दिनेश मनसेरा
उत्तराखण्ड में उद्योग लगाओ का आह्वान,अक्टूबर के पहले हफ्ते होने वाली,इन्वेस्टर मीट के लिए सरकार ने लगाया है।
खबर है कि 250 करोड़ का खर्चा करके होने वाली इस आलीशान समारोह से पहले ही कुछ ऐसे विषय सामने आगये है, जिन्हें लेकर उद्योगपति संशय में पड़ गए है। हालाँकि पहले से यहां लगे बड़े औद्योगिक घरानों के फीडबैक अच्छा नही है। उत्तराखण्ड की बेलगाम अफसरशाही ने उन्हें खासा तंग किया हुआ है,उद्योगपति वही अपना डेरा जमाते है, जहां उन्हें पूछा जाए सरकार हर वक्त उन्हें हॉटलाइन पर रह कर उनके मसले सुलझाए पर ऐसा तिवारी शासन काल के जाते ही खत्म हो गया। उनके बाद खंडूरी आये वो सख्ती में रहे निशंक ने आते ही कुछ ठीक भी किया। उनके जाते ही सिडकुल की दशा फिर से खराब हो गयी।
आज ये हालात है कि हरिद्वार उधम सिंह नगर में सिडकुल की 740 फैक्टरियां बन्द हो गयी है हाल ही में हरिद्वार की 2800 से ज्यादा उद्योगों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपना चाबुक चला दिया है। कभी नमो गंगा तो कभी एनजीटी का फरमान गंगा प्रदूषण को लेकर आये दिन उद्योगपतियों को परेशान करे पड़ा है। उद्योग लगाने के लिए उत्तराखण्ड में केवल चार जिले है, जहां प्रदूषण बोर्ड ने सख्ती की हुई है। क्योंकि ये चारों जिले गंगा यमुना के पठार जिले हैं। ऐसे में नया उद्योग लगाने आने वाले सौ बार सोचेंगे।
बिजली सप्लाई के हालात भी कुछ अच्छे नहीं है। कभी कभी रोज दस घण्टे बिजली गुल रहने के बारे में उद्योगपति बात करते है। इन सबसे से और अहम बात ये कि कोई भी काम देहरादून में हो या जिले में बिना लिए दिए नही हो रहे, जिससे उद्योगपति परेशान हैं। राजनैतिक चंदेबाज़ी से घिरे उद्योगपति रोज नए सरकारी आदेशो से डरे और परेशान हैं।
एक स्टोन क्रेशर मालिक ने बताया कि उन्हें स्टॉक यदि पत्थर रेता का रखना है तो एक पटवारी से लेकर जिलाधिकारी, सचिवालय और सीएम आवास तक फ़ाइल बनाकर लेजाने और उसपर होने वेक खर्चे से उनकी जान निकल जारही है और यहां कहा जाता है उद्योगों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम है। स्टोन क्रेशर मालिको का समूह कहता है कि जो उद्योग यहां लगे है, सरकार उन्हें तो पहले बचाये फिर नई की बात करे। रेता बजरी का धंधा रॉयल्टी टैक्स इतना महँगा करके चौपट कर दिया कि यहां बनने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए रोड़ी पत्थर राजस्थान से रेल बोगी लाकर इसलिए डाला जारहा है; क्योंकि वो सस्ता पड़ रहा है।
सेलखड़ी लाइमस्टोन, लीसा बिरोजा, इमारती लकड़ी जैसे यहां के परंपरागत उद्योग हिमांचल से तक मुकाबला नहीं कर पा रहे। वजह, अफसरशाही की लालफीताशाही ही खत्म नहीं हो रही। देश दुनिया घूमने पर भी मुख्यमंत्री को इंवेस्टरमीट के लिए कोई बड़ा आश्वासन नहीं मिला, जिसको लेकर त्रिवेन्द्र सरकार को अब चिंता करने की जरूरत है।