रविवार 11 मार्च को संपन्न उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के लिए 19 चिकित्सकों की भर्ती परीक्षा का पेपर पहले से ही फिक्स था।
इसके सारे क्वेश्चन एक ही लेखक की एक किताब से आए थे। प्रश्न पत्र में किताब का रेफरेंस भी संभवत: गलती से छप गया था।
इस परीक्षा के पेपर के लीक होने का एक प्रमाण यह भी है कि परीक्षार्थियों को जो पेपर मिला उसका पैकेट सीलबंद नहीं था। इससे यह साबित हो जाता है कि यह पूरी परीक्षा ही फर्जी थी। और आंखों में धूल झोंकने के लिए कराई गई थी।
इस परीक्षा में चयनित होने वाले अभ्यर्थी पहले से ही फिक्स कर लिए गए थे और उन्हें सारे प्रश्नों के उत्तर पहले ही रटा दिए गए थे। गंभीर सवाल यह है कि एक परीक्षा फार्म की कीमत ₹2000 रखी गई थी जबकि पहले या ₹300 तक थी इस परीक्षा में 19 चिकित्सकों के लिए भर्ती की जानी थी और देशभर से लगभग 900 अभ्यर्थी इस परीक्षा में शामिल हुए थे जब यह भर्ती परीक्षा पहले से ही फिक्स थी तो 900 अभ्यर्थियों से दो दो हजार लेने के दोषियों पर क्या कार्यवाही होगी!
बेचारे अभ्यर्थी देशभर से फार्म खरीदने से लेकर आने-जाने और देहरादून के रहने खाने में हजारों रुपए खर्च करके अपने साथ हो रहे छल को भुगतने के लिए लाचार हैं।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार चयनित होने वाले अभ्यर्थी पहले ही अपने पूरे साजो सामान के साथ देहरादून आ चुके थे।
सूत्रों के अनुसार प्रत्येक फिक्स परीक्षार्थी से 20-20 लाख रुपए लिए गए हैं। पर्वतजन ने अपनी पड़ताल में पाया कि डॉक्टर गोविंद पारीक की “आयुर्वेद संग्रह” नामक किताब के पेज नंबर 859 से 867 से सारा पेपर आया था। उदाहरण के तौर पर इस किताब की 862 नंबर पृष्ठ के 32 33 और 34 नंबर के प्रश्न हूबहू पेपर में 2,4 और 5 वे क्रमांक पर पूछे गए हैं। किताब के पृष्ठ संख्या 864 का 49 नंबर प्रश्न पेपर में 19 नंबर पर पूछा गया है।
यानि बस किताब का नाम और पेज नम्बर 859 -867 सीक्रेट कोड था और सेलेक्शन पक्का ! पाठकों के सुलभ संदर्भ के लिए पेपर तथा किताब के स्क्रीन शॉट देखे जा सकते हैं।
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गौरतलब है कि यह किताब सभी प्रकार की चिकित्सकों की परीक्षा के लिए एक दिग्दर्शिका है।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार चिकित्सकों की इस परीक्षा को लीक करवाने में शासन के उच्च स्तरीय अधिकारियों की भी मिलीभगत है।
गौरतलब है कि पर्वतजन ने रविवार सुबह ही परीक्षा से ठीक पहले चिकित्सकों की इस परीक्षा में होने वाली धांधली का अंदेशा जारी कर दिया था।
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से पहले भी दो बार चिकित्सकों की यह परीक्षा तय की गई थी लेकिन तब भी पर्वतजन ने ही धांधलियों का पर्दाफाश कर दिया था।
शोर शराबा होने के बाद यह परीक्षा पहले रद्द कर दी गई थी। फिर चहेतों को भर्ती करने के लिए इंटरव्यू का भी एक माध्यम जोड़ा गया था जो कि पूरी तरीके से नियम विरुद्ध था।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय के घोटालों पर किसी भी कुलपति के आने या जाने अथवा किसी अफसर के रहने या ना रहने पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
सरकार आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय की तरफ से आंखें मूंदे हुए है तो आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में इसके गठन से लेकर रोज नए घोटालों का पर्दाफाश होता रहा है।
अब चिकित्सकों की यह परीक्षा ही फर्जी साबित हो जाने से न सिर्फ विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हुई है, बल्कि उत्तराखंड सरकार की साख पर बट्टा लगा है । मेहनती बेरोजगार युवाओं के सपनों पर भी ग्रहण लगा है।
देखना यह है कि जीरो टॉलरेंस का हर बात में दम भरनेवाली सरकार इस फर्जी भर्ती परीक्षा पर क्या एक्शन लेती है !
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