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कैसे हो संसाधनों का सदुपयोग

March 9, 2017
in पर्वतजन
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उत्तराखंड में खनिज तथा वनोपज के साथ-साथ औद्यानिकी और कृषि के कई संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं, किंतु इनका सदुपयोग कैसे हो, इसकी नीति व्यावहारिक नहीं है।

हरिश्चंद्र चंदोला

एक बुनियादी सवाल मैं बहुत समय से पूछना चाहता था। उतराखंड राज्य में क्या-क्या संसाधन उपलब्ध हैं? इसका पूरा लेखा-जोखा कहीं नहीं मिलता। जो कुछ अंग्रेजी राज्य के समय इस विषय पर लिखा गया था। वहीं राज्य सरकार अब पुस्तिकाओं में दोहरा रही है। नया कुछ भी नहीं बता पा रही है।
यह बताया जाता है कि यहां धान उगाया जाता है। कितने प्रकार का, उसका पूरा वर्णन कहीं नहीं मिलता है। यहां की बासमती के बारे में सभी जानते हैं, पर कितने प्रकार की बासमती उगाई जाती है? उसके आलावा धान की यहां कई प्रजातियां हैं। एक कैलाश-यात्री कई वर्षों पूर्व एक समय रास्ते में मिले कुछ धान के बीज उठा लाया था। जिन्हें वह जेब मे रख अपने अल्मोड़े के किसी गांव में ले आया था। वहां शायद द्वाराहाट के पास उसने उस धान को अपने खेतों में बोया तथा उगाया। अच्छी फसल हुई, जो अब लुप्तप्राय: हो गई है। पहाड़ में उगने वाली धान-प्रजातियों में एक वह थी। उत्तराखंड में उगने वाली सभी धान-प्रजातियों का पूरा विवरण कहीं नहीं मिलता। कृषि राज्य का सबसे बड़ा जीवन-साधन है। यहां किस-किस प्रजाति की कितनी खेती होती है, उसका लेखा-जोखा नहीं मिल पाएगा। कृषि राज्य सरकार का प्रमुख विभाग है। उसकी पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है।
एक समय पहाड़ में भांग खूब उगती थी। अब न कोई उसकी खेती करता है, न उसे उपयोग में लाता है। जो भांग जंगलों में उगती है, उससे कुछ लोग चोरी-छुपे मादक पदार्थ बना बेच लेते हैं, कितु एक समय था, जब उसके रेशे से यहां कपड़े बनाए जाते थे, जो यहां के लोग पहनते थे। किसी क्षेत्र में वे अभी भी पहने जाते हैं। कितना कुछ था यहां, उसका सरकारी कागजों में कोई विवरण नहीं मिलता।
यहां प्रसिद्ध तीर्थों तथा मंदिरों की बहुलता है। देश फिल्म-बनाने के लिए प्रसिद्ध है, किंतु बद्रीनाथ-केदारनाथ, गंगोत्री-यमुनोत्री यात्राओं पर यहां एक पूरी फिल्म नहीं मिलेगी। यहां फूलों की विश्व-प्रसिद्ध घाटी है। विश्व के हिमाच्छादित उच्चतम शिखर हैं, लेकिन क्या मजाल कि उन पर एक पूरी चित्र-कथा या फिल्म मिल जाए। विदेशों में शायद मिल सकती है, लेकिन उत्तराखंड में नहीं।
यहां के पर्वतों में खनिज-भंडार छिपे हैं। क्या कुछ उनमें है, उसका कहीं पूरा विवरण नहीं मिलता। अंग्रेजों के समय हुई पड़ताल में क्या कुछ खनिज हैं, उसका विवरण मिल जाएगा। स्वाधीनता के बाद हमने क्या कुछ खोजा, उसका लेखा-जोखा नहीं मिलेगा। यहां के पुराने लोगों द्वारा निकाले लोहे-तांबे से बनाई सामग्री (गागर, लोटा, गिलास) मिल जाएंगे, किंतु आजादी के बाद खनिजों की खोज नहीं हुई, न ही उनसे कोई वस्तु बनाई गई।
यहां के पहाड़ 65 प्रतिशत जंगलों से आच्छादित हैं। क्या कुछ है उन जंगलों में, उसका कुछ अंग्रेजों के समय जमा किया विवरण किताबों में मिल जाएगा, किंतु आजादी के बाद जंगलों का कितना विस्तार हुआ और उनकी क्या दशा है, उस पर कुछ अधिक जानकारी नहीं मिलेगी। यह अवश्य कहा जा रहा है कि जंगलों में चीड़ बहुत फैल गई है, जिससे उनमें हर साल आग लगती है, पर यह नहीं बताया जाता है कि चीड़ के स्थान पर क्या, कैसे पेड़ लगाए जा सकते हैं। पहाड़ों में बड़ा सा वन विभाग खड़ा हो गया है, जिसका मुख्य काम है कि गांव वालों को जंगलों में प्रवेश नहीं करने दो। उनको नहीं मालूम कि इन्हीं गावों के पूर्वजों ने यह जंगल लगाए तथा उनकी रक्षा की थी।
यहां की सरकार का मुख्य काम है कि यहां रहने वालों को यह मत करने दो, वह मत करने दो, यह नहीं बताया जाता कि क्या करने को कहो।
जनता को यह नहीं बताया जाता कि प्रकृति ने उनको क्या कुछ दिया है, जिसका अपनी उन्नति के लिए वह क्या कर सकते हैं? एक समय यहां ऊंचाइयों पर गांव वाले बरसात के जल से छोटी-छोटी झीलें (खाल) बनाते थे, जिनसे नीचे जंगलों तथा खेतों को पानी दिया जाता था। वह सब बंद हो गया, सरकार के लगभग सभी विभागों का काम है कि लोगों को यह मत करने दो और वह भी न करने दो। सरकार यहां अधिकतर पुलिस का काम करती है। लोग कुछ करना चाहते हैं तो वह उनको रोकती है। सुंदरलाल बहुगुणा इत्यादि खालों को फिर से बनाने की बात करते थे, लेकिन सरकार ने कोई मदद नहीं की। सरकार ने कहा कि नदियों से छोटी नहरें निकाल कर लाओ। उसके लिए सरकार कुछ आर्थिक सहायता भी देने लगी। जिससे ठेकेदारों तथा सिंचाई विभाग के कर्मचारियों की जेबें गर्म होनेे लगी।
सरकार ठेके देने का व्यवसाय बन गई। ठेकों से अफसरों और कर्मचारियों की जेबें गर्म होने लगीं। राज्य में उनका एक वर्ग उग आया है नेताओं जैसा। सरकार को ही क्यों नहीं ठेके पर दे देते हैं, यह सवाल उठ रहा है।
अनेक काम जो गांव वाले कर सकते थे, उसे उन्हें नहीं दिया जाता। उसे सरकार-नेता लोग ठेकेदारों से करवाते हैं। जब हमको यही नहीं मालूम कि हमारे पास क्या कुछ है तो हम उसका कैसे उपयोग कर सकते हैं?


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