भूपेंद्र कुमार//
पर्वतजन ने गत दिवस यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी कि देहरादून के सिटी पेट्रोल यूनिट के कुछ सिपाहियों ने अपनी बुलेट से ओरिजनल साइलेंसर हटाकर उन पर डुप्लिकेट रेट्रो साइलेंसर लगा रखे हैं, जबकि कई क्षेत्रों में इसी मामले में पुलिस द्वारा आम जन के चालान काटने की खबर है। इस तरह की दोहरी नीति से पुलिस प्रशासन की छवि धूमिल हो रही है।
ग्राम नरगोल बागेश्वर निवासी चंद्रशेखर पांडेय एक ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने पूरे कुमाऊं मंडल के सभी ६ जिलों में अपनी जागरुकता से रेट्रो साइलेंसर के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। यही नहीं उन्होंने बुलेट कंपनी से लेकर उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक तक से इसकी शिकायत की है।
चंद्रशेखर पांडेय बताते हैं कि उन्होंने बुलेट की तेज आवाज (रेट्रो साइलेंसर) से संबंधित पूरे मामले में ईमेल भेजकर रॉयल इनफील्ड के चेन्नई स्थित ऑफिस में जवाब मांगा तो वहां से लखनऊ एरिया सेल्स मैनेजर अभिषेक त्रिपाठी का मेल और मोबाइल नंबर दिया गया। इस पर उन्होंने बुलेट के साइलेंसर और ध्वनि से जुड़े सवाल जब अभिषेक त्रिपाठी से पूछे तो उन्होंने बताया कि रेट्रो साइलेंसर, जो कि रॉयल इनफील्ड (बुलेट) में ग्राहक की मांग पर लगाया जाता है, उसको शहर में चलाने की अनुमति नहीं है और ऑफ रोड साइलेंसर युक्त बुलैट को सिर्फ हाइवे में चलाने के लिए बनाया गया है। यह एक तरह से कंपनी का बड़ा गैरजिम्मेदाराना जवाब था। उनका साफ कहना था कि कंपनी तेज आवाज वाले साइलेंसर युक्त मोटरसाइकिल का प्रोडक्शन नहीं करती।
पांडेय कहते हैं कि उन्होंने कंपनी के इस जवाब को प्रदेश के सभी जनपदों के आरटीओ कार्यालयों सहित एसएसपी व एसपी के कार्यालयों में उपलब्ध करा रहे हैं, ताकि रेट्रो साइलेंसर वाली बुलेट को सीज किया जा सके। इसी का परिणाम है कि गत दिनों हल्द्वानी में सीपीयू करीब दो दर्जन ऐसी बुलेट पर कार्यवाही कर चुकी है।
चंद्रशेखर पांडेय की शिकायत करने पर अब रेट्रो साइलेंसर व प्रेशर हार्न बेचने वाले व आटो स्पेयर पाट्र्स कारोबारियों पर भी पुलिस शिकंजा कसने जा रही है। नैनीताल के एसएसपी जन्मेजय प्रभाकर खंडूड़ी ने जिले के सभी थाना प्रभारियों, यातायात पुलिस व सीपीयू को ऐसे वाहनों को चिन्हित कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
इसके बाद शहरभर में चले अभियान के बाद रेट्रो साइलेेंसर वाली करीब एक दर्जन बुलेट का चालान किया गया, जबकि दो बुलेट सीज कर दी गई। इससे रेट्रो साइलेेंसरधारी बुलेट स्वामियों एवं इन्हें लगाने वाले व्यवसायियों में हड़कंप की स्थिति है।
पिथौरागढ़ जनपद में भी पुलिस व परिवहन विभाग द्वारा चलाए गए अभियान में करीब दो दर्जन ऐसी बुलेट वाहनों का चालन किया गया, जबकि ६ वाहनों को सीजन कर दिया गया है।
बागेश्वर में भी करीब दो दर्जन बुलेट के रेट्रो साइलेंसर उतरवा दिए गए हैं। चंद्रशेखर पांडे ने अल्मोड़ा के एसपी से भी बुलेट में रेट्रो साइलेंसर लगाए जाने की शिकायत की है। इस पर जनपद में भी ऐसी बाइकर्स पर नकेल कसने की तैयारी की जा रही है।
बताते चलें कि रेट्रो साइलेंसर से १२० डेसिबल की आवाज क्रिएट होती है, जो कि सामान्य से बहुत अधिक है। जिला अस्पताल पिथौरागढ़ के ईएनटी सर्जन डा. आरसी पुनेड़ा बताते हैं कि ६० से ७० डेसीबल की आवाज में कुछ रे रहने पर ही स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच सकता है। इससे ज्यादा की ध्वनि सामान्य व्यक्तियों पर भी बुरा प्रभाव डाल सकती है।
हृदय रोग विशेषज्ञ डा. सीबी चौरसिया बताते हैं कि इन बाइकों की तेज आवाज एवं नॉर्मल व्यक्ति की हार्टबीट असामान्य कर देती है। दिल के मरीजों के लिए इनकी ध्वनि अत्यंत खतरनाक एवं जानलेवा हो सकती है। इससे दिल का दौरा एवं बहरेपन का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा यह बच्चों, वृद्धों व गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक होता है।
इससे पहले पुलिस और सीपीयू को साइलेंसर पर चालान की न कोई जानकारी थी और न उनके लिए ऊपर से ही कोई आदेश थे।
चंद्रशेखर पांडेय ने पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड से भी मामले की शिकायत की। जिसमें उन्होंने बुलेट मोटरसाइकिलों में मोडिफाइड साइलेंसर लगाकर पटाखे फोडऩे और अति तीव्र पीड़ादायक ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों पर कठोर कार्यवाही करने की मांग की है।
इन तेज आवाज वाली बुलेट इतना ध्वनि प्रदूषण करती हैं कि आम जन के लिए समस्या खड़ी हो जाती है। यह दोपहिया वाहन एक्ट १९८६ के अंतर्गत तीव्र ध्वनि प्रदूषण में आता है। बुलेट के साइलेंसर बदलवाने पर १४४ की धारा लग सकती है और पटाखे बजाने पर १८८ के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है, जिससे जेल भी हो सकती है। ठीक यही नियम साइलेंसर बेचने और लगाने वालों पर लागू होता है। वाहन के मूल उपकरण से छेड़छाड़ करके ध्वनि प्रदूषण करके लोगों को परेशान करना उससे भी बड़ा अपराध है।
पांडेय कहते हैं कि वह उच्च न्ययालय के मुख्य न्यायाधीश को भी इस मामले की शिकायत कर चुके हैं, लेकिन वहां से भी कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं हो पाई।
कुल मिलाकर देखना यह है कि चंद्रशेखर पांडेय जैसे जागरूक युवाओं की पहल अब क्या रंग लाती है।