मामचन्द शाह//
शहर के बीचोंबीच स्थित घंटाघर को देहरादून के दिल की धड़कन भी कहा जाता है। उत्तराखंड भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील है और यह जोन-५ में आता है। अपनी स्थापना से करीब सात दशक बाद पहली बार घंटाघर का सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है तो जाहिर है कि उसे घूंघट तो ओढऩा ही पड़ेगा।
प्राचीन धरोहर के रूप में स्थापित घंटाघर के सुदृढ़ीकरण का जिम्मा ब्रिडकुल (ब्रिज, रोपवे, टनल एंड अदर इंफ्रास्ट्रक्चर कारपोरेशन लिमिटेड) को दिया गया है। ऐसे में घंटाघर के रेट्रोफिटिंग में ब्रिडकुल भी कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहता।
ब्रिडकुल के एमडी मनोज कुमार सेमवाल बताते हैं कि घंटाघर का रेट्रोफिटिंग का कार्य विगत 15 अक्टूबर २०१७ को शुरू किया गया। यह कार्य मार्च २०१८ तक पूर्ण हो जाएगा। घंटाघर के रेट्रोफिटिंग में ६६ लाख का खर्चा आ रहा है। बहुत जल्द रेट्रोफिटिंग के बाद दूनवासियों को घंटाघर का मजबूत नया स्वरूप देखने को मिलेगा।
ब्रिडकुल के महाप्रबंधक (सिविल) राजेंद्र प्रसाद उनियाल रेट्रोफिटिंग के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि घंटाघर के चारों ओर स्टील के जाले मजबूती से गाड़े गए हैं। इस बार ब्रिडकुल प्रेसर कंक्रीट जैसी अत्याधुनिक तकनीक से घंटाघर का सुदृढ़ीकरण कर रहा है। यह अब तक की सबसे नई और अत्याधुनिक तकनीक है, जिससे मशीन के द्वारा मसाले को तीव्र वेग से भवन की दीवारों पर फेंका जाता है। यह हाथ से करने वाले पलस्टर से कई गुना ज्यादा मतबूत और टिकाऊ होता है। उक्त तस्वीर से स्टील के जाले और वीडियो में प्रेशर कंक्रीट से हो रहे अत्याधुनिक तकनीक को आसानी से समझा जा सकता है।
ब्रिडकुल को केवल घंटाघर के सुदृढ़ीकरण करने का जिम्मा मिला है। इसके अलावा उसकी बाउंड्री और सौंदर्यीकरण का कार्य उन्हें नहीं सौंपा गया है। यह नगर निगम के अंतर्गत ही किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि दून में घंटाघर का निर्माण १९४८ में शुरू हुआ था। यह १९५३ में बनकर तैयार हुआ। तब लालबहादुर शास्त्री ने घंटाघर का लोकार्पण किया था। तब से लेकर आज तक इसका कभी रेट्रोफिटिंग नहीं हुआ।
”घंटाघर की रेट्रोफिटिंग विशेषज्ञों की देखरेख में की जा रही है। निर्माण में किसी भी तरह की कोताही न हो, इसके लिए पारदर्शिता का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। दून की धरोहर घंटाघर के सुदृढ़ीकरण का जो जिम्मा ब्रिडकुल को दिया गया है, उस पर हमारी टीम खरा उतरेगी।”
– राजेंद्र प्रसाद उनियाल
महाप्रबंधक(सिविल), ब्रिडकुल