लीक से हटकर समाज के लिए पागलपन की हद तक कुछ कर गुजरने वाले जुनूनी लोगों मे एक हैं विनोद नौटियाल
गिरीश गैरोला//
पढ़ाई के दौरान ही हम अपने रुचि के अनुरूप विषय चुनकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर अपने टैलंट का उपयोग समाज के लिए करते है और उसके परिणाम स्वरूप बाय प्रॉडक्ट के रूप मे जो धन अर्जन भी होता है उससे अपने परिवार का पालन पोषण भी करते हैं। वहीं समाज मे लीक से हटकर कुछ ऐसे लोग भी मौजूद हैं जो अपने विषय ज्ञान से हटकर अपनी उपयोगिता और स्वीकार्यता समाज मे बनाते हैं और वो होते हैं भीड़ मे से एक अलग चेहरा।
हमारा मकसद है कि समाज के हर व्यक्ति मे मौजूद खूबियों से समाज के अन्य लोग प्रेरणा लें और कोशिश करें कि उनके अंदर की मौजूदा खूबी का भी समाज के हित मे उपयोग हो सके।
आज की कड़ी मे पेशे से इंजीनियर उत्तरकाशी जनपद के मातली गांव के विनोद नौटियाल जो लोक निर्माण विभाग देहारादून मे सहायक अभियंता के पद पर हैं।
विनोद विभागीय सेवा देने के अतिरिक्त अपने तकनीकी ज्ञान का उपयोग समाज के हित के लिए कर ही रहे हैं।
विनोद नौटियाल मैड संस्था मे रविवार सहित छुट्टी के दिन अपना पूरा सहयोग देते हैं। “मेकिंग ए डिफ़्फेरंस बाय बीइंग द डिफ़्फेरंस”, जैसा कि नाम से ही साफ है कि मैड संस्था के लोग समाज के लिए कुछ हटकर करने को लेकर पागलपन हद तक जुनून पैदा करने से सक्षम है।
संस्था के संस्थापक अध्यक्ष अभिजय नेगी लॉ कॉलेज ऑफ जोधपुर से डिग्री के बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से लॉ मे ही मास्टर डिग्री कर रहे हैं। उनके साथ पढे-लिखे लोगों का ऐसा समूह है जो शिक्षित होने के बाद समाज से दूरी नहीं बढ़ाते हैं ,बल्कि उनके बीच रहकर उन्हे जमीन पर काम कर अन्य लोगों को भी प्रेरणा देने का काम करते हैं।
पिछले दिनो राजधानी देहारादून मे संडे मार्केट सहित अन्य इलाकों मे जमा कूड़े के ढेर को हटाने के अपने जवान बेटों और अन्य सहयोगियों के साथ लगकर विनोद नौटियाल सुर्ख़ियो मे आए थे। नगर के बीचों-बीच कूड़े के ढेर को हर कोई एक समस्या मानकर चिंतित जरुर था, पर नगर निगम को कोसने के अलावा कोई पहल नहीं हो पा रही थी।
मैड संस्था के साथ विनोद नौटियाल ने जिस तत्परता से अपने कपड़ों के खराब होने की चिंता न करते हुए कूड़े को उठाकर कूड़ेदान तक पहुंचाकर जो उदाहरण पेश किया, वह निश्चित रूप से प्रेरणा दायक है।
अपने तकनीकी ज्ञान का उपयोग करते हुए विनोद नौटियाल आजकल नगर मे सड़क से घरों तक गाड़ी को चढ़ने के लिए बनाए जाने वाले रैंप से सड़क को होने वाले नुकसान पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने इसका विकल्प भी तैयार कर लिया है।
इसको अपनाने से न तो सड़क खराब होगी और गाड़ी भी घर मे आराम से चढ़ सकेगी। इसके लिए विनोद सुबह 7 बजे से व्यक्तिगत रूप से लोगों को मिलते है और उनसे बातचीत कर अपना विकल्प सुझाते हैं। उनकी पहल का असर अब दिखने लगा है लोगों ने अपने रैम्प तोड़कर उनके तकनीकी निर्देशन मे रैम्प निर्माण शुरू भी कर दिया है।
देखना यह है कि सरकार इस तकनीक को कब तक अंगीकार करती है।