प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 माह में दूसरी बार केदारनाथ आए तो गढ़वाली और गुजराती में जनता का संबोधन कर उन्होंने फिर से स्थानीय लोगों का दिल जीत लिया। हालांकि स्थानीय लोग इस बात से जरूर मायूस रहे कि प्रधानमंत्री ने गौरीकुंड को केदारनाथ से जोड़ने वाली बहु प्रतीक्षित सड़क के निर्माण की कोई घोषणा नहीं की और न ही रोप वे लगाने की उम्मीद पूरी की।
इस बार का उनका दौरा केवल केदारनाथ के धार्मिक महत्व को विकसित करने पर ही केंद्रित था। नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ के पुजारियों के लिए तथा रास्तों की मरम्मत, बिजली और बाढ़ सुरक्षा से संबंधित 700 करोड रुपए की लागत की आधे दर्जन से अधिक कार्यों की घोषणाएं की।
उन्होंने रहस्य भी खोला कि वह वर्ष 1990 तक लगातार केदारनाथ आते रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने यह भी बताया कि 80 के दशक में उन्होंने यहां पर साधना की थी। और उसके बाद बाबा केदार के आशीर्वाद से गुजरात के मुख्यमंत्री बने। फिर से वह बाबा के दर से देश सेवा का आशीर्वाद लेकर नई ऊर्जा के साथ लौट रहे हैं।
नरेंद्र मोदी तो वापस जाकर देश की राजनीति में मशरूफ हो जाएंगे किंतु प्रदेश के तीर्थ स्थल और पर्यटन का पर्यायवाची बन चुके केदारनाथ धाम में जिन योजनाओं का शिलान्यास किया गया उन योजनाओं के शिलापटों पर स्थानीय विधायक तथा कांग्रेस के नेता मनोज रावत का नाम तो गायब था ही, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का भी नाम शिलापट्ट से गायब था। सतपाल महाराज राज्य के पर्यटन के साथ-साथ तीर्थाटन तथा धर्म संस्कृति मंत्री भी हैं।
केदारनाथ में होने वाले विकास कार्य पर्यटन तथा तीर्थाटन की नजर से देखे जाते हैं। ऐसे में पर्यटन से जुड़ी इन योजनाओं के शिलापट्ट पर महाराज का नाम न होने से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
इन योजनाओं के शिलापट्ट पर उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का नाम तो है किंतु स्थानीय विधायक और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का नाम ना होना प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन माना जा रहा है। एक दिन पहले केदार पधारे वित्त मंत्री प्रकाश पंत भी शिलापट से नदारद थे।
अब यह एक बड़ा सवाल है कि उनका नाम किसके इशारे पर गायब किया गया! इस क्षेत्र के स्थानीय सांसद भुवन चंद्र खंडूरी का नाम भी शिलापट्ट पर न देख कर मौके पर मौजूद लोगों में भी चर्चाओं का बाजार गर्म रहा। गौरतलब है कि प्रोटोकॉल के हिसाब से स्थानीय विधायक, स्थानीय सांसद के साथ ही योजनाओं से जुड़े कैबिनेट मंत्री का नाम शिलापट्ट से गायब होना कोई साधारण भूल नहीं कही जा सकती। प्रदेश की राजनीति में सिलापटों से नाम गायब होना कोई नई बात नहीं है, किंतु राजनीतिक रुप से स्थिर कही जाने वाली प्रचंड बहुमत की वर्तमान भाजपा सरकार से बड़ा दिल दिखाने की अपेक्षा लाजमी है। भाजपा के एक वयोवृद्ध नेता का कहना है कि मुख्यमंत्री को भी शिलापट्ट से नाम गायब होने की जांच करके जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही तो करनी ही चाहिए। सूत्रों के अनुसार विधायक का नाम वाला पट बन चुका थालेकिन बाद मे हटाया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधन में यह दर्द भी बयां कर गए कि केदारनाथ आपदा के दौरान वह केदारनाथ सिर्फ इसलिए नहीं आ पाए क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उन्हें नहीं आने दिया।तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अब भाजपा में ही शामिल हैं। श्रोताओं के लिए चौंकाने वाली बात यह रही कि क्या नरेंद्र मोदी को यह मालूम नहीं है कि विजय बहुगुणा अब भाजपा में ही हैं।अथवा क्या उन्हें यह बात कहने का कोई सुझाव दिया गया था! इससे पहले भी नरेंद्र मोदी आपदा घोटालों का गाहे-बगाहे जिक्र कर विजय बहुगुणा को एकाधिक बार असहज कर चुके हैं।
अब यह अनायास है या सायास,या इसके पीछे किसी छुटभैया का कोई मंतव्य है! यह तो वही जानें!
जाहिर है कि 6 माह से भी कम समय में प्रधानमंत्री के दो बार केदारनाथ दौरे से तथा 700 करोड़ की लागत वाली विभिन्न योजनाओं की घोषणा से जनता में भले ही खुशी है, लेकिन स्थानीय विधायक, मंत्री और सांसद की उपेक्षा की कसक भी उनके चाहने वाली आम जनता तथा भाजपा से जुड़े वोटरों में जरूर है।