उत्तराखंड के मंत्री पद की खाली कुर्सी भरना सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है। इस बीच ओएसडी दीपक डिमरी की मौत के बाद खाली हुई कुर्सी 3 महीने बाद भी खाली है। सरकार में प्रचंड बहुमत के विधायकों की अपेक्षा का दबाव मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भारी पड़ रहा है।
इसके पीछे एक कारण यह बताया जा रहा है कि सरकार सत्ता का और अधिक विकेंद्रीकरण नहीं चाहती।
इससे कुछ मलाईदार पद किसी अनचाहे विधायक को मिल सकते हैं, जो बाद में सरकार के लिए गले की हड्डी बन सकता है। सरकार में शामिल जो अन्य ओएसडी तथा सलाहकार हैं, वह भी किसी और ओएसडी के साथ अपने अधिकारों का बंटवारा नहीं चाहते।
ओएसडी दीपक डिमरी दो बार उत्तराखंड की भाजपा सरकार में ओएसडी के पद पर रहे। उनके देहांत के बाद राज्य सरकार चुप बैठी हुई है।
सरकार बनने के बाद त्रिवेंद्र सरकार में शामिल इन लोगों ने जिस प्रकार मुख्यमंत्री को मोहपाश में फंसाकर रख दिया है उसी के परिणाम स्वरूप आज ओएसडी का पद भी खाली है।
दूसरी ओर सवाल यह भी है कि जब दीपक डिमरी की मौत के 3 महीने बाद भी यह पद नहीं भरा गया तो क्या ओएसडी जैसे पदों की उत्तराखंड में कोई आवश्यकता भी है या नहीं !ओएसडी पद की खाली कुर्सी तो यही इंगित करती है कि इन पदों को सिर्फ तुष्टीकरण के लिए भरा जाता है। जबकि प्रशासनिक स्तर पर नियमित रूप से काम करने वाले कर्मचारी मौजूद होते हैं ऐसे में ₹100000 वेतन गाड़ी घोड़ा बंगला चौकीदार चपरासी देकर ओएसडी रखने का क्या औचित्य है !