उत्तराखंड सचिवालय में सात अधिकारियों द्वारा अपने समकक्ष अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर करने मामला पकड़ में आया है।
यही नही, पता चला है कि उच्चाधिकारियों ने अपने स्तर पर ही मामला निपटा दिया। जांच अधिकारी ने भी यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि उनके पास हस्त लिपि विशेषज्ञ नहीं है इसलिए वह जांच नहीं कर सकते। जब कि सात अधिकारियों ने लिखित में बयान दर्ज कराए हैं कि उन्होंने कोई हस्ताक्षर नहीं किए थे और उनके हस्ताक्षर फर्जी किए गए हैं।
दोषी अधिकारियों को बचाने का यह खेल जीरो टॉलरेंस की सरकार में बढ़िया ढंग से खेला जा रहा है।
यह है पूरा मामला
सचिवालय प्रशासन के केंद्रीय अनुभाग में अनु सचिव स्तर के अनुभाग अधिकारी के बजाय अनुभाग अधिकारी स्तर के निजी सचिव को तैनात किए जाने के लिए एक संयुक्त हस्ताक्षरित पत्र 10 अगस्त 2016 को 81 निजी सचिव के हस्ताक्षर से शासन में सौंपा गया था।
किंतु इस पत्र में पता चला कि मात्र 69 लोगों के ही सही हस्ताक्षर हैं, जबकि 7 निजी सचिव के हस्ताक्षर फर्जी हैं। इस पर जांच बैठाई गई और अपर सचिव सुभाष चंद्र को जांच अधिकारी बनाया गया। किंतु अपर सचिव सुभाष चंद्र ने 27 नवंबर 2017 को अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा कि हस्तलिपि विशेषज्ञ उपलब्ध ना होने के कारण वह अपने स्तर पर इसकी जांच नहीं कर सकते।
सात निजी सचिवों ने जांच अधिकारी के सामने लिखित में बयान दिया कि उन्होंने इस पत्र पर कोई हस्ताक्षर नहीं किए थे।
आरटीआइ मांगने वाले को भी लपेटा
जब आरटीआई एक्टिविस्ट रमेश चंद्र शर्मा ने इसकी जानकारी मांगी तो उन्हें पहले तो बिना सत्यापित किए लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी दी और बाद में उन्हें ही लपेटने का प्रयास किया और पूछ लिया कि उनके पास यह जानकारी कहां से आई !
रमेश चंद्र शर्मा ने सूचना आयोग में यह साबित कर दिया कि यह जानकारी उन्हें सूचना के अधिकार में मिली है तो फिर इस पूरे मामले को ही रफा-दफा करने के प्रयास शुरू हो गए।
हालांकि जांच के दौरान बाद मे जिन अधिकारियों ने हस्ताक्षर नहीं भी किए थे, उन्होंने भी उपरोक्त प्रकरण से सहमति व्यक्त की और बताया कि वह केंद्रीय अनुभाग में निजी सचिव स्तर का ही अनुभाग अधिकारी बनाने के पक्ष में हैं लेकिन उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए थे।
इस पर सचिवालय प्रशासन विभाग के उप सचिव केवलानंद उपाध्याय ने नोटशीट में यह लिखते हुए फाइल आगे बढ़ा दी कि फर्जी हस्ताक्षर करने वालों का पता नहीं चल पाया है और कोई वित्तीय अनियमितता भी नहीं हुई है इसलिए प्रकरण को समाप्त करने का विचार किया जाए।
किंतु संयुक्त सचिव क्या स्तर पर निर्देश दिए गए कि जिन कर्मचारियों ने फर्जी हस्ताक्षर किए हैं, उनकी जांच हस्तलिपि विशेषज्ञ से कराए जाने का प्रस्ताव तैयार किया जाए।
सचिव चुघ की “चुप्पी और चुग्गा”
इसके बाद यह फाइल दबा दी गई और लंबी चुप्पी के बाद 4 जुलाई 2018 को सचिवालय प्रशासन के सचिव हरवंश सिंह चुघ ने एक कार्यालय ज्ञाप जारी किया जिसमें उन्होंने भी माना है कि कुछ कर्मचारियों ने फर्जी हस्ताक्षर किए हैं जो पूर्ण रूप से अनुचित और आपत्तिजनक है। किंतु इस पर कार्यवाही करने की बात कहने के बजाय उन्होंने आइंदा से ध्यान रखने की बात और भविष्य मे हस्ताक्षरों की पुष्टि करने के निर्देश दिए हैं। यह पत्र जारी किए जाने का मतलब है कि फर्जी हस्ताक्षर करने वाले कार्मिकों का मामला यहीं रफा-दफा कर दिया गया है।
सचिवालय में पहले भी ऐसे प्रकरण सामने आते रहे हैं जब सचिव स्तर तक के अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर पकड़े गए हैं, किंतु उस पर भी कभी कोई कार्यवाही नहीं की गई।
एक बार तो एक प्रकरण में तत्कालीन सचिव उमाकांत पंवार ने ही कह दिया था कि नोटशीट पर उनके हस्ताक्षर नहीं है, किंतु उसके बाद इस प्रकरण पर आगे क्या हुआ कोई नहीं जानता।
ताजे मामले में सात अधिकारियों के हस्ताक्षर फर्जी पाए जाने की बात पुष्ट होने के बाद भी कोई कार्यवाही न किया जाना जीरो टॉलरेंस की सरकार को मुंह चिढ़ाने जैसा है।