कुलदीप एस राणा
उत्तराखंड सरकार में चिकित्सा शिक्षा विभाग का दायित्व मुख्यमंत्री स्वयं संभाल रहे हैं। बावजूद इसके विभागीय अकर्मण्यता का आलम यह है कि राजधानी स्थित राजकीय दून मेडिकल कालेज पिछले एक माह से भी अधिक समय से स्थायी प्रिंसिपल के बिना चल रहा है। बताते चलें कि दून मेडिकल कॉलेज की शुरुवात में विभाग को सूबे में प्रिंसीपल पद हेतु योग्य व्यक्ति न मिलने पर तत्कालीन सरकार पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से प्रतिनियुक्ति पर डॉ प्रदीप भारती को उत्तराखंड ले आयी, ताकि राजधानी स्थित मेडिकल कालेज को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया इंडिया से मान्यता प्राप्त हो सके और कॉलेज सुचारू रूप से प्रारम्भ किया जा सके। पिछले वर्ष 31 नवंबर को डॉ प्रदीप भारती की प्रतिनियुक्ति की अवधि भी पूर्ण हो गयी थी। जिसके बाद से दून मेडिकल कालेज प्रभारी व्यवस्था के भरोसे है। यहाँ सवाल शासन में बैठे चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव नितेश झा की सक्रियता पर भी उठ रहा है। राजधानी में ही सचिवालय से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित दून मेडिकल कालेज की व्यवस्थाओं को लेकर वह कितने गम्भीर हैं। जब तत्कालीन प्रिंसीपल की प्रतिनियुक्ति पूर्ण होने वाली थी तो उससे पहले ही नये प्रिंसीपल की नियुक्ति सम्बन्धी कार्यवाहीं क्यों प्रारम्भ नही की गई।
आपको बताते चलें कि मेडिकल काउंसिल की गाइड लाइन में स्पष्ट है कि बिना स्थायी प्रिंसिपल के कोई भी मेडिकल कालेज मान्यता के मानकों को पूर्ण नहीं करता हैं। वहीं दून मेडिकल कालेज में अभी तक निर्माण कार्य भी पूर्ण नहीं हुए हैं। ऐसे में कालेज में शैक्षिणक माहौल को एमसीआई के मानकों के अनुरूप बनाये रखने में प्रिंसिपल की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण हो जाती है, इस पर चिकित्सा शिक्षा विभाग की गंभीर नहीं है, जबकि राज्य में तीन राजकीय मेडिकल कालेज सुचारू रूप से गतिमान हैं औऱ इनमें कार्यरत अनेक प्रोफेसर्स प्रिंसीपल पद हेतु निर्धारित अहर्ताओं को पूर्ण भी करते हैं। इन तमाम हालातों में सवाल विभागीय मंत्री मुख्यमंत्री की सक्रियता पर भी उठना लाजिमी है।
प्रिंसीपल की नियुक्ति सम्बन्धी प्रकरण पर जब चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ आशुतोष सायना से पूछा गया तो वह सरकार का बचाव करते नज़र आये, किन्तु संतोषजनक उत्तर नही दे सके। डॉ सायना ने बताया कि सूबे में स्थायी प्रोफेसर्स की कमी है। दून मेडिकल में प्रो नवीन थपलियाल वरिष्ठ हैं। तत्कालीन व्यवस्था के लिए उन्हें प्रभारी प्रिंसीपल का चार्ज दिया गया है। शासन स्तर पर भी स्थायी प्रिंसीपल की नियुक्ति की कार्यवाही गतिमान है।
देखने वाली बात यह होगी कि राजधानी के मेडिकल कालेज में कितने समय में स्थायी प्रिंसिपल की नियुक्ति हो पाती है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।