कमल जगाती, नैनीताल
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने आज देहरादून के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ विजुअली हैंडीकैप्ड(एन.आई.वी.एच.)में बालिकाओं के साथ शिक्षकों द्वारा किये जा रहे शारीरिक शोषण को गंभीरता से लेते हुए तीन हफ्ते में स्थायी निदेशक नियुक्त करने को कहा है ।
न्यायालय ने एन.आई.वी.एच.की छात्राओं के शिक्षकों और स्टाफ के खिलाफ यौन शोषण के विरोध में अखबार में छपी खबर का संज्ञान लेते हुए आज कड़क फैसला सुनाया। न्यायालय ने हाई कोर्ट रेजिस्टरी को निर्देशित किया है कि वो क्लीनिकल साइकॉलोजी के असिस्टेंट प्रोफेसर सुरेंद्र धलवाल को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा जाए कि कोर्ट को निरंतर गुमराह करने के लिए क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही चलाई जाए। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सोशियल जस्टिस एवं इम्पावरमेंट मंत्रालय
से अलग से एफिडेविट जमा कर ये बताने के निर्देश दिए हैं कि उन्होंने जिसके खिलाफ इशारा किया गया है उसे 12 वर्षों तक इन विभाग का हैड कैसे बने रहने दिया ?
न्यायालय ने एन.आई.वी.एच.के निदेशक नियुक्त करने में असफल होने पर भारत सरकार के सोशियल जस्टिस एवं इम्पावरमेंट मंत्रालय के प्रमुख सचिव को अगली सुनवाई पर समस्त कागजों के साथ उपस्थित रहने को भी कहा है।
न्यायालय ने अपने आर्डर के अंत मे ये भी कहा है कि हाई कोर्ट के मैटर को कवर करने वाले उन सभी अखबारों के रिपोर्टरों को ये निर्देश दिए जाएं कि वो बिना उच्च न्यायालय की पुष्टि के कोई आर्डर को नहीं छापें। कोई भी मौखिक वार्तालाप या चर्चा को छापा नहीं जा सकता है। मामले में अगली सुनवाई 25 अक्टूबर को होनी तय हुई है।