भूपेंद्र कुमार
उत्तराखंड के लोगों ने आजकल अखबारों में एक खबर पढ़ी होगी कि “राजपुर थानाध्यक्ष लाइन हाजिर।”
अखबारों में खबर छपी थी कि गढ़वाल रेंज के पुलिस महानिरीक्षक के आदेश पर विकासनगर की जमीन विवाद को राजपुर थाने में सुलझाने और वेस्ट यूपी के माफिया के करीबी को लाभ पहुंचाने पर एसएसपी ने एसओ अरविंद कुमार को लाइन हाजिर कर दिया है।
अरविंद कुमार काफी लंबे समय से माफियाओं से सांठगांठ को लेकर चर्चित रहता है और यह मामला काफी दिनों से चर्चाओं में था।
थानेदार ही यदि वेस्ट यूपी के माफिया के नाम पर वसूली करने लगे तो फिर उत्तराखंड के लोगों का तो भगवान ही मालिक है। यह खुलासा होने के बावजूद उच्चाधिकारियों ने एसओ को केवल लाइन हाजिर ही किया और अखबारों ने भी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए बिना हेडिंग तान दी कि राजपुर थाना अध्यक्ष लाइन हाजिर !
लेकिन क्या कभी आप ने सवाल उठाया है कि यह लाइन हाजिर आखिरकार बला क्या होती है !!
इस संवाददाता ने लाइन हाजिर को समझने के लिए बाकायदा सूचना के अधिकार अधिनियम का प्रयोग किया और बड़ा चौंकाने वाला मामला निकला।
इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत एसएसपी ऑफिस से लाइन हाजिर के संबंध में की वाली विभागीय कार्यवाही तथा जनवरी 2017 से जून 2018 तक जितने भी पुलिसकर्मियों/अधिकारियों को लाइन हाजिर किया है, उनकी जानकारी मांगी थी।
पुलिस अधीक्षक ग्रामीण ने तो साफ कह दिया कि लाइन हाजिर के संबंध में कोई सूचना धारित नहीं है।
जब अपीलीय अधिकारी आईजी गढ़वाल के यहां अपील की गई तो जवाब आया कि लाइन हाजिर के संबंध में कोई नियमावली नहीं है, और ना ही इसका कोई रिकॉर्ड रखा जाता है कि कौन-कौन पुलिसकर्मी लाइन हाजिर किया गया और क्यों किया गया !
आप यूं समझ सकते हैं कि जब भी पुलिस अधिकारी किसी पुलिसकर्मी को फील्ड की ड्यूटी से हटा कर पुलिस लाइन में बुला लेते हैं तो उसे लाइन हाजिर करना कह देते हैं।
कई बार ऐसा भी होता है कि पुलिस के बड़े अधिकारी किसी विवाद के चलते किसी पुलिसकर्मी को लाइन हाजिर होने का आदेश देते हैं तो वह अखबारों की सुर्खियों तक ही शामिल रहता है।
जनता अखबार में लाइन हाजिर की खबर पढ़ कर शांत हो जाती है, जबकि पुलिस कर्मी को पुलिस लाइन तक में नहीं बुलाया जाता, वह पूर्ववत अपनी ड्यूटी करता रहता है।
बिना किसी नियमावली और ट्रेक रिकॉर्ड के लाइन हाजिर करना एक तरह से पब्लिक की आंखों में सीधा सीधा धूल झोंकने के समान है।
राजपुर थानाअध्यक्ष के माफिया से सांठगांठ होने जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद थानाध्यक्ष को केवल लाइन हाजिर करना एक बहुत बड़ी लापरवाही है और यह मित्र पुलिस की छवि को दागदार भी करता है, लेकिन ऐसा लगता है कि मित्र पुलिस को दाग अच्छे लगने लगे हैं !!