देहरादून में 22 अक्टूबर के दिन एक जलसा हुआ । लाइट कैमरा एक्शन हुआ। CM साहब ने मुस्कुराते हुए फोटो सेेेशन कराया । एक गाड़ी को दुल्हन की तरह फूल मालाओं से सजाया गया और उसे गोपेश्वर के राजकीय बालिका इंटर कॉलेज के लिए CM साहब ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। आदर्शों की बड़ी-बड़ी बातें हुई। चाय नाश्ता हुआ। छात्रों के लिए सरकार का संकल्प दोहराया गया।
दूसरे दिन अखबारों में CM साहब की फोटो छपी। सरकार की छवि में चार चांद लगे और इस काम में तन मन धन से मदद करने वाली संस्था हंस फाउंडेशन के कर्ताधर्ता भी खुश हुए कि चलो उनके हाथों एक और कल्याण का कार्य संपन्न हुआ। किंतु दूसरे दिन अखबार के कबाड़ में जाते ही किसी ने सुध नहीं ली कि उस गाड़ी का फिर क्या हुआ !
जीजीआईसी गोपेश्वर में एक गाड़ी 4 महीने से सिर्फ इसलिए खड़ी है क्योंकि गाड़ी के लिए ड्राइवर उपलब्ध नहीं है। यह वाहन हंस फाउंडेशन ने छात्रों की समस्या को देखते हुए दान किया था। छात्रों को 4-5 किलोमीटर दूर से विद्यालय में आना पड़ता है। अब हालत यह है कि यह गाड़ी खड़े-खड़े कबाड़ में बदल रही है। इसकी वायरिंग चूहे काट गए हैं और अब यह स्टार्ट भी नहीं हो रही।
जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि उन्होंने अपर निदेशक को इस विषय में पत्र लिखा है। शिक्षा विभाग की काहिली के कारण जिस उद्देश्य से यह गाड़ी हंस फाउंडेशन ने दान दी थी, वह पूरा नहीं हुआ। छात्र आज भी कई किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं।
एक हकीकत यह भी है कि शिक्षा विभाग चाहता ही नहीं कि छात्रों की समस्या वास्तव में दूर हो जाए। मुख्य शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में तीन ड्राइवर तैनात हैं, जबकि वाहन केवल एक। ऐसे में अगर वाकई मुख्य शिक्षा अधिकारी संवेदनशील होते तो वह एक ड्राइवर की तैनाती इस गाड़ी पर भी कर सकते थे।
सरकार बजट न होने की बात कह कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ देती है और जब कोई हंस फाउंडेशन जैसी सामाजिक संस्था आगे आती है तो सरकारी तंत्र उनके द्वारा की गई मदद को भी इस तरह से कबाड़ में बदल देता है। खड़े-खड़े कबाड़ में तब्दील हो रही इस गाड़ी को देख-देख कर चार-पांच किलोमीटर दूर से पैदल चलकर स्कूल आने वाले छात्र शिक्षा विभाग और सरकार से काफी नाराज हैं।