पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। उत्तराखंड में पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए बनाए गया पलायन आयोग शुरुआत से ही अपना रंग दिखाने लगा है।
30 सितंबर 2017 को त्रिवेंद्र सिंह रावत के फेसबु पेज पर लिखा गया था कि उत्तराखंड में पहली बार बनने वाले पलायन आयोग का मुख्यालय पौड़ी में रहेगा।
इसके कमेंट बॉक्स में तभी राजेंद्र नाम के व्यक्ति ने आशंका जता दी थी कि यह पलायन आयोग भी पलायन कर जाएगा और या तो हर हफ्ते शनिवार को देहरादून और सोमवार को पौड़ी आएगा या फिर इसका कैंप ऑफिस देहरादून में ही बन जाएगा।
इन्होंने तब ही आशंका जता दी थी कि यह केवल धन की बर्बादी ही है और पलायन रोकने के लिए सरकार में दम होना चाहिए। (पाठकों के सुलभ संदर्भ के लिए CM की पोस्ट और उस पर राजेंद्र की टिप्पणी का स्क्रीनशॉट दिया जा रहा है।)
आज 5 महीने बाद वही आशंकाएं सही साबित हो रही हैं। पलायन आयोग ने पहले अपने आने-जाने के लिए Innova जैसी लग्जरी गाड़ियों के विज्ञापन निकाले।
दूसरे चरण में पलायन आयोग ने देहरादून में अपना कार्यालय जमा दिया। कैंप कार्यालय के नाम पर जमाए गए इस ऑफिस में भी अक्सर ताले लगे रहते हैं।
अब तीसरा काम पलायन आयोग ने कर्मचारियों की भर्ती करने के नाम पर एक नया विज्ञापन निकालकर किया है।
बहुत शॉर्ट नोटिस पर निकाले गए इस विज्ञापन के द्वारा देश के राष्ट्रीय संस्थानों और विदेशी विश्वविद्यालयों से पहाड़ों में ₹40000 के वेतन पर काम करने के लिए कर्मचारी मांगे गए हैं।
उत्तराखंड में हजारों बीटेक और एमबीए शिक्षा प्राप्त युवक-युवतियां बेरोजगार घूम रहे हैं। इग्नू से सोशल वर्क में डिग्रीधारी सैकड़ों युवक-युवतियां बेरोजगार हैं। ऐसे में दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश, रांचीस बेंगलुरु और कनाडा जैसे देशों के अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थानों से युवाओं की डिमांड करना किसी के गले नहीं उतर रहा है।
इसमें आवेदन की अंतिम तिथि 10 मार्च रखी गई है। सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन को लेकर लोग सरकार की खूब खिंचाई कर रहे हैं।
जब वन विभाग के रिटायर अफसर एस एस नेगी को पलायन आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया था तो सरकार ने कहा था कि इनकी नियुक्ति के बाद पलायन को रोकने में मदद मिलेगी । भारतीय वन सेवा में हिमाचल कैडर के अधिकारी रहे एसएस नेगी वन अनुसंधान संस्थान एफ आर आई के भी निदेशक रहे हैं।
अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि पूरा जीवन वन विभाग की नौकरी करने वाले एसएस नेगी की तो सोच ही जंगलों को बसाने पर केंद्रित है। ऐसे में वह गांव को बसाने की दिशा में कैसे सोच सकते हैं!
ऐसे में लगता है कि एसएस नेगी की सोच को दोष देकर कोई फायदा नहीं। उनकी तो पूरी ट्रेनिंग और पूरा कार्यानुभव ही जंगलों को बसाने-बढ़ाने के लिए तैयार हुआ है।
ऐसे में सरकार की सोच पर सवाल खड़े होते हैं कि उन्होंने एसएस नेगी की नियुक्ति क्या सोचकर की थी। सरकार वाकई पलायन को नियंत्रित करने के लिए गंभीर है अथवा वह अपने किसी चहेते को घोड़ा- गाड़ी- दफ्तर- कर्मचारी देने के लिए मात्र एक कुर्सी का इंतजाम करना चाहती थी।