उत्तराखंड सरकार आज जिस फ्लोटिंग मरीना पर कैबिनेट बैठक आयोजित करके वाहवाही लूटने जा रही है, वह न सिर्फ मात्र एक राजनीतिक प्रोपेगेंडा साबित हो सकता है,बल्कि सुरक्षा को लेकर भी बड़े सवाल खड़े कर सकता है।
इस फ्लोटिंग मरीना से संबंधित
सबसे बड़ा तथ्य यह है कि इसका न तो रजिस्ट्रेशन है और न ही इसको पानी में उतारे जाने के लिए किसी तरह का कोई अधिकृत प्रमाण पत्र जारी किया गया है।
दूसरा तथ्य है कि इसका कोई इंश्योरेंस नही है
तीसरा तथ्य है कि इसका कोई फिटनेस जांच प्रमाणपत्र भी नही है।
यदि कोई अनहोनी होती है तो कैबिनेट सदस्यों सहित मरीना पर सवार अन्य अफसरों तथा बाकी लोगों की जान जोखिम में पड़ सकती है। सवाल यह है कि किसी भी अनहोनी की स्थिति में कौन जिम्मेदार होगा !
जिस सरकार पर उत्तराखंड की आम जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, उन्ही महानुभावों की सुरक्षा इस फ्लोटिंग मरीना पर खतरे में पड़ सकती है।
चौथा तथ्य यह है कि इस फ्लोटिंग मरीना पर मल मूत्र विसर्जन के निस्तारण के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है।
पांचवा तथ्य यह भी है कि कुछ समय पहले यह फ्लोटिंग मरीना 4 महीने तक चट्टान पर लटका रहा। इससे यह मरीना क्षतिग्रस्त हो गया था किंतु यह फिर विशेषज्ञ से ठीक नही कराया गया।
छठा तथ्य यह है कि किसी भी पंजीकृत सर्वेयर द्वारा इसकी जांच नही की गई। इस तरह की फ्लोटिंग मरीना का प्रत्येक साल एक सर्वे कराया जाना होता है। लेकिन 4 वर्ष से इस फ्लोटिंग मरीना का कोई वार्षिक सर्वे तक नहीं कराया गया है, जिससे यह पता लग सके कि यह कितना फिट है।
सातवाँ तथ्य यह भी है कि इस तरह के फ्लोटिंग मरीना के संचालन के लिए कैप्टन क्रू स्तर का व्यक्ति तैनात होना चाहिए। किंतु इस फ्लोटिंग मरीना पर ऐसा कोई व्यक्ति तैनात नहीं है।
आठवां तथ्य यह है कि इस तरह के संचालन के लिए नेवी से प्रशिक्षित बचाव दस्ते की भी तैनाती जरूरी होती है। किंतु मरीना के पास यह भी उपलब्ध नहीं है। जाहिर है कि इसका संचालन सुरक्षा भी राम भरोसे है
नौवां तथ्य यह है कि एक मरीना को झील में उतारे जाने से पहले तमाम तरह के प्रमाण पत्र हासिल करने होते हैं जिनमें से रजिस्ट्रेशन, डिजाइन, निर्माण कंपनी द्वारा अधिकृत सर्वे प्रदूषण प्रमाण पत्र जैसे कुछ सर्टिफिकेट हासिल करने होते हैं। तभी किसी मरीना को झील में उतारा जा सकता है। किंतु इसके पास किसी भी तरह का प्रमाण पत्र नही है।
दसवां तथ्य यह है कि प्रशासन के संज्ञान में भी यह बात है। फिर महानुभाव की जान के साथ इतना बड़ा जोखिम क्यों लिया जा रहा है !!
जाहिर है कि सिर्फ राजनीतिक वाहवाही लूटने के लिए जान जोखिम में डालकर इस तरह की कैबिनेट बैठक की जा रही है।
गौरतलब है कि पिछली हरीश रावत सरकार में भी झील पर कैबिनेट बैठक करने की बात फाइनल हुई थी किंतु जैसे ही यह बात संज्ञान में आई कि इस तरह से वोट पर कैबिनेट बैठक करके किसी अनहोनी की दशा में सरकार पर सवाल खड़े हो सकते हैं, तो 24 घंटे पहले कैबिनेट बैठक करने का निर्णय टाल दिया गया था।
टिहरी झील पर कैबिनेट बैठक कराए जाने से झील पर पर्यटन गतिविधियों को निसंदेह बढ़ावा मिलेगा और इस कैबिनेट बैठक में मुख्य एजेंडा भी पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने पर फोकस है। किंतु अहम सवाल यह है सड़कों पर कोई वाहन उतारने से पहले परिवहन विभाग वाहन का सर्टिफिकेट, प्रदूषण सर्टिफिकेट, फिटनेस सर्टिफिकेट आदि उपलब्ध कराने होते है तभी परिवहन विभाग में पंजीयन कराए जाते हैं। फिर झील पर इस प्रकार की फ्लोटिंग मरीना के लिए किसी भी तरह के सर्टिफिकेट का न होना एक बड़ी लापरवाही है।
यह सरकार की संवेदनहीनता को भी दर्शाता है कि जब सरकार को कैबिनेट सदस्यों और आला अफसरों की सुरक्षा की चिंता नहीं है तो भविष्य में पर्यटन गतिविधियों की सुरक्षा के प्रति सरकार कितनी जिम्मेदारी दिखाएगी ! यह एक बड़ा सवाल है।
दूसरा अहम सवाल यह है कि नमामि गंगे और स्वच्छ गंगे के लिए बड़े- बड़े दावे करने वाली सरकार जिस प्लॉटिंग मरीना पर कैबिनेट बैठक आयोजित करने जा रही है उस पर मल मूत्र के डिस्चार्ज की कोई व्यवस्था ही नहीं है। ऐसे में लगभग 100 व्यक्तियों के लगभग 3 घंटे तक वोट पर उपस्थित रहने से प्राकृतिक जरूरतों का निपटारा करने के लिए आखिर क्या व्यवस्था होगी ! इतनी सी बात के बारे में भी सरकार ने नहीं सोचा तो भविष्य में व्यापक पर्यटन गतिविधियों के लिए सरकार वाकई कितनी जिम्मेदार होगी यह एक अहम सवाल है !खुदा शुक्र करे सब सकुशल संपन्न हो ।