कल 28 तारीख की शाम को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की दो बैठकें हैं।
एक बैठक घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज में हुए साक्षात्कारों को लेकर होनी है। जिसमें बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष पद के नाते मुख्यमंत्री को प्रोफेसरों और रजिस्ट्रार का चयन करना है।
यह और बात है कि आपका प्रिय न्यूज़ पोर्टल पर्वतजन पहले ही चयनित होने वाले 17 प्रोफेसर पद के अभ्यर्थियों तथा एक रजिस्ट्रार पद के अभ्यर्थी के नाम का प्रकाशन कर चुका है।
दूसरी बैठक राज्य सूचना आयुक्त के दो पदों के लिए होनी है। काफी लंबे समय से पब्लिक डोमेन में इस बात की चर्चाएं जोरों-शोरों पर है कि पूर्व आईएएस चंद्रशेखर भट्ट राज्य सूचना आयुक्त बनेंगे।
साथ ही दूसरे नंबर के राज्य सूचना आयुक्त के अभ्यर्थियों में से अजय सेतिया अथवा अजीत राठी में से एक व्यक्ति राज्य सूचना आयुक्त बनेंगे।
उत्तराखंड राज्य सूचना आयोग में राज्य सूचना आयुक्त के पद के लिए 139 आवेदन सामान्य प्रशासन विभाग को प्राप्त हुए हैं। इनमे से उत्तराखंड के कई नौकरशाहों सहित जय सिंह रावत, दिनेश मानसेरा, दिनेश जुयाल, प्रकाश थपलियाल, अविकल थपलियाल, अजीत राठी, हिमांशु बहुगुणा,अजय सेतिया आदि पत्रकारों ने आवेदन किया है।
बड़ा सवाल यह है कि एक महीने से राज्य सूचना आयुक्त के पद के लिए चंद्रशेखर भट्ट, अजीत राठी, अजय सेतिया जैसे यह 3 नाम ही क्यों पब्लिक डोमेन में चर्चा का विषय बने हुए हैं !
सवाल यह है कि क्या सरकार ने पहले ही इन नामों की घोषणा कर दी है ! अथवा क्या पहले ही इन्हें व्यक्तिगत तौर पर बता दिया गया है।
फिर ऐसा क्या कारण है कि इन नामों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है ! राज्य सूचना आयुक्त के पद पर रिटायर्ड नौकरशाहों को बिठाने का अनुभव सूचना आवेदकों के लिए अच्छा नहीं रहा है। रिटायर नौकरशाह सरकारी विभागों के प्रति नरम रुख रखते हुए सूचनाएं निस्तारित करने की छवि के लिए आलोचित होते रहे हैं। जिन दो पत्रकारों के नाम राज्य सूचना आयुक्त पद के लिए चर्चा में हैं, उनमें से एक अजय सेतिया पहले भी उत्तराखंड में बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं।श्री सेतिया को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का करीबी माना जाता है, तो अजीत राठी को राज्य सूचना आयुक्त बनाए जाने के पीछे उनके मुख्यमंत्री से लगभग दस साल के करीबी संबंधों को माना जा रहा है।
सवाल उठ रहा है कि उत्तराखंड में योग्य पत्रकारों अथवा सामाजिक कार्यकर्ताओं का इतना अधिक अकाल पड़ गया है कि उत्तराखंड से बाहर के पत्रकारों और भारतीय जनता पार्टी के प्रति झुकाव रखने वालों को सरकार सूचना आयुक्त बनाने जा रही है।
इन सबसे अहम सवाल यह है कि यदि घुड़दौड़ इंजीनियरिंग कॉलेज की भर्ती की तरह सूचना आयुक्त पद पर किसकी नियुक्ति की जानी है, यह भी पहले से फिक्स है तो तो इस पद के लिए अखबारों में निकाले गए विज्ञापन और सलेक्शन कमेटी का दिखावा क्या महत्व छलावा है ! अथवा अगर पहले से ही सब कुछ फिक्स है तो क्या मुख्यमंत्री की भूमिका मात्र रबर स्टांप की है ! बहरहाल जीरो टॉलरेंस की पारदर्शी सरकार के लिए तथा उत्तराखंड के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए यही शुभ है कि यह चर्चाएं और आशंकाएं निर्मूल साबित हों।