नीरज उत्तराखंडी
राशन की राह ताकती सिस्टम की सताई सूनी आँखें
हक की गुहार लगाने के बाद भी सिस्टम के नक्कार खाने में नहीं पहुँची बुजुर्ग की पुकार
जरूरतमंद लोगों को जुझना पड़ रहा है दो जून की रोटी जुटाने
राशन डीलर मस्त है बुजुर्ग दम्पति के हिस्से का राशन चाटने मे।
बुजुर्ग ने कई बार उसके हिस्से का राशन खाने वाले सरकारी राशन विक्रेता के विरूद्ध कार्यवाही की मांग की लेकिन प्रशासन ने न तो हक दिलाया और ना ही दोषी राशन विक्रेता तथा उन्हें अन्त्योदय और बीपीएल कार्ड निरस्त कर एपीएल का राशन कार्ड थमाने वाले ब्लाक के कर्म चारियों के विरूद्ध ही कोई कार्रवाई अमल में लाई गई।
हक की गुहार लगाने के बाद भी सिस्टम के नक्कार खाने में नहीं पहुँची बुजुर्ग की पुकार
जरूरतमंद लोगों को जुझना पड़ रहा है दो जून की रोटी जुटाने
राशन डीलर मस्त है बुजुर्ग दम्पति के हिस्से का राशन चाटने मे।
बुजुर्ग ने कई बार उसके हिस्से का राशन खाने वाले सरकारी राशन विक्रेता के विरूद्ध कार्यवाही की मांग की लेकिन प्रशासन ने न तो हक दिलाया और ना ही दोषी राशन विक्रेता तथा उन्हें अन्त्योदय और बीपीएल कार्ड निरस्त कर एपीएल का राशन कार्ड थमाने वाले ब्लाक के कर्म चारियों के विरूद्ध ही कोई कार्रवाई अमल में लाई गई।
यह दुःख भरी दास्ताँ है जनपद देहरादून के पर्वतीय जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर के तहसील त्यूनी के फेडिज अटाल गाँव में निवास करने वाले 75 बुजुर्ग कालू की।राशन की राह ताकती सिस्टम की सताई सूनी आँखें हक की गुहार लगाने के बाद भी सिस्टम के नक्कार खाने में नहीं पहुँची बुजुर्ग की पुकार ।
अनुसूचित जाति का वोट बैंक बचाए रखने के लिए पूरे देश की तरह उत्तराखंड में भी भाजपा के राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय नेता दलितों के घर में भोजन अभियान चला रहे हैं लेकिन उत्तराखंड में अनुसूचित जाति के हजारों ऐसे परिवार हैं जो पहुंच और तीन तिकड़म वाले लोगों के कारण दारुण दुख झेल रहे हैं।
किंतु सरकार को वोट बैंक की राजनीति से फुर्सत मिले तब तो अनुसूचित जाति के व्यक्तियों की वास्तविक समस्याओं की तरफ सरकार का ध्यान जा पाएगा !
सुस्त और चिर निद्रा में सोये सरकारी सिस्टम ने अनुसूचित जाति के बुजुर्ग दम्पति का हक छीन कर ऐसा भद्दा मजाक किया कि बुजुर्ग दम्पति अपना हक अपने हिस्से का राशन और पेंशन पाने के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं।
पनचक्की में अनाज पीस कर किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ हो पाता था लेकिन शरीर में दुर्बलता आने से बुढापे में अब घराट चलना भी मुश्किल हो गया है उनके लिए।उम्र के इस अन्तिम पड़ाव में घराट चला कर दो जून की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो गया है, ऊपर से एक विधवा बेटी तथा उसके दो बच्चों के भरण पोषण और शिक्षा का बोझ।
“बेटा होता तो बुढ़ापे का सहारा बनता।बेटियों का बोझ।चार बेटियों की किसी तरह शादी करवा डाली,लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।”
एक बेटी के पति का सड़क दुर्घटना में मौत होने के बाद बेटी तथा उसके दो बच्चों के भरण-पोषण तथा शिक्षा की जिम्मेदारी भी वृद्ध उनके कंधे पर आ गई। कोई बेटा न होने से जिम्मेदारी भी पिता के बुढ़े कन्धों पर आने से आसमान से छूटे और खजूर पर अटके जैसी स्थिति पर लाकर खडा कर दिया है। विधवा बेटी का एक बेटा है जो विकलांग है तथा एक बेटी है।
वृद्ध पिता ने बेटी की विधवा पेंशन के लिए कई बार गुहार लगाई लेकिन न तो बेटी की पेंशन लगी न ही कोई मुआवजा मिला।
बुजुर्ग कालू कहते हैं कि पहले अन्त्योदय का राशन कार्ड बना था लेकिन महिला के नाम राशन कार्ड बनाये जाने के बहाने उनसे अन्त्योदय का राशन कार्ड जमा करने कहा गया और बाद में विभाग ने उसे एपीएल का राशन कार्ड थमा दिया।
बुजुर्ग की परेशानी यही खत्म नहीं हुई उनका कहना है कि जब वे राशन विक्रेता से राशन लेने गये तो उसका कहना था कि उनका सूची में नाम नहीं है।” तुम्हें राशन नहीं मिलेगा।” बुजुर्ग के पैरों तले जमीन खिसक गई काटो तो खून नहीं वाली स्थिति पैदा हो गई। बुजुर्ग ने हार नहीं मानी तीन साल से उन्हें न तो राशन मिला और न ही विधवा बेटी की पेंशन ही लग पाई।
बुजुर्ग कालू ने फिर भी हार नहीं मानी और उनकी इस दशा के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों तथा विभाग को सबक सिखाने के प्रशासन से गुहार लगाई लेकिन सिस्टम के नक्कार खाने में उनकी आवाज़ गुम हो गई। उन्हें आशा है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ उनकी आवाज बनकर उनका हक दिलाने तथा दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करवाने में उनका पूरा सहयोग करेगा।