बात उन दिनों की है, जब जनाब एक जिले में डीएम थे। एक कंपनी से परियोजना की फाइल टेबिल पर आई तो साहब ने तीन महीने के लिए दबा दी। अब परियोजना के अफसर परेशान। तब भी डीएम के पास जाएं तो डीएम कहें कि अभी पढ़ी नहीं, पढ़कर साइन कर दूंगा। कंपनी के अफसर परेशान कि जिले में काम भी कुछ खास नहीं, फिर फाइल पढऩे का तीन महीने से टाइम क्यों नहीं मिला। मातहत को भेजा तो साहब ने रूखा सा मुंह बनाकर समझाया कि फाइल बहुत हल्की बनाई होगी, कहीं उड़ गई होगी। फाइल में वजन रखने की बात साहब ने थोड़ा खुलकर समझाई कि भाई थोड़ा भाई-बंदी भी निभा लिया करो। अब अफसर परेशान कि अभी तो योजना का प्रस्ताव ही बनाकर भेजा जाना है, जब प्रस्ताव पास होगा, बजट मिलेगा, तभी तो कुछ देने की स्थिति में होंगे। अफसर ने अपने चाय-पानी के फंड में से २५ हजार रुपए एक लिफाफे में साहब को सौंपे और परियोजना के प्रस्ताव की प्रारंभिक स्थिति से अवगत कराया। लिफाफा पकड़ते ही साहब की उंगलियों में हरकत हुई और फाइल पर हस्ताक्षर करते हुए बोले, – ”भई मैंने पढ़ी नहीं है। सब ठीक से लिखा है न, देख लेना।ÓÓ अब जाकर अफसर को पता लगा, फाइल कैसे पढ़ी जाती है!