करीब छह सौ करोड़ रुपये के एक्यूरेट मीटर घोटाले पर विद्युत विभाग के उच्चाधिकारी कुंडली मार कर बैठे हैं। एक-एक कर आरोपित अधिकारियों के सेवानिवृत्त होते जाने व उच्चाधिकारियों द्वारा कई साल बाद भी इस मामले में कार्रवाई न किया जाना, विद्युत विभाग के हुक्मरानों पर भी संदेह पैदा कर रहा है
कुमार दुष्यंत/हरिद्वार
यदि किसी उपभोक्ता का विद्युत मीटर खराब हो तो विभाग इसे उपभोक्ता का दोष मानते हुए उपभोक्ता से जुर्माना वसूलता है, लेकिन जब विद्युत विभाग के अधिकारी ही नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों रुपये के खराब मीटर खरीद लें। तब यह कितना बड़ा अपराध माना जाए,इस पर विभाग मौन है!
विभाग द्वारा 2004-05 में गाजियाबाद की एक्यूरेट फर्म से खरीदे गए निम्न गुणवत्ता के लाखों विद्युत मीटर के लिए दोषियों के खिलाफ आज तक प्रभावी कार्रवाई न होना, इस मामले को और भी संदिग्ध बना रहा है।
जानबूझकर खराब मीटर
वर्ष 2004 दिसंबर में विद्युत विभाग ने एक्यूरेट कंपनी को दो लाख दस हजार मीटर की आपूर्ति का आदेश दिया था। दिसंबर अंत में कंपनी ने पहली खेप के रूप में ७० हजार मीटर विभाग को उपलब्ध करा दिए, लेकिन उपभोक्ताओं तक पहुंचने के करीब तीन माह के अंदर ही इनमें से ४३ हजार विद्युत मीटर खराब हो गये। जिसकी शिकायतें विभिन्न जिलों से मुख्यालय को मिली। कुछ जनपदों से अधिशासी अभियंताओं ने आगे यह और अधिक मीटर न खरीदे जाने की सलाह भी मुख्यालय को दी, लेकिन इसके बावजूद यह मीटर खरीदे जाते रहे और शिकायतों के बाद भी एक्यूरेट कंपनी से पूर्व के मसौदे के अनुसार ही पूरे २ लाख १० हजार मीटर खरीद लिए गए।
बाद में जब यह मामला ‘भ्रष्टाचार के सरकारी सरंक्षणÓ का मामला बनने लगा तो तत्कालीन कांग्रेसनीत सरकार के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने इस सारे प्रकरण की जांच पिटकुल के तत्कालीन अध्यक्ष एस. मोहनराय को सौंप दी। जिन्होंने दो वर्षों की जांच के बाद पाया कि इन मीटरों की खरीद में अनियमितता बरती गई है। पिटकुल अध्यक्ष ने जांच में पाया कि नियमों को अवहेलित कर क्रय समिति ने अधोमानक मीटरों की खरीद में रुचि ली। समिति को नियमानुसार कंपनी से पहले प्रायोगिक तौर पर ५ हजार मीटर ही लेने थे तथा मीटरों के सफलता परिणाम के बाद ही अन्य मीटरों की खरीद के आदेश दिये जाने चाहिए थे, लेकिन क्रय समिति ने पहली खेप के तौर पर ही एक्यूरेट से ७० हजार मीटर ले लिए।
इतना ही नहीं बड़ी संख्या में आयी प्रारंभिक शिकायतों के बावजूद मीटरों की खरीद जारी रही व कंपनी से पूरे मीटर खरीदे गए।
दबा ली कार्रवाई की फाइल
एस. मोहनराय ने इस सारे मामले में क्रय समिति से जुड़े ११ अधिकारियों को दोषी मानते हुए जुलाई 2007 में उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई हेतु रिपोर्ट मुख्य सचिव ऊर्जा को सौंप दी।
सचिवालय में तब से अधिकारी इस रिपोर्ट पर कुंडली मारे बैठे हैं। इस दौरान अधिकारियों को सेवानिवृत्त होने का मौका दिया जाता रहा और अब सेवानिवृत्ति के चार साल बाद कार्रवाई न हो सकने के नियम का हवाला देकर फाइलों पर ‘अब कार्रवाई किया जाना समीचीन न होगाÓ लिखकर फाइलों को बंद किए जाने की तैयारी है।
यह पूरा मामला करीब ६ सौ करोड़ की खरीदारी से जुड़ा है, जिसमें भ्रष्टाचार साफ दिखाई दे रहा है। करीब ४ लाख मीटरों की खरीद के लिए पांच कंपनियां को आदेश दिया गया। इसमें आधे से अधिक मीटर सिर्फ एक्यूरेट से ही खरीद लिया जाना ही अपने आप में बड़ा संदेह पैदा करता है। पूरी खरीदारी में घोटाले की भूमिका साफ होने के बावजूद भ्रष्टाचार के संरक्षकों ने मामले को बंद करने की तैयारी कर ली है।
एस मोहनराय द्वारा दोषी ठहराये गये अधिकारी
(1)एम.के. जैन (अधिशासी अभियंता)
(2)मोहित डबराल (सहायक अभियंता)
(3)जी.के. शर्मा (अधिशासी अभियंता)
(4)सी.पी. शर्मा (मुख्य उप महाप्रबंधक)
(5)ए.के. अग्रवाल (महाप्रबंधक )
(6)पुखराज कुशवाहा (महाप्रबंधक )
(7)आई.ए.गोयल (महाप्रबंधक )
(8)आर.ए.शर्मा (निदेशक )
(9)बी.ए.वर्मा (संयुक्त निदेशक )
(10)एस.पी.एस. राघव (प्रबंध निदेशक ) व एक अन्य।
एस. मोहनराय ने इस सारे मामले में क्रय समिति से जुड़े 11 अधिकारियों को दोषी मानते हुए जुलाई 2007 में उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई हेतु रिपोर्ट मुख्य सचिव ऊर्जा को सौंप दी। सचिवालय में तब से अधिकारी इस रिपोर्ट पर कुंडली मारे बैठे हैं।