएंगी 'बड़थ्वाल'

Next Post

चिंतन और चिंता से गायब उत्तराखंड

Next Post

चिंतन और चिंता से गायब उत्तराखंड

    Recent News

    • बिग न्यूज़ : सभी कर्मचारियों की एसीआर होगी ऑनलाइन, पदोन्नति में मिलेगा फायदा
    • UIDAI : आधार कार्ड बनवाने या अपडेट करवाने के लिए फॉलो करने होंगे यह नियम, आया बड़ा अपडेट
    • अपराध : गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता को गोलियों से भूना

    Category

    • उत्तराखंड
    • पर्वतजन
    • मौसम
    • वेल्थ
    • सरकारी नौकरी
    • हेल्थ
    • Contact
    • Privacy Policy
    • Terms and Conditions

    © Parvatjan All rights reserved. Developed by Ashwani Rajput

    No Result
    View All Result
    • Home
    • उत्तराखंड
    • सरकारी नौकरी
    • वेल्थ
    • हेल्थ
    • मौसम
    • ऑटो
    • टेक
    • मेक मनी
    • संपर्क करें

    © Parvatjan All rights reserved. Developed by Ashwani Rajput

    error: Content is protected !!
    Go to mobile version