उत्तराखंड में बहुत से नौकरशाह हैं जो अलग-अलग वजहों से चर्चाओं में रहते हैं। उन्हीं में से एक हैं 2012 बैच के आईएएस दीपक रावत। मसूरी में जन्मे दीपक रावत इस वक्त उत्तराखंड के अधिकारियों में एक ऐसा चेहरा हैं, जो किसी परिचय के मोहताज नही हैं।
लोगों से सहज मेल मिलाप तो उन्हें अलग बनाता ही है, इसके साथ ही उनके काम करने का तरीका भी लोगों के बीच खासा लोकप्रिय है।
दीपक रावत मसूरी के रहने वाले हैं। पिता नगर पालिका में एक छोटे से कर्मचारी थे।वह बचपन से ही किताबी पढ़ाई में काफी सुस्त थे। टॉप करना तो दूर, कोई डिविजन बचपन मे आ जाती तो घर वाले उसी में खुश हो जाते। भला किसको मालूम था कि पढ़ाई लिखाई में जिस लड़के का मन नही लगता था, वह न केवल आईएएस बनेगा बल्कि अपने कार्यशैली की वजह से अपनी एक अलग पहचान भी बना लेगा।
दीपक रावत इस वक्त हरिद्वार के डीएम हैं।इससे पहले वह नैनीताल, बागेश्वर और हल्द्वानी में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। जिलाधिकारी और एसडीएम रहने के साथ उन्होंने घाटे में चल रहे केएमवीएन की कमान संभाल कर उसे न केवल चलने लायक किया बल्कि जाते-जाते उसके खजाने में 5 करोड़ रुपये भी छोड़ कर गए थे।
नैनीताल में रहते हुए ही दीपक रावत चर्चाओं में आ गए थे। दफ्तर से बाहर निकल कर विभागों का औचक निरक्षण हो या फिर भीड़ में लोगों से अचानक सहज संवाद बनाना। ये अंदाज अखबारों मे भी खूब सुर्खियों में रहता था।
जब दीपक रावत का नैनीताल से ट्रांसफर हुआ तो मानो नैनीताल के हर एक इंसान के चेहरे पर उदासी सी थी। भारी मन से आईएएस दीपक रावत ने भी नैनीताल को अलविदा कहा और हरिद्वार के जिलाधिकारी के दायित्व मे रम गए।
कहते हैं कि जिस दिन से हरिद्वार में उन्होंने पदभार संभाला है, उस दिन से उनके आसपास रहने वाले कर्मचारियों के काम करने के अंदाज़ में न केवल परिवर्तन आया है, बल्कि तमाम विभागों में उनका खौफ देखा जा सकता है। कर्मचारी से लेकर उनके निचले अधिकारी भी जानते हैं कि पता नही किस समय दरवाजा खोल कर वह किसी भी दफ्तर का सूरते हाल जान लें।
उनका मिलनसार अंदाज़ हरिद्वार में भी बरकरार है ।देश मे इंटरनेट पर इस वक्त उन्हें एक आईएएस के तौर पर बेहद सर्च किया जा रहा है। हरिद्वार में जिस कार्यक्रम में वह जाते हैं, वहां अगर दूसरा नेता मौजूद है तो लोग पहले दीपक रावत के साथ ही सेल्फी लेना पसंद करते हैं। और शायद यही कारण है कि आज वह सोशल मीडिया में छाये रहते हैं। हरिद्वार में रहते हुए स्वच्छ भारत अभियान के तहत एक अधिकारी पर लघुशंका करने पर जुर्माना लगाने की बात हो या फिर आरटीओ दफ्तर में पहुँच कर उनका अधिकारियों को फटकार लगाने का अंदाज़। अपने जन्मदिन पर दिव्यांग बच्चों के साथ खुशी मनाना हो या फिर दीपावली पर कुम्हार और शहीद के यहां दीप जलाना हो। उनका हर बार ऐसा काम कर जाना लोगों को खासा पसंद आता है ।
आईएएस दीपक रावत जानते हैं कि जनता से कैसे जुड़ा जाए और वह उस काम को बखूबी करते हैं।दीपक रावत कहते हैं कि वैसे उन्होंने सोचा नही था कि वह कभी आईएएस बनेंगे। उनका कहना है कि उनको ये भी नही मालूम था कि आईएएस होता क्या है! हां इतना जरूर कि मसूरी में रहते हुये एलबीएस अकेडमी में बड़ी-बड़ी गाडियों का आना-जाना और अलग सी भीड़ देख कर उनमे हमेशा से ये जानने की उत्सुकता पैदा करती थी कि आख़िरकार ये सब है क्या!
दसवीं तक पढ़ाई में काफी कमजोर रहने वाले दीपक रावत ने मसूरी के साथ-साथ दिल्ली से पढ़ाई की है। उन्हें आईएएस का एग्जाम देने की प्रेरणा मौजूदा डीजीपी अनिल कुमार रतूड़ी से मिली। दरअसल दीपक रावत के मसूरी में अनिल कुमार रतूड़ी पड़ोसी हुआ करते थे।जब वह उत्तर प्रदेश में किसी जिले में एसपी हुआ करते थे तो उनके घर आने के बाद दीपक रावत उनके पास चले जाया करते थे। तब जाकर उन्हें आईएएस और उससे जुड़ी बातें अनिल रतूड़ी ने ही बताई थी। आज भी वो जहां हैं, उसके पीछे अनिल रतूडी का भी बहुत बड़ा योगदान मानते हैं। आइएएस परीक्षा मे 12वीं रैंक हासिल करने वाले दीपक रावत कहते हैं कि अगर किसी को भी कामयाब होना है तो पहली बात तो किसी भी तनाव में नही रहना है। किताबों का बोझ भी इंसान की कामयाबी के लिए जरूरी नही है। मतलब भर की किताबें पढें और रोज एक अखबार जरूर पढ़ें। बाकी तैयारी अच्छी हो तो बड़े से बड़े एग्जाम इंसान आसानी से पास कर सकता है।
दीपक रावत की धर्मपत्नी दिल्ली में वकील हैऔर दोनों की एक बेटी है। दिन के एक घन्टे वह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं और ट्रेकिंग, बैटमिंटन का दीपक रावत को बहुत शौक है। किताबें,अंग्रेजी न्यूज़ चैनल देखने के साथ-साथ डाक्यूमेंट्री देखने के भी दीपक रावत शौकीन हैं।
ये दीपक रावत का सहज शौक ही है कि वह जहां भी कार्यक्रम में जाते है और वहां माइक मंच और मंडली होती है तो लोग उन्हें माइक थमा ही देते हैं।
गढ़वाली, कुमाऊंनी, हिंदी तथा अंग्रेजी में दीपक रावत नॉनस्टॉप गाने गा लेते हैं ।इसी वजह से आज यूट्यूब और फेसबुक पर उनके गाने के तमाम वीडियो देखे जा रहे हैं।
ये सब उनको अन्य अधिकारियों में अलग पहचान दिलाता है। इतना बहुआयामी व्यक्तित्व होने के कारण कई लोग उनसे ये भी पूछ बैठते हैं कि आप रिटायरमेंट के बाद क्या नेता बनना पसंद करेंगे! तो उनका जवाब यही होता है कि नेता बनना आईएस बनने से बहुत कठिन है, इसलिए वह भविष्य में नेता कभी नही बनेंगे। और न उन्हें नेता गिरी करने का कोई शौक है।
यह बात अलग है कि राज्य से लेकर केंद्र की राजनीति में बड़े-बड़े नेता उनके परिवार से आते हैं। राज्य के कई नेता दीपक रावत के परिवार से हैं। इसके साथ ही केंद्र में गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी उनके खास परिवार का हिस्सा हैं। लेकिन इन सब के बाद भी उनका कहना है कि वो अपने काम से ही जनपद और राज्य में सेवाएं देना चाहते हैं।
काम के वक्त न उन्हें कभी याद आता है कि वह किस परिवार से हैं और दूसरे किस परिवार से हैं।
इसमें दो राय नही है कि उनकी कार्य शैली के मुरीद कांग्रेस से लेकर बीजेपी सरकार के कई मंत्री और नेता हैं।